वक्फ पर शीर्ष अदालत के फैसले को लेकर तृणमूल सांसद ने साधा सरकार पर निशाना

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 16-09-2025
Trinamool MP targeted the government over the Supreme Court's decision on Waqf
Trinamool MP targeted the government over the Supreme Court's decision on Waqf

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

 
तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओब्रायन ने उच्चतम न्यायालय द्वारा वक्फ संशोधन अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगाने के बाद सरकार पर निशाना साधा है.
 
उन्होंने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायालय को इस तरह के गंभीर सवालों का भी जवाब देना होगा कि क्या वक्फ अधिनियम समानता और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे अधिकारों का उल्लंघन करता है.
 
एक ब्लॉग पोस्ट में, ओब्रायन ने कहा कि केंद्र के लिए इस सप्ताह की शुरुआत एक और ‘काले सोमवार’ के साथ हुई.
 
ओब्रायन ने कहा कि शीर्ष अदालत ने वक्फ अधिनियम, 2025 के दो सबसे विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगा दी है - पहला, किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित करने से पहले पांच साल तक इस्लाम का पालन करना आवश्यक है, और दूसरा यह प्रावधान कि एक नामित अधिकारी नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों का न्याय कर सकता है.
 
तृणमूल कांग्रेस नेता ने कहा कि संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 का पारित होना ‘छल-कपट और टालमटोल’ से प्रभावित है.
 
राज्यसभा सदस्य ने कहा, ‘‘संसद का एक सामान्य पर्यवेक्षक भी यह बता सकता है कि भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन किस तरह संसदीय प्रक्रिया का मज़ाक उड़ा रहा है.
 
उन्होंने कहा कि विधेयक को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेजने का प्रस्ताव, सत्र के आखिरी दिन फिर से पेश किया गया था, और जब संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रिपोर्ट संसद में पेश की गई, तो विपक्षी सदस्यों के असहमति के नोटों को ‘सफेदी का इस्तेमाल करके मिटा दिया गया’.
 
उन्होंने कहा कि वक्फ (संशोधन) विधेयक संसद में आधी रात को, राज्यसभा में लगभग आधी रात को और लोकसभा में देर रात एक बजे से पहले पारित किया गया था। उन्होंने कहा कि ‘मणिपुर’ पर सुबह तीन बजे चर्चा हुई थी.
 
ओब्रायन ने कहा कि इस मामले में एक प्रमुख तर्क संवैधानिकता के पक्ष में पूर्व धारणा के सिद्धांत का था, जिसका अर्थ है कि जब किसी कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी जाती है, तो अदालतों को आम तौर पर कानून को वैध मान लेना चाहिए और उसे तब तक बरकरार रखना चाहिए जब तक कि स्पष्ट रूप से इसके विपरीत कोई बात साबित न हो जाए.