बहुत कुछ बदल सकता है ई-रूपी

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 05-08-2021
बहुत कुछ बदल सकता है ई-रूपी
बहुत कुछ बदल सकता है ई-रूपी

 

हरजिंदर

पिछले कुछ समय से यह खबर दुनिया के अखबारों और डिजिटल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रही है.चीन से आने वाली आर्थिक और वित्तीय खबरों को मीडिया में तरजीह भी काफी दी जाती है.

खबर यह है कि चीन ने अपनी मुद्रा का डिजिटल संस्करण तैयार कर लिया है- ई-युआन.इसे लेकर वहां कुछ जगहों पर काफी बड़े पैमाने पर इस मुद्रा को परखने का काम चल रहा है.लोगों के मोबाइल फोन पर यह मुद्रा पहंचाई जा रही है और उनसे कहा जा रहा है कि वे इसे इस्तेमाल करें.

जल्द ही इसका देश भर और शायद दुनिया भर में इस्तेमाल शुरू हो सकता है.पिछले दिनों चीन की यह खबर अमेरिकी मीडिया पर इस कदर छाई रही कि अंत में अमेरिका के फेडरल रिजर्व की गर्वनर लायल ब्रेनार्ड को यह कहना पड़ा कि अमेरिका भी पीछे नहीं है.वह भी जल्द ही ई-डाॅलर लाने वाला है और अब इसका कोई विकल्प भी नहीं है.

चीन और अमेरिका की इन खबरों के बीच भारत में जो हो रहा था उसकी ओर ज्यादा लोगों का ध्यान नहीं गया.जुलाई के आखिरी दिन रिजर्व बैंक ने यह संकेत जरूर दिया था कि भारत भी जल्द ही अपनी ई-मुद्रा बाजार में लाएगा और इसे चरणबद्ध तरीके से जारी और लागू किया जाएगा.तब तक किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि यह काम इतनी तेजी से हो जाएगा.

दो दिन बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ई-रूपी लांच कर दिया.पहले चरण में ई-रूपी उन लोगों को पहुंचाया जाएगा जिन्हें सरकार की तरफ से नगद मदद या किसी तरह की सब्सिडी मिलती है.

यानी वृद्धावस्था पेंशन,किसान सम्मान निधि,आयुष्मान भारत,फर्टीलाइजर सब्सिडी के तहत जो रकम लोगों को दी जाती है रुपये में नहीं ई-रूपी में होगी.अभी तक यह रकम सीधे लोगों के खाते में पहुंचती थी अब वह सीधे उनके मोबाइल फोन पर पहुंचेगी.जिनके पास स्मार्टफोन है उन्हें इसका डिजिटल कोड भेजा जाएगा और जिनके पास नहीं है उन्हें इसका कोड एसएमएस से ही मिल जाएगा.

जिन्हें यह ई-रूपी मिलेगा वे मोबाइल फोन के जरिये ही इसे खर्च कर सकेंगे यानी इससे खरीदारी कर पाएंगे.जाहिर है कि इससे यह मुद्रा बाजार में आ जाएगी और फिर उसका चलन बढ़ेगा.
चीन अपनी ई-मुद्रा का पहला प्रयोग कुछ बड़े शहरों के मध्यवर्ग से कर रहा है.

जबकि भारत में  इसका पहला प्रयोग गरीब तबकों पर हो रहा है.और किसान सम्मान निधि व फर्टीलाइजर सब्सिडी जैसी रकम तो दूर-दराज तक के गांवों के किसानों को पहुंचाई जाती है.यानी पहली ही बार में ई-रूपी सिर्फ गरीबों तक ही नहीं गांवों तक पहुंच जाएगा.

लेकिन क्या भारत इसके लिए तैयार है ? इसका जवाब पाने के लिए हमें ब्लूमबर्ग के कुछ ताजा आंकड़ों को देखना होगा.ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में जिन भी लोगों के मोबाइल फोन में ई-वैलेट है उसमें से 90 फीसदी लोगों ने पिछले एक साल में खरीदारी के लिए इसका उपयोग किया है.

जबकि चीन में यह आंकड़ा 84 फीसदी है और अमेरिका में तो महज 41 फीसदी.जाहिर है कि किसी भी दूसरे देश के मुकाबले भारत इसके लिए ज्यादा तैयार दिखाई देता है.भारत में ई-वैलेट के इस्तेमाल ने उस समय जोर पकड़ा था जब पूरे देश में नोटबंदी लागू की गई थी.

बाजार में नोट अचानक ही कम हो गए थे और इसका इस्तेमाल एक मजबूरी बन गया था.लेकिन बाद में जब बाजार में नए नोट आ गए और यह मजबूरी खत्म हो गई तब भी लोगों ने ई-वैलेट का इस्तेमाल कम नहीं किया.बल्कि यह और बढ़ ही गया.

ई-वैलेट का यह अनुभव ई-रूपी के लिए बड़ी उम्मदी बंधाता है.देश में कारोबार और खरीदारी का अनुभव जल्द ही एक बार फिर बदल सकता है.