कोर्ट की तरह आदेश जारी नहीं कर सकता काजी शरीयतः हाईकोर्ट

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 26-01-2022
कोर्ट की तरह आदेश जारी नहीं कर सकता काजी शरीयतः हाईकोर्ट
कोर्ट की तरह आदेश जारी नहीं कर सकता काजी शरीयतः हाईकोर्ट

 

इंदौर. मुस्लिम समुदाय के विवादों को सुलझाने में काजी या कोई अन्य धर्मगुरु मध्यस्थ की भूमिका तो निभा सकता है, लेकिन किसी भी मामले में कोर्ट जैसा आदेश नहीं दे सकता. इंदौर उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.

दारुल कजा छावनी के मुख्य काजी के आदेश को इंदौर उच्च न्यायालय की डबल बेंच में चुनौती दी गई थी. दारुलकजा के हवाले से अदालत को बताया गया कि मुख्य काजी ने ‘खुला’ (मुस्लिम महिला के पति को तलाक देने का इस्लामी तरीका) के लिए एक महिला की अर्जी पर सुनवाई के दौरान तलाक का आदेश दिया था.

याचिका में मध्यस्थ की भूमिका पर बाध्यकारी निर्णय को असंवैधानिक घोषित करने की भी मांग की गई है.

अधिवक्ता हरीश शर्मा के अनुसार इंदौर उच्च न्यायालय की डबल बेंच ने पूरे मामले की सुनवाई करते हुए निर्णय में विचार किया कि यदि कोई काजी अपने समुदाय के लोगों के बीच विवादों को सुलझाने में मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है, तो काजी का अधिकार क्षेत्र कानूनी है, लेकिन ऐसे विवादों में यह अदालत की तरह फैसला नहीं कर सकता और न ही उसे अदालत की तरह आदेश जारी करने का अधिकार है.

इंदौर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए आदेश में स्पष्ट किया कि किसी भी समाज के किसी भी काजी या पंचया धर्मगुरु को ऐसा आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है. मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति विवेक रोजा और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार वर्मा ने की.