प्रो. अख्तरुल वासे
उर्दू वालों द्वारा लंबे समय से किए जा रहे अनुरोध पर आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार में टीजीटी (उर्दू) के 917 पदों का विज्ञापन प्रकाशित कराया. 8 सितंबर 2021 को उर्दू शिक्षकों के पदों की परीक्षा में 1522 उम्मीदवारों ने ऑनलाइन परीक्षा दी, पर जो परिणाम आए वह बहुत निराशाजनक और परेशान करने वाले रहे हैं.
917 रिक्तियों में से महिला और पुरूष दोनों को मिलाकर कुल 177 उम्मीदवार ही पास हो पाए. अर्थात् 740 पद फिर खाली रह गए, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. अब नई भागदौड़ शुरू हो गई है.
वह यह है कि शिक्षकों की भर्ती के लिए जो दो प्रश्न-पत्र होते हैं उसमें पहले प्रश्न-पत्र में पास होना अनिवार्य होता है जो कि सामान्य ज्ञान का प्रश्न-पत्र होता है. इसमें सामान्य वर्ग में 40 प्रतिशत और ओबीसी वर्ग में 35 प्रतिशत अंक प्राप्त करना आवश्यक है.
अफसोस है कि उर्दू वाले इतने नंबर भी पहले प्रश्न-पत्र में नहीं ला सके. अब मांग की जा रही है कि पहले प्रश्न-पत्र में पास होने की अनिवार्यता खत्म किया जाए. पहले और दूसरे दोनों प्रश्न-पत्रों के प्राप्तांकों को मिलाकर उर्दू वालों के उत्तीर्ण होने का अनुपात निकाला जाए.
शायद इस मांग के पीछे का कारण यह है कि यदि ऐसा होता है तो सारे पद भर जाएंगे. सवाल है कि ऐसी रियायतों के आधार पर किसी भी विषय के शिक्षकों की भर्ती को कैसे उचित ठहराया जा सकता है ?
यदि शिक्षक स्वयं रियायतें या सिफारिश की बैसाखी लेकर कक्षा में जाएंगे, तो वे अपने छात्रों को दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए कैसे सक्षम बनाएंगे ? हमारे मित्र मंजर अली खान, जो जर्फ एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष हैं.
हमेशा उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति और उर्दू शिक्षा को संभव और प्रभावी बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं, ने यह आशंका व्यक्त की है कि जो 177 उम्मीदवार सफल हुए हैं, उनकी नियुक्ति भी हो पाएगी या नहीं !
उनके अनुसार, बहुत से उम्मीदवार कमियों या अधिक आयु के कारण अयोग्य हो जाएंगे. 177 में से लगभग 120 लोगों को ही नियुक्ति मिल पाएगी. मंजर अली खान की तरह हमें भी इस स्थिति पर दुख है, लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जो मांग की है कि उर्दू शिक्षकों की कमी के कारण इन उम्मीदवारों का मेरिट दोनों प्रश्न-पत्रों के प्राप्तांको को मिलाकर निकाला जाए, एवं यदि ऐसा किया जाए तो उर्दू के सारे रिक्त पद भर जाएंगे.
पहली बात तो यह कि ऐसा करने पर भी सारे रिक्त पद ना भर पाएंगे तो क्या होगा ? दूसरा, भविष्य के उर्दू शिक्षक, जिन्हें अपने समय के अन्य बुनियादी और आवश्यक विषयों का ज्ञान नहीं है, वह आने वाली पीढ़ी के उर्दू पढ़ने वाले बच्चों के साथ क्या न्याय कर पाएंगे ?
कुछ असफल उम्मीदवारों ने इसी मुद्दे पर दिल्ली उर्दू अकादमी के वाइस चेयरमैन ताज मुहम्मद से मुलाकात की. उन्होंने आश्वासन भी दिया कि वह इस संबंध में उपमुख्यमंत्री से बात करेंगे.
लेखक इस बात से भली-भांती परिचित है. उसकी इन बातों से वह युवा नाराज होंगे जो कि इस प्रतियोगी परीक्षा में सफल नहीं हो पाए. लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक अच्छे शिक्षक की असली पहचान स्नेह और कड़ी मेहनत है.
अगर शिक्षक में आवश्यक कौशल और क्षमताओं की कमी रहती है तो वह कक्षा में हंसी का पात्र बन जाता है. अपने छात्रों के बीच अपने लिए कोई जगह भी नहीं बना पाता है.
वैसे भी इस दुनिया में जहां हर कोई सर्वश्रेष्ठ की तलाश में है. एक शिक्षक केवल एक विषय तक सीमित नहीं रहता है. विशेष रूप से स्कूल स्तर पर तो उसे आपात स्थिति में कोई भी विषय पढ़ाने को दिया जा सकता है.
मुख्य रूप से सामाजिक विज्ञान और मानविकी से संबंधित विषय. अब यदि आपके पास अपने विशेष विषय के अलावा अन्य विषयों में आवश्यक कौशल नहीं है, तो आप अपने लिए एक अच्छी जगह नहीं बना सकते.
एक ऐसे वक्त में जब सेकेंड डिवीजन लाने वाले भी अच्छे कॉलेजों में प्रवेश नहीं ले पा रहे है. प्रतियोगिता अब 90 से 100 प्रतिशत के बीच में है, तो उर्दू वालों को न केवल उर्दू में बल्कि अन्य विषयों जैसे सामाजिक विज्ञान और मानविकी में भी महारत हासिल करनी होगी.
रियायतें मांगने के बजाय, मेरा उर्दू अकादमी के वाइस चेयरमैन और उर्दू से संबंधित संस्थानों के अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों से निवेदन है कि वह उपमुख्यमंत्री, जो शिक्षा मंत्री भी हैं और उर्दू अकादमी भी उनके अधिकर क्षेत्र में आती है, से यह अनुरोध करें कि उर्दू में जो 740 पद नहीं भरे जा सके हैं.
उनकी फिर परीक्षा कराई जाए. हर वह उम्मीदवार जो इसमें सफल हो, दोबारा होने वाली इस प्रतियोगी परीक्षा में यदि वह पास हो जाते हैं उस वक्त यदि उनकी आयु अधिक हो जाती है तो उनकी उम्र को उस समय से देखा और माना जाना चाहिए जब उन्होंने इन रिक्तियों के विज्ञापन के समय फॉर्म भरा था.
साथ ही प्रस्तावित प्रतियोगी परीक्षा में बैठने वालों की कोचिंग की व्यवस्था दिल्ली उर्दू अकादमी को सुनियोजित ढंग से करनी चाहिए. इस तरह सुनिश्चित करें कि हमारे लड़के और लड़कियां न केवल दूसरे प्रश्न-पत्र में बल्कि पहले प्रश्न-पत्र में भी शानदार सफलता अर्जित करें.
यहां मैं दिल्ली उर्दू अकादमी के वाइस चेयरमैन और अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों को याद दिलाना चाहता हूं कि जब सरकार द्वारा उर्दू शिक्षकों की भर्ती के लिए ब्ज्म्ज् अनिवार्य कर दिया था, तो उर्दू अकादमी ने इन बच्चों की कोचिंग की बहुत अच्छी प्रकार से व्यवस्था की थी. यह बात हमेशा याद रखी जाएगी कि उर्दू अकादमी की इस कोचिंग के फलस्वरूप इसके कोचिंग सेंटर से प्रशिक्षित लड़के-लड़कियों ने ब्ज्म्ज् की परीक्षा में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है.
यदि कल यह हो सकता था तो आज क्यों नहीं? अगर उर्दू अकादमी के पास जगह की कमी की समस्या हो या जिस तरह से दिल्ली का विस्तार हो रहा है उससे उम्मीदवारों के लिए एक स्थान तक पहुंचना आसान ना हो तो दिल्ली उर्दू अकादमी इसमें एक केंद्रीय और महत्वपूर्ण संस्थान के तौर पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया की फैकल्टी ऑफ एज्यूकेशन, अन्जुम तरक्की उर्दू (हिन्द), गालिब एकेडमी, ऐवान-ए-गालिब, यमुना पार में जाकिर हुसैन स्कूल, क्रिसेन्ट पब्लिक स्कूल, निजामुद्दीन में न्यू होराइजन स्कूल और हमदर्द पब्लिक स्कूल जैसे संस्थानों के साथ साझेदारी के माध्यम इसे संभव बना सकती है.
यदि इन सभी संस्थानों में दो से तीन महीने की नियमित, संगठित और नियोजित कोचिंग की व्यवस्था की जाए तो 740 पदों के लिए होने वाली परीक्षा में उम्मीदवार शानदार सफलता अर्जित करेंग.
(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं.)