मुंबई
008 के मालेगांव विस्फोट मामले में बरी किए गए सात आरोपियों के खिलाफ दायर अपील पर बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को सुनवाई टाल दी। अदालत ने पीड़ितों के अपीलकर्ता परिजनों द्वारा पेश की गई जानकारी को अधूरा और भ्रामक पाया, जिसके कारण यह फैसला लिया गया। बरी किए गए आरोपियों में पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित शामिल हैं।
इससे पहले मंगलवार को, उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया था कि विस्फोट मामले में बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर करने का अधिकार सभी के लिए खुला नहीं है। पीठ ने जानना चाहा था कि क्या अपीलकर्ताओं के परिवार के सदस्यों से मुकदमे के दौरान गवाह के तौर पर पूछताछ की गई थी।
बुधवार को, जब अपीलकर्ताओं के वकील ने विस्तृत जानकारी के साथ एक चार्ट पेश किया, तो मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की पीठ ने कहा कि यह अधूरा है। परिवार के सदस्यों के वकील ने अदालत को बताया कि प्रथम अपीलकर्ता, निसार अहमद, जिनके बेटे की विस्फोट में मौत हो गई थी, मुकदमे में गवाह नहीं थे, लेकिन विशेष अदालत ने उन्हें अभियोजन पक्ष की सहायता करने की अनुमति दी थी। वकील ने यह भी बताया कि कुल छह अपीलकर्ताओं में से केवल दो से ही अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में पूछताछ की गई थी।
इस पर, उच्च न्यायालय ने चार्ट को भ्रामक बताते हुए कहा कि इसे ठीक से सत्यापित करने की आवश्यकता है, क्योंकि सवाल यह था कि क्या इन व्यक्तियों से पूछताछ की गई थी या नहीं।
क्या था मालेगांव विस्फोट मामला?
29 सितंबर, 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर मालेगांव शहर में एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में विस्फोट हो गया था। इस हमले में छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 अन्य घायल हो गए थे।
अपीलकर्ताओं का दावा है कि आरोपियों को बरी करने का विशेष अदालत का 31 जुलाई का फैसला गलत और कानूनी रूप से अनुचित था। उन्होंने तर्क दिया कि दोषपूर्ण जांच या जांच में खामियाँ आरोपियों को बरी करने का आधार नहीं हो सकतीं। उनका यह भी कहना था कि साजिश गुप्त रूप से रची गई थी और इसलिए इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण मिलना मुश्किल है।
याचिकाकर्ताओं ने विशेष एनआईए अदालत की भूमिका पर भी सवाल उठाए। अपील में कहा गया था कि निचली अदालत ने "सिर्फ एक डाकघर की तरह" काम किया और आरोपियों को फायदा पहुंचाने के लिए एक दोषपूर्ण अभियोजन को अनुमति दी। उन्होंने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) से मामला अपने हाथ में लेने के बाद आरोपियों के खिलाफ आरोपों को कमजोर कर दिया था।
वहीं, विशेष एनआईए अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि केवल संदेह ही वास्तविक सबूत की जगह नहीं ले सकता और दोषसिद्धि के लिए कोई ठोस या विश्वसनीय सबूत नहीं है। विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने अभियोजन पक्ष के मामले और जांच में कई खामियों को उजागर किया था और कहा था कि आरोपी 'संदेह का लाभ' पाने के हकदार हैं।
अपील में जिन सात आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती दी गई है, उनमें प्रज्ञा ठाकुर और प्रसाद पुरोहित के अलावा मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे।