नई दिल्ली
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच बढ़ते टकराव के बीच एक बार फिर न्यायिक सक्रियता पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि संसद संविधान के तहत सर्वोच्च संस्था है और कोई भी संस्था इससे ऊपर नहीं हो सकती.
धनखड़ ने कहा, “एक प्रधानमंत्री जिसने आपातकाल लागू किया था, उसे 1977 में जवाबदेह ठहराया गया था. यह दर्शाता है कि संविधान जनता के लिए है और इसकी रक्षा की जिम्मेदारी उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों पर है। संसद संविधान की विषय-वस्तु की अंतिम स्वामी है..
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दो विरोधाभासी निर्णयों का हवाला देते हुए न्यायपालिका की भूमिका पर सवाल खड़े किए और कहा कि लोकतंत्र में संवाद और विमर्श का अत्यधिक महत्व है. उन्होंने चेतावनी दी कि “हमारी चुप्पी बहुत खतरनाक हो सकती है.हमें संस्थाओं की गरिमा बनाए रखनी चाहिए और संविधान के अनुसार चलना चाहिए.”
धनखड़ ने हाल के प्रदर्शनों और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाओं पर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा, “हम अपने लोकतंत्र में इस तरह की अशांति को बर्दाश्त नहीं कर सकते. पहले संवाद के माध्यम से, और अगर जरूरत पड़ी तो सख्त कदम उठाकर, हमें इन ताकतों को बेअसर करना होगा.”
उपराष्ट्रपति की यह टिप्पणी उस वक्त आई है जब सुप्रीम कोर्ट पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन और अर्धसैनिक बलों की तैनाती की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा था, “क्या आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को आदेश दें? वैसे भी हम पर कार्यपालिका में हस्तक्षेप करने के आरोप लग रहे हैं.”
इससे पहले, उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी की भी आलोचना की थी, जिसमें कोर्ट ने राज्य विधेयकों पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए समयसीमा तय करने की बात कही थी.
धनखड़ ने कहा, “क्या अब न्यायाधीश कानून भी बनाएंगे, कार्यपालिका की भूमिका भी निभाएंगे और सुपर संसद की तरह काम करेंगे? और यह सब बिना किसी जवाबदेही के, क्योंकि उन पर देश का कानून लागू नहीं होता?”
उनकी यह टिप्पणी न्यायपालिका की सीमाओं, जवाबदेही और संसद की सर्वोच्चता को लेकर जारी राष्ट्रीय बहस को और गहरा कर गई है.