दिल्ली में उर्दू शिक्षकों की भर्ती का मामला ?‎

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 09-01-2022
दिल्ली में उर्दू शिक्षकों की भर्ती का मामला ?‎
दिल्ली में उर्दू शिक्षकों की भर्ती का मामला ?‎

 

wasayप्रो. अख्तरुल वासे‎
 
उर्दू वालों द्वारा लंबे समय से किए जा रहे अनुरोध पर आम आदमी पार्टी की दिल्ली ‎सरकार में टीजीटी (उर्दू) के 917 पदों का विज्ञापन प्रकाशित कराया. 8 सितंबर 2021 ‎को उर्दू शिक्षकों के पदों की परीक्षा में 1522 उम्मीदवारों ने ऑनलाइन परीक्षा दी, पर जो ‎परिणाम आए वह बहुत निराशाजनक और परेशान करने वाले रहे हैं.
 
917 रिक्तियों में ‎से महिला और पुरूष दोनों को मिलाकर कुल 177 उम्मीदवार ही पास हो पाए. अर्थात् 740 ‎पद फिर खाली रह गए, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. अब नई भागदौड़ शुरू हो गई है. ‎
 
वह यह है कि शिक्षकों की भर्ती के लिए जो दो प्रश्न-पत्र होते हैं उसमें पहले प्रश्न-पत्र में ‎पास होना अनिवार्य होता है जो कि सामान्य ज्ञान का प्रश्न-पत्र होता है. इसमें सामान्य ‎वर्ग में 40 प्रतिशत और ओबीसी वर्ग में 35 प्रतिशत अंक प्राप्त करना आवश्यक है.
 
अफसोस  है कि उर्दू वाले इतने नंबर भी पहले प्रश्न-पत्र में नहीं ला सके. अब ‎मांग की जा रही है कि पहले प्रश्न-पत्र में पास होने की अनिवार्यता  खत्म किया जाए. पहले और दूसरे दोनों प्रश्न-पत्रों के प्राप्तांकों को मिलाकर उर्दू वालों के उत्तीर्ण होने ‎का अनुपात निकाला जाए.
 
शायद इस मांग के पीछे का कारण यह है कि यदि ऐसा होता ‎है तो सारे पद भर जाएंगे. ‎सवाल है कि ऐसी रियायतों के आधार पर किसी भी विषय के ‎शिक्षकों की भर्ती को कैसे उचित ठहराया जा सकता है ?
 
यदि शिक्षक स्वयं रियायतें या ‎सिफारिश की बैसाखी लेकर कक्षा में जाएंगे, तो वे अपने छात्रों को दुनिया के साथ ‎प्रतिस्पर्धा करने के लिए कैसे सक्षम बनाएंगे ? हमारे मित्र मंजर अली खान, जो जर्फ ‎‎एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष हैं.
 
हमेशा उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति और ‎उर्दू शिक्षा को संभव और प्रभावी बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं, ने यह आशंका व्यक्त की ‎है कि जो 177 उम्मीदवार सफल हुए हैं, उनकी नियुक्ति भी हो पाएगी या नहीं !
 
उनके ‎अनुसार, बहुत से उम्मीदवार कमियों या अधिक आयु के कारण अयोग्य हो जाएंगे. 177 ‎में से लगभग 120 लोगों को ही नियुक्ति मिल पाएगी. मंजर अली खान की तरह ‎हमें भी इस स्थिति पर दुख है, लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को पत्र लिखकर ‎जो मांग की है कि उर्दू शिक्षकों की कमी के कारण इन उम्मीदवारों का मेरिट दोनों ‎प्रश्न-पत्रों के प्राप्तांको को मिलाकर निकाला जाए, एवं यदि ऐसा किया जाए तो उर्दू ‎के सारे रिक्त पद भर जाएंगे.
 
पहली बात तो यह कि ऐसा करने पर भी सारे रिक्त पद ना ‎भर पाएंगे तो क्या होगा ? दूसरा, भविष्य के उर्दू शिक्षक, जिन्हें अपने समय के अन्य ‎बुनियादी और आवश्यक विषयों का ज्ञान नहीं है, वह आने वाली पीढ़ी के उर्दू पढ़ने वाले ‎बच्चों के साथ क्या न्याय कर पाएंगे ?
 
कुछ असफल उम्मीदवारों ने इसी मुद्दे पर दिल्ली उर्दू ‎अकादमी के वाइस चेयरमैन ताज मुहम्मद से मुलाकात की. उन्होंने ‎आश्वासन भी दिया कि वह इस संबंध में उपमुख्यमंत्री से बात करेंगे.
 
लेखक इस बात से भली-भांती परिचित है. उसकी इन बातों से वह युवा नाराज ‎होंगे जो कि इस प्रतियोगी परीक्षा में सफल नहीं हो पाए. लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना ‎चाहिए कि एक अच्छे शिक्षक की असली पहचान स्नेह और कड़ी मेहनत है.
 
अगर ‎शिक्षक में आवश्यक कौशल और क्षमताओं की कमी रहती है तो वह कक्षा में हंसी का पात्र ‎बन जाता है. अपने छात्रों के बीच अपने लिए कोई जगह भी नहीं बना पाता है.
 
वैसे भी ‎इस दुनिया में जहां हर कोई सर्वश्रेष्ठ की तलाश में है. एक शिक्षक केवल एक ‎विषय तक सीमित नहीं रहता है. विशेष रूप से स्कूल स्तर पर तो उसे आपात स्थिति ‎में कोई भी विषय पढ़ाने को दिया जा सकता है.
 
मुख्य रूप से सामाजिक विज्ञान और ‎मानविकी से संबंधित विषय. अब यदि आपके पास अपने विशेष विषय के अलावा अन्य ‎विषयों में आवश्यक कौशल नहीं है, तो आप अपने लिए एक अच्छी जगह नहीं बना सकते.
 
‎‎एक ऐसे वक्त में जब सेकेंड डिवीजन लाने वाले भी अच्छे कॉलेजों में प्रवेश नहीं ले पा रहे ‎है. प्रतियोगिता अब 90 से 100 प्रतिशत के बीच में है, तो उर्दू वालों को न केवल उर्दू में ‎बल्कि अन्य विषयों जैसे सामाजिक विज्ञान और मानविकी में ‎भी महारत हासिल करनी होगी.
 
रियायतें मांगने के बजाय, मेरा उर्दू अकादमी के वाइस चेयरमैन और उर्दू से संबंधित ‎संस्थानों के अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों से निवेदन है कि वह उपमुख्यमंत्री, जो शिक्षा मंत्री भी ‎हैं और उर्दू अकादमी भी उनके अधिकर क्षेत्र में आती है, से यह अनुरोध करें कि उर्दू में ‎जो 740 पद नहीं भरे जा सके हैं.
 
उनकी फिर परीक्षा कराई जाए. हर वह उम्मीदवार ‎जो इसमें सफल हो, दोबारा होने वाली इस प्रतियोगी परीक्षा में यदि वह पास हो जाते हैं ‎उस वक्त यदि उनकी आयु अधिक हो जाती है तो उनकी उम्र को उस समय से देखा और ‎माना जाना चाहिए जब उन्होंने इन रिक्तियों के विज्ञापन के समय फॉर्म भरा था.
 
साथ ही ‎प्रस्तावित प्रतियोगी परीक्षा में बैठने वालों की कोचिंग की व्यवस्था दिल्ली उर्दू अकादमी को ‎सुनियोजित ढंग से करनी चाहिए. इस तरह सुनिश्चित करें कि हमारे लड़के और ‎लड़कियां न केवल दूसरे प्रश्न-पत्र में बल्कि पहले प्रश्न-पत्र में भी शानदार सफलता अर्जित ‎करें.
 
यहां मैं दिल्ली उर्दू अकादमी के वाइस चेयरमैन और अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों को याद ‎दिलाना चाहता हूं कि जब सरकार द्वारा उर्दू शिक्षकों की भर्ती के लिए ब्ज्म्ज् अनिवार्य ‎कर दिया था, तो उर्दू अकादमी ने इन बच्चों की कोचिंग की बहुत अच्छी प्रकार से व्यवस्था ‎की थी. यह बात हमेशा याद रखी जाएगी कि उर्दू अकादमी की इस कोचिंग के ‎फलस्वरूप इसके कोचिंग सेंटर से प्रशिक्षित लड़के-लड़कियों ने ब्ज्म्ज् की परीक्षा में ‎उल्लेखनीय सफलता हासिल की है.
 
यदि कल यह हो सकता था तो आज क्यों नहीं? ‎अगर उर्दू अकादमी के पास जगह की कमी की समस्या हो या जिस तरह से दिल्ली का ‎विस्तार हो रहा है उससे उम्मीदवारों के लिए एक स्थान तक पहुंचना आसान ना हो तो ‎दिल्ली उर्दू अकादमी इसमें एक केंद्रीय और महत्वपूर्ण संस्थान के तौर पर जामिया मिल्लिया ‎इस्लामिया की फैकल्टी ऑफ एज्यूकेशन, अन्जुम तरक्की उर्दू (हिन्द), गालिब एकेडमी, ‎‎ऐवान-ए-गालिब, यमुना पार में जाकिर हुसैन स्कूल, क्रिसेन्ट पब्लिक स्कूल, निजामुद्दीन में ‎न्यू होराइजन स्कूल और हमदर्द पब्लिक स्कूल जैसे संस्थानों के साथ साझेदारी के माध्यम ‎इसे संभव बना सकती है.
 
यदि इन सभी संस्थानों में दो से तीन महीने की नियमित, ‎संगठित और नियोजित कोचिंग की व्यवस्था की जाए तो 740 पदों के लिए होने वाली ‎परीक्षा में उम्मीदवार शानदार सफलता अर्जित करेंग.
 
‎(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं.)‎