मुंबई (महाराष्ट्र)
बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में मृतकों के परिजनों द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया है और नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) तथा सात आरोपी जिन्हें विशेष NIA कोर्ट ने बरी किया था, उन्हें नोटिस जारी किए हैं।
2008 का धमाका महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में 29 सितंबर को एक मस्जिद के पास हुआ था। इस घटना में छह लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हुए। इस मामले की प्रारंभिक जांच महाराष्ट्र एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) ने की थी, जिसे बाद में 2011 में NIA को सौंप दिया गया।
न्यायमूर्ति AS गडकरी और न्यायमूर्ति RR भोसले की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई की और कहा कि इसे छह सप्ताह बाद फिर से सुना जाएगा। सभी प्रतिवादियों सहित NIA और सात बरी किए गए व्यक्तियों को नोटिस जारी किए गए हैं। डिवीजन बेंच ने गुरुवार को अपील की सुनवाई की और इसे आगे बढ़ने की अनुमति दी।
9 सितंबर को मृतक पीड़ितों के परिवारों ने अपील दायर की थी, जिसमें विशेष NIA कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें सभी आरोपियों को बरी किया गया था, जिनमें प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित शामिल हैं।
परिजन आरोप लगाते हैं कि जांच में कई कमियाँ थीं और NIA द्वारा मामले की जांच के कारण अभियोजन पक्ष का केस कमजोर हुआ। विशेष कोर्ट के निष्कर्ष कि दोषसिद्धि के लिए ठोस सबूत नहीं थे, इसे पीड़ित परिवार विवादित मानते हैं और कहते हैं कि साजिश के मामलों में अक्सर परोक्ष (circumstantial) सबूतों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
परिजन ने NIA के विशेष पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के कामकाज पर भी आपत्ति जताई, यह आरोप लगाते हुए कि आरोपियों के खिलाफ मामले को धीमा करने का दबाव था। अपील में कहा गया है कि जांच प्रभावित हुई और महत्वपूर्ण सबूतों को नजरअंदाज या गलत तरीके से संभाला गया।
अपील में छह मृतक पीड़ितों के परिवार ने अनुरोध किया कि सभी प्रतिवादियों सहित बरी किए गए आरोपियों को नोटिस जारी किए जाएँ। मामले की अभियोजन एजेंसी NIA ने अभी तक अपील दायर नहीं की है।
17 साल लंबी जांच और सैकड़ों गवाहों की सुनवाई के बाद NIA विशेष कोर्ट ने सातों आरोपियों को गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, हथियार अधिनियम और अन्य सभी आरोपों से बरी कर दिया।
कोर्ट ने 323 अभियोजन पक्ष और 8 बचाव पक्ष के गवाहों की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया।
न्यायाधीश अभय लोहाटी ने कहा, “अभियोजन ने साबित किया कि मालेगांव में विस्फोट हुआ, लेकिन यह साबित करने में असफल रहा कि बम उस मोटरसाइकिल में रखा गया था।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट्स में हेरफेर हुई है। घायल लोगों की संख्या 101 नहीं बल्कि केवल 95 थी और इसमें भी हेरफेर था।कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रसाद पुरोहित के घर में विस्फोटक जमा करने या असेंबल करने के कोई सबूत नहीं हैं।
कोर्ट ने आगे कहा, “पंचनामा करते समय जांच अधिकारी ने स्थल का कोई स्केच नहीं बनाया। कोई फिंगरप्रिंट, डंप डेटा या अन्य सबूत इकट्ठा नहीं किए गए। सैंपल्स दूषित हो गए, इसलिए रिपोर्ट्स पर भरोसा नहीं किया जा सकता।”
अभिनव भारत संगठन में कथित भूमिका के बारे में कोर्ट ने कहा कि संगठन के फंड का आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल होने का कोई सबूत नहीं है।