ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
राजनीति में हास्य एक जबरदस्त ताकत है — ऐसा कला-पूरित उपकरण जो तनाव को कम करता है, जुड़ाव को बढ़ाता है और सच्चाई को रोशनी देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए, हास्य केवल सजावट नहीं है; यह उनके नेतृत्व की शैली में गहराई से बुना गया एक जीवंत धागा है।
चाहे संसद में उनके काव्यात्मक तंज और शब्दों की चतुराई हो, गुजरात की जनसभाओं में तीखा व्यंग्य, या वैश्विक मंच पर हल्की-फुल्की नोकझोंक — उनका हास्य राजनीतिक संवाद को गर्मजोशी और आत्मीयता से भर देता है। उनके व्यक्तित्व की यह हल्की फुल्की छाया यह दर्शाती है कि वे मानते हैं कि जब सच्चाई मुस्कराकर कही जाती है, तो वह गहराई से असर करती है। जो प्रसन्न करता है, वह टिकता है — और मोदी के मामले में, हास्य दिलों और दिमागों के बीच एक पुल बन जाता है।
जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने, तो उनके हास्य में धार आ गई। जनसभाओं में उनका व्यंग्य एक शक्तिशाली राजनीतिक हथियार बन गया। कांग्रेस नेताओं के वादे उन्हें बॉलीवुड के संवादों जैसे लगते:
“कांग्रेस के नेता ऐसे वादे करते हैं जैसे शोले का गब्बर – ‘अरे ओ सांभा, कितने वोट लाए?’”
गरीब कल्याण मेलों में, जहां सरकारी योजनाएं प्रदर्शित की जाती थीं, वे अपने आलोचकों पर तीखा कटाक्ष करते:
“उन्हें गरीब कल्याण मेला पसंद नहीं, शायद वो गरीब रुलाओ मेला करना चाहते हैं।”
और जब उनसे पूछा गया कि वे विरोधियों के हमलों से कैसे निपटते हैं, तो उनका जवाब था:
“मैं रोज़ 2-3 किलो गालियां खा जाता हूं, इसलिए मुझे कुछ नहीं होता।”
यह बात इतनी लोकप्रिय हुई कि उन्होंने इसे प्रधानमंत्री बनने के बाद भी दोहराया।
विधानसभा में, हास्य उनका कवच बन गया। जब विपक्षी विधायक उन पर तानाशाही का आरोप लगाते, तो वे मुस्कराते हुए जवाब देते:
“शायद आपको समस्या इस बात से है कि मैं आपकी तरह ‘हॉलिडे सीएम’ नहीं हूं।”
इस तरह उनका व्यंग्य उन्हें आलोचना से बचाने के साथ-साथ जनता को भी लुभाता रहा।
फरवरी 2020 की लोकसभा बहस के दौरान एक यादगार पल आया। जब राहुल गांधी ने कहा कि “युवाओं की नाराजगी छह महीने में मोदी को डंडे से मारेगी,” तो प्रधानमंत्री मोदी ने चुटकी ली:
“मैं 30-40 मिनट से बोल रहा हूं, पर करंट अब पहुंचा है। बहुत से ट्यूबलाइट ऐसे ही होते हैं।”
इसके बाद उन्होंने कहा:
“मैं अब ज्यादा सूर्य नमस्कार करूंगा ताकि पीठ पर डंडे झेल सकूं... मैं खुद को गाली-प्रूफ और डंडा-प्रूफ बना लूंगा। अच्छा हुआ, पहले से चेतावनी मिल गई।”
एक अन्य पल में, जब कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी बार-बार खड़े हो रहे थे, तो मोदी ने हंसते हुए कहा:
“ये तो संसद में ‘फिट इंडिया’ अभियान का प्रचार कर रहे हैं।”
बेरोज़गारी पर आलोचना का जवाब देते हुए मोदी ने चुटकी ली:
“मैं देश की बेरोज़गारी दूर करूंगा, लेकिन इनकी बेरोज़गारी नहीं।”
एक और दिलचस्प पल में उन्होंने कहा:
“अगर मैं आपकी बातों का एक-एक जवाब देने लगूं तो मैं गूगल सर्च जैसा हो जाऊंगा।”
छात्रों के साथ, उनके मज़ाक आम बोलचाल का हिस्सा बन चुके हैं। “PUBG वाला है क्या?” जैसी टिप्पणी तुरंत मीम बन गई और युवाओं के बीच लोकप्रिय हो गई।
वैश्विक मंच पर भी मोदी का हास्य कूटनीति का एक औजार बन गया। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से उन्होंने चुटकी ली:
“आजकल आप ट्विटर पर लड़ाई लड़ रहे हैं?”
एक बार एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में अनुवादक हिंदी और अंग्रेज़ी के बीच उलझ गया, तो मोदी ने मुस्कराते हुए कहा:
“चिंता मत कीजिए, हम भाषा मिला भी सकते हैं।”
2014 के चुनाव अभियान में उन्होंने कांग्रेस की गिरती स्थिति पर एक ही लाइन में हमला बोला:
“400 से 40 हो गए।”
पाकिस्तान पर उनका चुटीला तंज:
“उनके लिए झंडे पर चांद है, मेरे लिए चांद पर झंडा हो।”
2017 में, डॉ. मनमोहन सिंह पर की गई उनकी टिप्पणी ने संसद में हंगामा खड़ा कर दिया:
“वो बाथरूम में रेनकोट पहनकर नहाना जानते हैं।”
वैश्विक मंचों पर, मोदी ने हास्य के ज़रिए भारत की बदलती छवि को प्रस्तुत किया।
2014 में न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में उन्होंने कहा:
“हमारे पूर्वज सांप से खेलते थे, आज हमारे युवा माउस से खेलते हैं।”
यह लाइन सुनकर पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
उसी अमेरिकी दौरे में, भारत के मंगल मिशन पर उन्होंने कहा:
“अहमदाबाद में ऑटो से एक किलोमीटर जाने पर ₹10 लगते हैं। हमने ₹7 प्रति किलोमीटर में 65 करोड़ किलोमीटर का सफर करके मंगल पहुंच गए।”
मोदी का हास्य आम आदमी की संस्कृति से जुड़ा है — चाहे वह क्रिकेट हो, सिनेमा, कहावतें या ऑनलाइन गेमिंग की भाषा। यही कारण है कि उनकी बातें पीढ़ियों को जोड़ती हैं।
वहीं, उनका हास्य संघर्षों को हल्का बनाता है, लेकिन उनकी दृढ़ता को कमजोर नहीं करता। लंबी बहसें अक्सर उनके एक वाक्य में सिमट जाती हैं — जो हेडलाइन बनते हैं, मीम बनते हैं और व्हाट्सएप पर वायरल हो जाते हैं।
सबसे अहम बात — उनका हास्य उनके नेतृत्व को मानवीय बनाता है। जब वे कहते हैं कि वे “रोज़ 2-3 किलो गाली खाते हैं” या खुद को “नूब” कहते हैं, तो वे सत्ता की ऊंचाई को जनता की ज़मीन से जोड़ देते हैं।
राजनीति में हंसी दुर्लभ होती है, लेकिन जब आती है, तो वो भाषणों से भी ज़्यादा असर कर सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार दिखाया है कि एक तेज़ हास्यबुद्धि न केवल विरोधियों को निरस्त कर सकती है, बल्कि दिल जीतने और सच कहने का सबसे असरदार तरीका बन सकती है।
राजनीति में, कभी-कभी एक मुस्कान ही सबसे ताकतवर हथियार होती है — और मोदी ये बखूबी जानते हैं।
क्योंकि… हँसना ज़रूरी है!