मैं हिंदुस्तानी लिखता हूं क्योंकि मैं हिंदुस्तानियों के लिए लिख रहा हूंः जावेद अख्तर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 12-01-2024
Javed Akhtar and Prof Alok Rai
Javed Akhtar and Prof Alok Rai

 

तृप्ति नाथ / नई दिल्ली

प्रसिद्ध गीतकार और कवि जावेद अख्तर ने गुरुवार शाम यहां ‘हिंदी और उर्दू सियामी ट्विन्स’ पर एक चर्चा के दौरान कहा, मैं हिंदुस्तानी लिखता हूं, क्योंकि मैं हिंदुस्तानियों के लिए लिख रहा हूं. मैं न तो उर्दू के लिए लिख रहा हूं और न ही हिंदीवालों के लिए. जिस दिन आप हिंदुस्तानियों को संबोधित करना शुरू कर देंगे, आपकी भाषा अपने आप ठीक हो जाएगी.’’

सभागार खचाखच भरा हुआ था और दर्शक खुशी-खुशी ठंड का सामना करते हुए फर्श पर बैठे और यहां तक कि दो घंटे से अधिक समय तक खड़े रहकर दो साहित्यिक दिग्गजों को सुना, जावेद अख्तर ने सेवानिवृत्त लेखक और कवि प्रोफेसर आलोक राय के साथ बातचीत की. 

अनुभवी राजनयिक और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के अध्यक्ष श्याम सरन ने दोनों साहित्यकारों का परिचय कराते हुए कहा कि जहां जावेद अख्तर के परिवार की सात पीढ़ियां लेखन से जुड़ी हैं, वहीं आलोक राय प्रसिद्ध हिंदी लेखक प्रेम चंद के पोते हैं.

हिंदी और उर्दू से लिए गए शब्दों के साथ हिंदुस्तानी के एक शब्दकोश के प्रस्ताव पर अख्तर ने कहा कि शब्दकोश की लिपि रोमन या देवनागरी हो सकती है. उन्होंने कहा, ‘‘हिंदी और उर्दू दोनों में बहुत कुछ समानता है. क्यों न विद्वानों और लेखकों को एक साथ लाकर एक शब्दकोश तैयार किया जाए और साथ ही हिंदी और उर्दू में सर्वश्रेष्ठ लेखन को भी एक साथ रखा जाए? मैं आपको बता दूं कि प्रेम चंद हिंदी में लिखना शुरू करने से पहले वर्षों तक उर्दू में लिखते रहे थे और उन्हें उर्दू-हिंदी लेखक कहा जाना चाहिए. हम उर्दू और हिंदी में कविताएँ क्यों नहीं संकलित करते? उर्दू शायरी में शब्दों का दुर्लभ प्रवाह और पिघलने का गुण है. लोग स्क्रिप्ट को लेकर संवेदनशील हैं. मैं देवनागरी का सुझाव देता हूं, क्योंकि इसमें गलत उच्चारण की कोई गुंजाइश नहीं है. आप इसे रोमन में भी रख सकते हैं, क्योंकि इससे बच्चे को दूसरी लिपि सीखने की परेशानी से राहत मिलेगी.’’

इस सवाल पर कि पिछले कुछ वर्षों में उर्दू की किस तरह उपेक्षा की गई है और फिल्मों में इसके प्रभावशाली उपयोग के बावजूद यह संस्थागत और राज्य स्तर पर कैसे मर रही है, अख्तर ने कहा, ‘‘यह सही है कि पिछले कुछ समय से कई शासनों ने उर्दू के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया है. हिंदुस्तान में इस लिपि को पढ़ने वालों की संख्या कम होती जा रही है और देवनागरी में उर्दू पढ़ने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह देखना असामान्य नहीं है कि जिन उर्दू कवियों की किताबें देवनागरी में प्रकाशित होती हैं, वे 24 से 25 खंडों में प्रकाशित होती हैं. जनता के बीच देवनागरी में उर्दू किताबों की लोकप्रियता बढ़ रही है, लेकिन मुझे किसी भी उर्दू लेखक को देवनागरी में लिखना शुरू करने और अपनी लिपि से हटने के लिए कहने का कोई अधिकार नहीं है.’’

अख्तर कहते हैं, ‘‘मैं माता-पिता से पूछना चाहूँगा कि वे अपने बच्चों को उनकी मातृभाषा क्यों नहीं सिखाते. यहूदियों को देखें कि उन्होंने 2000 वर्षों तक हिब्रू भाषा को कैसे संरक्षित रखा, क्योंकि वे अपनी भाषा से प्यार करते थे. यदि आप उर्दू से प्यार करते हैं, तो आपको अपने बच्चों को उर्दू में निजी ट्यूशन देने से कौन रोक रहा है? आपको उर्दू अखबारों और पत्रिकाओं की सदस्यता लेने से कौन रोक रहा है? सारा दारोमदार सरकार पर डालना ठीक नहीं है.’’

राय ने कहा, ‘‘उर्दू के प्रति सरकारी उपेक्षा के साथ-साथ इसके प्रति भारी चाहत भी है. इसे शत्रुता कहें या उपेक्षा - गलतफहमी है या इससे भी बदतर. उर्दू सभाओं में भारी भीड़ उमड़ती है. हमें इस विरोधाभास को समझने की जरूरत है. हजारों वर्षों में दुनिया के विभिन्न कोनों से सुंदर प्रभावों का उपयोग करके उर्दू का निर्माण किया गया है. एक तरह से, यह हमारी सभ्यता की सर्वोत्तम चीजों का आसवन है. लोग उर्दू की इस खूबी को पहचानते हैं. हम वाकपटुता की लालसा रखते हैं. यह संग्रह एक ऐसा स्थान है, जहां हमें वह संतुष्टि मिलती है. हमारे सार्वजनिक जीवन में वाकपटुता कम होने के बावजूद वाकपटुता की भूख बरकरार है. उर्दू की गिरावट को हमेशा नकारा जाता है और यह अनुमान लगाया जाता है कि यह ठीक चल रही है.’’

जावेद अख्तर ने बताया कि हिंदी से उर्दू शब्दों को बाहर करने से हिंदी को नुकसान होगा. उन्होंने कहा, ‘‘अन्य संस्कृतियों और भाषाओं से शब्द उधार लेना एकतरफा यातायात नहीं है. भाषाएं अन्य भाषाओं से उधार लेकर समृद्ध होती रहती हैं. ऐसे बहुत से वाक्यांश हैं, जो तन (फारसी)-मन-धन (संस्कृत) या शादी-ब्याह जैसे शब्दों को जोड़कर बनाए गए हैं. संदर्भ के अनुसार हिंदी और उर्दू शब्दों का प्रयोग किया जाता है.’’ जावेद अख्तर ने कहा कि मैथिली, भोजपुरी और अवधी जैसी भाषाएं भी इन भाषाओं में असाधारण कविता के बावजूद उपेक्षित हैं.

सभा में भाग लेने वालों में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, अनुभवी राजनयिक सुरेंद्र कुमार और प्रसिद्ध स्तंभकार पूनम सक्सेना प्रमुख थे.