समान नागरिक संहिताः रंगारंगी या एकरंगी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 04-05-2022
समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता

 

प्रो. अख्तरुल वासे
 
एक ऐसे देश में जहां दुनिया की लगभग सभी धार्मिक परंपराएं एक साथ आती हों, जिसे अक्सर अपनी अनेकता में एकता की भूमिका पर गर्व हो, जहां संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई हो, जहां कुछ ही मीलों पर पानी और बानी दोनों बदल जाते हों, जहां न जाने कितनी नदियां अलग-अलग झरनों से निकलती हों, अलग-अलग रास्तों से अपनी यात्रा करते हुए अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में मिल जाते हों और फिर अरब सागर और बंगाल की खाड़ी मिलकर एक हिंद महासागर का निर्माण करते हों.

जिस प्रकार इन नदियों के बिना हम हिंद महासागर की कल्पना नहीं कर सकते, वैसे ही विभिन्न धार्मिक इकाइयों के बिना भारत की भी कल्पना संभव नहीं है.मगर पिछले कुछ दिनों से इस रंगारंगी को एकरंगी में बदलने की बार-बार आवाजें उठ रही हैं.
 
कोशिशें हो रही हैं. अब एक बार फिर ऐसी ही आवाज भारत में गूंज रही है. वह है समान नागरिक संहिता की मांग. जो लोग सालों से समान नागरिक संहिता की मांग कर रहे हैं, वे खुद यह नहीं बता सकते कि समान नागरिक संहिता से उनका क्या मतलब है ?
 
वे जिस समान नागरिक संहिता की मांग कर रहे हैं, उसका ढांचा क्या होगा ? आकार और रूप क्या होगा ? चाहे वह हिंदू नागरिक संहिता हो या विभिन्न अन्य धार्मिक संस्थाओं के कानून, वे सभी धार्मिक मान्यताओं में निहित हैं. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि सनातन परंपरा के अनुसार एक हिंदू विवाह बिना सात फेरे के हो सकता है ?
 
क्या गुरु ग्रंथ साहिब को गवाह के रूप में स्वीकार किए बिना सिख एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में स्वीकार कर सकते हैं ? उसी तरह, क्या पादरी द्वारा दिलाई गई शपथ के बिना एक ईसाई की शादी चर्च में की जा सकती है ? 
 
इसी तरह, क्या कोई मुसलमान, चाहे वह सुन्नी हो या शिया, बिना काजी या मुजतहिदीन के शादी कर सकता है ? अगर नहीं तो समान नागरिक संहिता या कॉमन सिविल कोड की रट क्यों है ?
 
क्या समान नागरिक संहिता का यह अर्थ है कि विवाह का औपचारिक पंजीकरण हा? जहां तक हम जानते हैं, मुसलमानों के यहां काजी हर शादी का एक नियमित रजिस्टर रखता है . कोई भी मुसलमान शादी के पंजीकरण के खिलाफ नहीं है.
 
ज्यादातर जगहों पर शादी का रिकॉर्ड मस्जिदों में रखा जाता है. कुछ प्रांतों में वक्फ बोर्ड के द्वारा पूरे प्रांत में निकाह के रिकॉर्ड को संरक्षित किया जाता है और इसका एक जीवंत उदाहरण तेलंगाना राज्य है. यहां निकाह का रिकॉर्ड सैकड़ों वर्षों से संरक्षित है.
 
भारत का संविधान देश के सभी धार्मिक संप्रदायों को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता देता है. यह इस देश की धार्मिक विविधता के लिए व्यावहारिक और उपयोगी दोनों है. जैसा कि ऊपर कहा गया है, परिवारिक कानून को हर धर्म का हिस्सा माना जाता है और संवैधानिक स्वतंत्रता के तहत वे अपने परिवार के कानून के संरक्षण में विश्वास करते हैं. समान नागरिक संहिता इस संवैधानिक स्वतंत्रता से वंचित करने की दिशा में एक कदम होगा.
 
इसे भारत के संविधान और धार्मिक मान्यताओं का पालन करने वाला किसी भी धार्मिक संप्रदाय स्वीकार नहीं कर पाएगा.एक देश और एक कानून की बात करने वाले यह भूल जाते हैं कि इस देश में पारिवारिक कानून ही अलग-अलग नहीं है.
 
उनका अलग होना अप्राकृतिक भी नहीं है. दुनिया के ज्यादातर देशों के निजी जीवन में उनके अपने पारिवारिक कानून हैं, लेकिन राजस्व के अलग कानून केवल हमारे देश में ही हैं. उदाहरण के लिए, प्रत्येक भारतीय को टैक्स पर समान लाभ नहीं मिलता है,
 
लेकिन यदि कोई हिंदू अपना कर रिटर्न दाखिल करते समय एक हलफनामा देता है कि वह एक संयुक्त हिंदू परिवार प्रणाली का हिस्सा है, तो उसे टैक्स की अदायगी में बहुत सारी छूट दी जाती है.
 
मगर जो व्यक्ति हिंदू होते हुए भी यदि उस तरह का हलफनामा नहीं देता है तो वह इन रियायतों से वंचित रहता है. यह भी रोचक तथ्य है कि एक किसी गैर-हिंदू को चाहे वह इस बात पर कितना ही जोर दे कि वह भी एक संयुक्त परिवार का हिस्सा है, उसे ये विशेषाधिकार नहीं दिए जाएंगे. अब वह लोग जो एक देश एक कानून की बात करते हैं उनसे पूछा जाए कि वे इस मामले में चुप क्यों हैं ?
 
यहां इस भ्रांति को दूर करना भी आवश्यक है कि समान नागरिक संहिता न केवल मुसलमानों को स्वीकार्य नहीं होगा. सच्ची बात यह है कि देश के हिंदू बहुसंख्यक भी इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं होंगे.
 
मुसलमानों के पास मामूली व्याख्यात्मक मतभेदों के साथ एक पारिवारिक कानून है, जबकि हिंदुओं के पारिवारिक कानून और विवाह, तलाक और विरासत के मुद्दों में कई मतभेद हैं. उत्तर और दक्षिण के बीच भी अत्यधिक अंतर पाया जाता हैं.
 
सवाल यह उठता है कि क्या ये सभी हिंदू एक मत पर एकजुट हो गए हैं और सभी एक समान नागरिक संहिता पर सहमत हो गए हैं ? यदि हां, तो वह कौन सा कोड है यह मालूम होना चाहिए. सच तो यह है कि इस तरह का कोई भी प्रयास स्वयं हिंदुओं के विभिन्न वर्गों में अशांति पैदा करेगा. वे इसका विरोध करने के लिए मजबूर होंगे. यह उनके धार्मिक अधिकार या धर्म गुरु की हैसियत, स्थिति और हक के लिए एक खुली चुनौती होगी.
 
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और अन्य भाजपा शासित राज्यों में जिस तरह के सामान्य नागरिक संहिता को लाने की बात हो रही है, हम वहां के शासक वर्ग और पार्टी के नेताओं से पहले समान नागरिक संहिता का कोई मॉडल या खाका हिंदुस्तान जैसे एक धार्मिक बहुलवादी देश में लोगों के सामने पेश करें और एक लोकतांत्रिक देश में वास्तविक और निष्पक्ष रूप से विचार करने का मौका दें.
 
हम जानते हैं कि ऐसा कुछ लोगों को भावनात्मक रूप से खुश करने और अल्पसंख्यकों को डराने के लिए ही किया जा रहा है. हम दूसरों को नहीं जानते लेकिन एक आम भारतीय होने के नाते हम सोचते हैं कि अगर शासक वर्ग या पार्टी वास्तव में ऐसा खेल खेलती है तो यह एक अंधी गली में प्रवेश करने जैसा होगा, जहां से लौटने का कोई रास्ता नहीं रहता है.
 
(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज