
मौलाना नूरुल अमीन क़ासिमी
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में मुग़ल सम्राट बाबर के नाम पर मस्जिद के प्रस्तावित निर्माण का मुद्दा इन दिनों देश में सबसे अधिक चर्चा का विषय बना हुआ है। निलंबित ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस विधायक हुमायूं कबीर के नेतृत्व में चलाए जा रहे इस अभियान का कुछ लोग समर्थन कर रहे हैं, जबकि कई लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं।
कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या बाबर के नाम पर मस्जिद का निर्माण वास्तव में कोई धार्मिक आवश्यकता है? या फिर यह केवल एक राजनीतिक साज़िश का हिस्सा है? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमें इतिहास, सामाजिक स्थिति और वर्तमान परिस्थितियों—इन सभी को एक साथ देखकर समझना होगा।
इस्लाम में मस्जिद बनाने का उद्देश्य क्या है?
इस्लाम में मस्जिद इबादत की जगह होती है, शिक्षा का केंद्र होती है, समाज के लिए मार्गदर्शन का स्रोत होती है और शांति, नैतिकता व मानवता की प्रतीक होती है। मस्जिद बनाना अल्लाह पर ईमान का एक नेक कार्य है।
लेकिन इस्लाम का उद्देश्य यह नहीं है कि बिना आवश्यकता के केवल नाम के लिए मस्जिदें बनाकर लोगों में भ्रम और दुश्मनी पैदा की जाए। स्वयं पैग़ंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फूट, विवाद और अहंकार के कारण बनाई गई मस्जिद (मस्जिद-ए-ज़िरार) को मना किया था। इसलिए इस्लाम का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है—जहाँ नमाज़ पढ़ने वाले लोग हों, वहाँ मस्जिद होनी चाहिए, और जहाँ नमाज़ी ही न हों, वहाँ मस्जिद की आवश्यकता नहीं है।
अब मुर्शिदाबाद में पहले से ही कई पुरानी मस्जिदें, मदरसे और इस्लामी शिक्षण संस्थान मौजूद हैं। वहाँ के आम मुसलमानों की ओर से बाबर के नाम पर किसी ‘विशेष मस्जिद’ की कोई माँग नहीं है। फिर मुर्शिदाबाद में बाबर के नाम पर मस्जिद बनाना क्यों ज़रूरी समझा गया? यही आज का सबसे बड़ा सवाल है।
बाबर के नाम पर मस्जिद का मुद्दा समकालीन भारतीय मुसलमानों की किसी भी शैक्षिक, सामाजिक या सांस्कृतिक आवश्यकता से जुड़ा नहीं है। इसलिए इस मस्जिद के निर्माण के उद्देश्य पर गंभीरता से विचार करना ज़रूरी है।

‘बाबर के नाम पर मस्जिद’, इस्लामी दृष्टिकोण
भारत में अयोध्या की मस्जिद को लेकर हिंदू-मुस्लिमों के बीच चला आ रहा पुराना विवाद अब समाप्त हो चुका है। देश के सभी मुसलमानों ने राम मंदिर के पक्ष में आए अदालत के फ़ैसले को स्वीकार किया है और हिंदू समाज की भावनाओं का सम्मान किया है। ऐसी स्थिति में अगर देश के किसी अन्य हिस्से में बाबर के नाम पर मस्जिद बनाई जाती है, तो यह पुराने विवादों को फिर से जीवित करने और समुदाय को नुकसान पहुँचाने जैसा होगा। इसलिए हमें देखना चाहिए कि इस्लाम ऐसे विवाद पैदा करने वाली मस्जिदों के बारे में क्या कहता है।

क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है:
“और कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने एक मस्जिद बनाई नुकसान पहुँचाने के लिए, कुफ़्र को बढ़ाने के लिए, ईमान वालों के बीच फूट डालने के लिए और अल्लाह व उसके रसूल से पहले लड़ने वालों के लिए अड्डा बनाने के लिए… वे क़सम खाएँगे कि हमारा उद्देश्य तो केवल भलाई था, लेकिन अल्लाह गवाही देता है कि वे झूठे हैं।”
(सूरह तौबा: 107)
यह आयत साफ़ तौर पर उन मस्जिदों की निंदा करती है जो झगड़ा, विभाजन और फ़ितना फैलाने के लिए बनाई जाएँ।

उलमा की राय
अब तक उम्मत के किसी भी प्रमुख आलिम (धार्मिक विद्वान) ने मुर्शिदाबाद में बाबर के नाम पर मस्जिद के निर्माण का समर्थन या सहयोग नहीं किया है। सभी इसके विरोध में हैं। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि यह कोई धार्मिक आवश्यकता नहीं है। अगर यह कोई धार्मिक ज़रूरत होती, तो उलमा अवश्य मार्गदर्शन और समर्थन देते।
वर्तमान हालात, इतिहास, समाज और ज़मीनी सच्चाई का समग्र रूप से अध्ययन करने पर एक बात स्पष्ट होती है-यह सारा शोर, बहस और उत्तेजना किसी राजनीतिक ताक़त की साज़िश का हिस्सा है। भारतीय मुस्लिम समुदाय को यह समझना चाहिए कि इस्लाम विभाजन का नहीं, बल्कि शांति और भाईचारे का धर्म है।इसलिए मस्जिदें वहीं बनाई जानी चाहिए जहाँ उनकी वास्तव में ज़रूरत हो। जहाँ ज़रूरत नहीं है, वहाँ अनावश्यक राजनीति निश्चित रूप से देश और उम्मत—दोनों को नुकसान पहुँचाएगी।
(लेखक: इस्लामिक स्टडी एंड रिसर्च अकादमी असम, तेज़पुर के अध्यक्ष)