डॉ. सोनल कुलकर्णी जोशी
भारत एक ऐसा देश है जहाँ भाषाई विविधता इसकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का एक अभिन्न हिस्सा है.यहाँ लगभग 500भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें से 447भाषाएँ आज भी सक्रिय रूप से रोज़मर्रा के जीवन में उपयोग में लाई जाती हैं, जबकि 14भाषाएँ विलुप्त हो चुकी हैं.121भाषाएँ ऐसी हैं जिन्हें 10,000से अधिक लोग बोलते हैंऔर 22भाषाओं को भारतीय संविधान में अनुसूचित भाषाओं के रूप में मान्यता प्राप्त है.
इन भाषाओं में हिंदी, बंगाली, मराठी, तमिल, तेलुगु, गुजराती, उड़िया, कन्नड़, मलयालम, उर्दू, पंजाबी, असमिया, नेपाली आदि शामिल हैं। वर्ष 2011की जनगणना के अनुसार, 96.7%भारतीय नागरिक इन्हीं भाषाओं में से किसी एक को अपनी मातृभाषा मानते हैं.हिंदी देश में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है, जिसे 26.6%आबादी बोलती है, इसके बाद बंगाली (7.94%), मराठी (6.84%) और तेलुगु (6.68%) का स्थान आता है.
भारत में कोई एक "राष्ट्रीय भाषा" नहीं है, बल्कि हिंदी को राजभाषा और अंग्रेज़ी को सह-राजभाषा का दर्जा प्राप्त है.स्वतंत्रता के बाद, भारत के राज्यों का गठन भी भाषाई आधार पर किया गया, ताकि बहुसंख्यक भाषा-भाषियों को प्रशासनिक स्तर पर उनकी भाषा में सुविधा मिल सके.
भारत की भाषाएँ विभिन्न भाषा परिवारों से संबंधित हैं.सबसे बड़ा है इंडो-आर्यन भाषा परिवार, जिसमें हिंदी, बंगाली, मराठी, उड़िया, पंजाबी आदि भाषाएँ आती हैं.ये भाषाएँ संस्कृत और प्राकृत से विकसित हुई हैं और उत्तर भारत में अधिकतर बोली जाती हैं.
द्रविड़ भाषा परिवार दक्षिण भारत में प्रमुख है, जिसमें तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम शामिल हैं.इसके अलावा मुंडा या ऑस्ट्रो-एशियाई और तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार भी भारत में पाए जाते हैं, जो क्रमशः पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत की आदिवासी भाषाओं से संबंधित हैं.
भारत की भाषाएँ केवल स्थानीय नहीं हैं, बल्कि वैश्विक संबंध भी रखती हैं.उदाहरण के लिए, इंडो-आर्यन भाषाएँ यूरोपीय भाषाओं जैसे अंग्रेज़ी, जर्मन और फारसी से ऐतिहासिक रूप से जुड़ी हैं.इसी तरह, मुंडा भाषाएँ दक्षिण-पूर्व एशिया के वियतनाम और कंबोडिया की भाषाओं से संबंध रखती हैं.
भाषा की लिपि भी भारत में अत्यंत विविध है.देवनागरी लिपि हिंदी, मराठी, संस्कृत और कोंकणी जैसी कई भाषाओं में प्रयुक्त होती है.कुछ भाषाओं की एक से अधिक लिपियाँ हैं, जैसे सिंधी, जिसे देवनागरी और फारसी-अरबी दोनों में लिखा जाता है, या कोंकणी, जिसे देवनागरी, मलयालम, कन्नड़, अरबी और रोमन लिपियों में लिखा जाता है.
भारत में भाषाओं की यह विविधता किसी दीवार की तरह नहीं, बल्कि पुल की तरह कार्य करती है, जो विभिन्न समुदायों को आपस में जोड़ती है.हज़ारों वर्षों की पारस्परिकता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान ने भाषाओं को एक-दूसरे से शब्द, ध्वनि और व्याकरणिक संरचनाएँ उधार लेने के लिए प्रेरित किया है.यह बहुभाषी आत्मसात और अभिसरण ही भारत को विशिष्ट बनाता है—जहाँ विविधता में भी एकता की गूंज सुनाई देती है.
(लेखिका: डॉ. सोनल कुलकर्णी जोशी, भाषा विज्ञान की प्रोफेसर, डेक्कन कॉलेज, पुणे)