सेराज अनवर/पटना
एक ही सफ में खड़े हो गए महमूद व अयाज
न कोई बंदा रहा और ना कोई बंदा नवाज
उर्दू के मशहूर शायर अल्लामा इक़बाल इस शेर के ज़रिए यह बताने की कोशिश करते हैं कि इस्लाम धर्म के सभी मानने वाले बराबर हैं और उनमें किसी प्रकार की कोई ऊंच-नीच नहीं है.जब नमाज़ पढ़ने के लिए खड़े होते हैं तो दोनों एक ही लाइन में होते हैं. यानी न तो उस समय कोई बादशाह(महमूद)होता है और न ही कोई ग़ुलाम((अयाज़).लेकिन मस्जिदों के यथार्थ से सामाजिक सच्चाई बिल्कुल अलग है.मुस्लिम समाज भी जातियों में बुरी तरह बंटा हुआ है.
इस्लाम का पड़ा पर्दा अब खुलने वाला है.बिहार में चल रही जातीय जनगणना मुस्लिम समाज का पोल-पट्टी खोल कर रख देगी.जब मुस्लिम बिरादरी की असल जनसंख्या सामने आयेगी.इसके बाद सत्ता,सरकार,सियासत और सामाजिक,धार्मिक संगठनों में आबादी और पिछड़ेपन की तुलना में उचित हिस्सेदारी का दबाव बढ़ेगा.
कह सकते हैं कि जातीय जनगणना से बिहार की सियासी,सामाजिक संरचना में भारी उथल-पुथल मच जायेगा.इमारत ए शरिया और अन्य मुस्लिम संगठनों ने जातीय जनगणना को गम्भीरता से लेते हुए सरकारी कर्मचारियों के साथ सहयोग की अपील की है.
बिहार बना पहला प्रदेश
देश में जाति आधारित गणना कराने वाला बिहार पहला प्रदेश बन गया है.7 जनवरी को बिहार में विधिवत जाति आधारित गणना से जुड़े काम का आगाज हुआ.वैशाली के भगवानपुर स्थित हुसैना में अपने समाधान यात्रा के क्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वयं जाति आधारित गणना का काम देखा.
मुख्यमंत्री ने कहा कि जाति आधारित गणना के दौरान अगड़ी जाति,पिछड़े वर्ग तथा दलित-महादलित सहित सभी वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति का भी पता लगाया जाएगा.सभी लोगों की आर्थिक स्थिति की जानकारी मिलने के बाद जो कमजोर होंगे उन्हें आगे बढ़ाया जाएगा.
सभी जाति-धर्म के लोगों की स्थिति अच्छी होगी तभी राज्य आगे बढ़ेगा. मुख्यमंत्री ने पुन: यह दोहराया कि जाति आधारित गणना के आधार पर यहां जो रिपोर्ट तैयार होगी वह केंद्र को भी भेज दी जाएगी.
वे लोग भी यह देख लें कि यहां हम लोगों ने किस तरह से काम किया है.अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि् सही मायने में सबकी गिनती होनी चाहिए. इसके लिए जो गांव में रह रहे हैं, शहर में रह रहे या फिर घर छोड़कर बाहर रह रहे उन सभी के बारे में पूरी जानकारी ली जाए.
इस रिपोर्ट को सरकार प्रकाशित भी कराएगी.पहले चरण में 21 जनवरी तक मकान-परिवार की गिनती होगी.दूसरा चरण 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक चलेगा.जिसमें जाति की गिनती समेत 26 प्रकार की जानकारी लोगों से ली जायेगी.
मुस्लिम जातियों की स्थिति
पसमांदा मुसलमान जाति आधारित जनगणना में हिंदुओं की ओबीसी जातियों की तरह मुसलमानों की पिछड़ी जातियों की भी गिनती की हिमायत में है. देश में हर 10 साल के बाद जनगणना होती है.
इसमें किसी जाति की कितनी संख्या है, उसका विवरण नहीं होता. मुस्लिम समाज की जनसंख्या भी धर्म के आधार पर की जाती है. जब जातीय जनगणना होगी, तब हर धर्म में मौजूद जातियों का पता चलेगा.
जाति आधारित जनगणना से सामाजिक और आर्थिक दर्जे का भी ध्यान रखा जाना है.. इससे पिछड़ी हुई मुस्लिम जातियों को फ़ायदा मिलेगा और पिछड़ेपन के आधार पर उन्हें न सिर्फ़ आरक्षण में मदद मिल सकती है बल्कि मुस्लिम समुदायों को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) और ईबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग) के रूप में सूचीबद्ध किये जाने से बिहार सरकार के कल्याणकारी योजनाओं का भी लाभ मिल सकेगा.
गया निवासी सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता मिंहाज़ुल रशीद कहते हैं कि हिंदुओं की तरह मुसलमानों में ओबीसी का सही आंकड़ा सामने आना चाहिए.मुसलमानों के नाम पर सारे सुख- सुविधाओं का लाभ मुस्लिम समाज की कुछ उच्च जातियों को मिल रहा है.
ऐसे में मुस्लिम ओबीसी जातियों की स्थिति हिंदुओं से भी खराब है.दीगर बात यह है कि मस्जिद में जाति व्यवस्था लागू नहीं होती,क्योंकि इस्लाम इसकी इजाज़त नहीं देता.लेकिन राज्यसभा सांसद रहे अली अनवर अंसारी की राय थोड़ी अलग है. वे कहते हैं, "जीने से लेकर मरने तक मुसलमान जातियों में बंटा हुआ है.शादी तो छोड़िए, रोटी-बेटी का रिश्ता भी नहीं है एक दो अपवाद को छोड़कर."
'अशराफ़', 'अजलाफ़', और 'अरज़ाल'
बहुत सारे लोगों को तो लगता है कि मुसलमानों में जाति के आधार पर कोई भेद ही नहीं है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मुसलमानों में भी जातियां तो हैं, लेकिन उनमें उतने गंभीर मतभेद हैं नहीं, जितना कि हिंदुओं में है.
भारतीय मुसलमान मुख्यतः तीन जाति समूहों में बंटा हुआ है. इन्हें 'अशराफ़', 'अजलाफ़', और 'अरज़ाल' कहा जाता है. ये जातियों के समूह हैं, जिसके अंदर अलग-अलग जातियां शामिल हैं. हिंदुओं में जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण होते हैं, वैसे ही अशराफ़, अजलाफ़ और अरज़ाल को देखा जाता है.
अशराफ़ में सैयद, शेख़, पठान, मलिक जैसी उच्च जातियां शामिल हैं. मुस्लिम समाज की इन जातियों की तुलना हिंदुओं की उच्च जातियों से की जाती है.दूसरा वर्ग है- अजलाफ़. इसमें बीच की जातियां शामिल हैं.
इनकी एक बड़ी संख्या है, जिनमें ख़ास तौर पर अंसारी, मंसूरी, राइन, क़ुरैशी,कलाल जैसी कई जातियां शामिल हैं. तीसरा वर्ग है- अरज़ाल.इसमें दर्जी, धोबी, गद्दी, फाकिर, हज्जाम (नाई),, कबाड़िया, कुम्हार, कंजरा, मिरासी, मनिहार, तेली हलालख़ोर, हवारी, रज़्ज़ाक,मीर शिकार जैसी जातियां शामिल हैं.
हिंदुओं में मैला ढोने का काम करने वाले लोग मुस्लिम समाज में हलालख़ोर और पंछी पकड़ने वाली जाति को मीर शिकार कहा जाता है.मुसलमानों में यह सबसे निचले दर्जे की जातियां हैं.जो समाज के मुख्यधारा से कोसों दूर है.न धार्मिक संगठनों को इन जाति की तार-तार ज़िंदगी पर तरस आती है न सरकार को इनकी बदहाली से मतलब है?
गिनती से असरअंदाज़ होगा मुस्लिम समाज
चुनावी विश्लेषणों में हर सीट पर हिंदुओं में ब्राह्मण, राजपूत, क्षत्रिय, दलित, आदिवासी की बात होती है. लेकिन, मुस्लिम समाज में जाति आधारित भागीदारी की बात नहीं की जाती है.मुस्लिम समाज में भी जातियां और अलग-अलग समुदाय हैं.
लेकिन, सबको केवल मुसलमान के तौर पर पेश किए जाने की वजह से मुस्लिम समाज के कमजोर तबके यानी गरीब,पिछड़ा और दलित को उचित सम्मान नहीं मिल पाता है. संपन्न मुस्लिम इस कमजोर तबके के हक दबा जाते हैं.
मौजूदा बिहार विधानसभा में 19 मुस्लिम विधायक हैं.यह जानकर हैरत होगी कि दो को छोड़ 17 अपर कास्ट से हैं.राज्यसभा में दो मुस्लिम भी अग्ड़ी जाति के हैं.लोकसभा में बिहार से एक सांसद भी फ़ॉरवर्ड जाति के हैं.विधान परिषद में चार में मात्र एक पसमांदा जाति के हैं.
मुस्लिम पसमांदा जाति के विश्लेषक पत्रकार इरशादुल हक़ कहते हैं कि जनगणना के बाद बेशक आर्थिक,सामाजिक,सियासी स्थिति देखते हुए और जनसंख्या के आधार पर राजनीतिक दलों पर उचित हिस्सेदारी का दबाव बढ़ेगा.
अभी तो 17 प्रतिशत आबादी के हिसाब से मुसलमानों को टिकट बँटवारे में भागीदारी तय होती रही है लेकिन बाद में 17 फ़ीसद मुस्लिम आबादी में 85प्रतिशत पसमांदा तबक़ा की भागीदारी देखी जायेगी.इरशादुल हक़ की माने तो जनगणना से मुस्लिम सियासत के साथ धार्मिक संगठनों पर बड़ा फर्क़ पड़ेगा.
धार्मिक संगठनों में भी जनसंख्या के आधार पर हिस्सेदारी का सवाल उठेगा.पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय संयोजक प्रो.फ़िरोज़ मंसूरी का दावा है कि मुस्लिम समाज में 85 फीसदी आबादी पसमांदा की है.
मुस्लिम समाज के दलित और पिछड़े वर्ग से आने वालों मुसलमानों को पसमांदा कहा जाता है. भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत-उलेमा-ए-हिंद जैसे मुसलमानों के तमाम प्रतिनिधि संगठनों और राजनीति में अशराफ यानी अगड़ी जाति के मुसलमानों का ही बोलबाला है.
दलित और पिछड़े वर्ग से आने वाले ये पसमांदा मुसलमान भारत के अलग-अलग राज्यों में हैं, खास तौर से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं.
उनका कहना है कि जाति की गिनती से पसमांदा बिरादरी की उन जातियों का पोल भी खुल जायेगा जो अन्य जातियों के हक़ को हड़पे हुए हैं और ख़ुद को बड़ी आबादी बताते हैं.ज़्यादा तर अंसारी बिरादरी में घुसपैठ हुआ है.इससे पोल-पट्टी खुलेगी कि असल में किस जाति की कितनी आबादी है. जनगणना घाटे का सौदा नहीं है.सभी जाति को होशियारी से अपनी गिनती करानी चाहिये.
इमारत ए शरिया की अपील
मुसलमानों का प्रतिनिधित्व संगठन इमारत ए शरिया ने बिहार के मुसलमानों के नाम जारी अपील में कहा है कि जनगणना में सरकारी अमला को पूर्ण सहयोग करने को कहा है.कार्यकारी नाज़िम मौलाना शिब्ली अल क़ासमी के मुताबिक़ अमीर ए शरीयत मौलाना अहमद वली फ़ैसल रहमानी इस सिलसिले में बहुत फ़िक्रमंद हैं.
उन्होंने तमाम लोगों के नाम अपनी ख़ास हिदायत जारी की है कि मर्दमशुमारी के इस काम में सरकारी अमला का तआऊन करें.अपनी निगरानी में मस्जिद,मदरसा,इबादतगाह,कम्यूनिटी हॉल आदि का सही-सही जानकारी दर्ज करायें.
घर के मुखिया का नाम और घर के दीगर सदस्यों की संख्या दर्ज कराने में इस बात का ज़रूर ख़्याल रखें कि उसमें वही नाम लिखायें जो आधार कार्ड,एलेक्शन आइडी कार्ड,सर्टिफिकेट या किसी दूसरे दस्तावेज में दर्ज हो.
नाम लिखवाने में कोई ग़लती नहीं होनी चाहिये और कोई भी मकान गणना में छूटने नहीं पाये.बिहार राबता कमिटी और उर्दू एक्शन कमिटी बिहार ने भी अपील जारी कर कहा है कि यदि जनगणनाकर्मी नहीं आया हो,या कोई घर छूट रहा हो या अमला सहयोग नहीं कर रहा हो ऐसी सूरत में इसकी सूचना तुरंत अपने प्रखंड के बीडीओ को लाज़िमी तौर पर दें.
जरूरत हो तो जिला मजिस्ट्रेट से भी शिकायत करनी चाहिये ताकि मसअला का हल उसी वक़्त हो जाये.