फ़िरदौस ख़ान
पिछले कुछ बरसों से अज़ान और लाउडस्पीकर का मुद्दा सुर्ख़ियों में है. अज़ान को लेकर उस वक़्त विवाद शुरू हुआ जब कुछ हिन्दू समुदाय के लोगों ने शिकायतें कीं कि सुबह की अज़ान से उनकी नींद में ख़लल पड़ता है. इसलिए इस पर रोक लगनी चाहिए. इन शिकायतों के बाद महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की हज़ारों मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटा दिए गए. इसके ख़िलाफ़ कुछ मुसलमानों ने आवाज़ बुलंद की और अदालत के दरवाज़े खटखटाये. हालांकि, इस मामले में सऊदी हमारे लिए बेहतर मिसाल है।
अज़ान क्या है?
अज़ान अरबी ज़बान का लफ़्ज़ है, जिसका मतलब है ऐलान. मस्जिदों में नमाज़ के लिए लोगों को बुलाने के लिए अज़ान दी जाती है. अज़ान का तर्जुमा है- अल्लाह सबसे बड़ा है.
मैं गवाही देता हूं कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं.
आओ इबादत की तरफ़.
आओ कामयाबी की तरफ़.
अल्लाह सबसे बड़ा है.
अल्लाह के सिवा कोई इबादत के क़ाबिल नहीं है.
क़ाबिले-ग़ौर है कि फ़ज्र यानी सुबह की अज़ान में कुछ लफ़्ज़ और जोड़ दिए जाते हैं-
नमाज़ नींद से बेहतर है.
अज़ान के सभी लफ़्ज़ दो-दो बार दोहराये जाते हैं.
अज़ान और मुसलमान
इस्लाम का अर्थ है सलामती और मुसलमान का अर्थ है इस्लाम को मानने वाला. इस्लाम में हर उस चीज़ से रोका गया है, जिससे किसी को तकलीफ़ होती हो. इसलिए मुसलमानों को हर उस अमल से ख़ुद को बचाना चाहिए, जिससे दूसरों को तकलीफ़ पहुंचती है. यही तो इस्लाम है.
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लाउडस्पीकर का इस्लाम से कोई सरोकार नहीं है. लाउडस्पीकर लोगों ने अपनी सहूलियत के लिए लगाए हुए हैं. मस्जिदों में लाउडस्पीकर से अज़ान देने पर आवाज़ दूर तलक जाती है और लोगों को इससे पता चल जाता है कि नमाज़ का वक़्त हो गया है. अगर मुहल्ले में कई मस्जिदें हैं, तो उनकी सबकी अज़ान के वक़्त में फ़र्क़ होता है. यह भी देखने में आया है कि मस्जिद समितियां अपनी-अपनी मस्जिदों के लाउडस्पीकर मुहल्ले के बहुत से घरों की छतों पर लगवा देती हैं. इससे अज़ान की आवाज़ वहां भी सुनाई देती है, जहां मस्जिदें नहीं हैं. मुसलमानों को अज़ान की आवाज़ सुकून देती है, लेकिन ज़रूरी नहीं है कि दूसरे मज़हबों के लोग भी ऐसा ही महसूस करते हों या ऐसा सोचते हों. बहुत से हिन्दुओं को अज़ान अच्छी लगती है, लेकिन बहुत से लोग इसे ज़रा भी पसंद नहीं करते. इन लोगों की वजह से आज देशभर में अज़ान एक मुद्दा बन चुकी है. हक़ीक़त में इन लोगों को अज़ान से परेशानी नहीं है, बल्कि लाउडस्पीकर पर अज़ान देने से परेशानी है, उसकी तेज़ आवाज़ से परेशानी है.
लाउडस्पीकर हटाने का विरोध
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने पिछले साल अप्रैल में आदेश दिया था कि अगर धार्मिक स्थलों पर निर्धारित संख्या से ज़्यादा लाउडस्पीकर लगे हुए हैं, तो उन्हें हटा दिया जाए. साथ ही दोबारा लाउडस्पीकर न लगाने की चेतावनी भी दी गई थी. बदायूं की नूरी मस्जिद की समिति ने इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अर्ज़ी दाख़िल कर दी. अर्ज़ी में सरकार के आदेश को रद्द करते हुए लाउडस्पीकर से अज़ान दिए जाने के आदेश को पारित किए जाने की मांग की गई थी.
गुज़श्ता मई में पूरे मामले की सुनवाई के बाद अदालत ने मस्जिद समिति की अर्ज़ी को ख़ारिज कर दिया. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह मौलिक अधिकारों का हनन नहीं है. अज़ान इस्लाम का हिस्सा है, लेकिन लाउडस्पीकर से अज़ान देना इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा क़तई नहीं है. अदालतें इसे लेकर पहले भी आदेश दे चुकी हैं. इसलिए मस्जिद समिति को लाउडस्पीकर से अज़ान देने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है.
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
लाउडस्पीकर से संबंधित एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2005 में कहा था कि त्यौहारों के मौक़े पर आधी रात तक लाउडस्पीकर बजाए जा सकते हैं, लेकिन एक साल में 15 दिन से ज़्यादा ऐसा नहीं हो सकता. लाउडस्पीकर या ऐसी कोई आवाज़ करने वाली चीज़ रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे के बीच बंद रहेगी. इससे पहले 18 जुलाई 2005 को एक आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने ध्वनि को लेकर कुछ मानक तय किए थे.
ध्वनि के मानदंड
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों के आधार पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग मानदंड निर्धारित किए हैं. रिहायशी इलाक़ों के लिए दिन में 55 डेसीबल और रात में 45 डेसीबल ध्वनि की सीमा निर्धारित की गई है. इसी तरह औद्योगिक क्षेत्रों के लिए दिन में 75 और रात में 70 डेसीबल, सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए दिन में 65 और रात में 55 डेसीबल तय की गई है, जबकि शांत क्षेत्रों में दिन में 50 और रात में 40 डेसीबल निर्धारित की गई है. अस्पतालों, अदालतों और शैक्षणिक संस्थाओं के आसपास सौ मीटर की परिधि तक के इलाक़े को शांत क्षेत्र घोषित किया गया है. दिन का वक़्त सुबह छह बजे से रात 10 बजे तक और रात का वक़्त रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक माना गया है.
क़ानून क्या कहता है
भारतीय संविधान की धारा-139 के तहत किसी भी प्रकार के प्रदूषण को फैलाने के संबंध में दंड और जुर्माने का प्रावधान है. इसके अलावा ध्वनि प्रदूषण से वायुमंडल भी प्रदूषित होता है, जो सेहत के लिए नुक़सानदेह है. इसके लिए भी धारा-278 के तहत दंड और जुर्माने का प्रावधान है. भारत सरकार ने भारत सरकार द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1986 एवं इससे संबंधित नियमावली के तहत ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम- 2000 बनाया गया है. प्रशासन की इजाज़त के बिना रात में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. सभागार, सम्मलेन कक्ष, सामुदायिक भवन और बैंक्वेट हॉल में माइक्रोफ़ोन का इस्तेमाल किया जा सकता है. नियमों का उल्लंघन करने पर सज़ा हो सकती है. ध्वनि प्रदूषण के मामले में आर्वोच्च न्यायालय ने लाउडस्पीकर के साथ-साथ पटाख़ों द्वारा ध्वनि एवं वायु प्रदूषण करने पर रोक लगाई हुई है. न्यायालय ने कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत दिए गये जीने के अधिकार के तहत ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाना भी शामिल है.
कोई मुद्दा ही नहीं है अज़ान
हक़ीक़त में अज़ान का कोई मुद्दा ही नहीं है. अगर मुसलमान समझदारी से काम लें, तो यह मुद्दा यहीं ख़त्म हो सकता है. मुअज़्ज़िन को चाहिए कि वे बिना माइक के अज़ान दें. अगर लाउडस्पीकर लगाना बेहद ज़रूरी है, तो वे मस्जिद के अंदर ही लगाए जाएं. मस्जिदों के बाहर कोई लाउडस्पीकर नहीं लगाया जाए.
अब सवाल यह है कि बिना अज़ान की आवाज़ सुने नमाज़ के वक़्त का कैसे पता चले? दरअसल अज़ान के वक़्त की फ़ेहरिस्त होती है, जिसके ज़रिये नमाज़ के वक़्त का पता चल जाता है. इसके अलावा बहुत से ऐप ऐसे हैं, जिनमें अपने शहर का नाम सेट कर देने पर पांचों वक़्त की अज़ान सुनी जा सकती है. आज हर घर में या यह कहना ज़्यादा ठीक रहेगा है कि आज हर किसी के पास मोबाईल फ़ोन है. इसलिए नमाज़ का वक़्त जानने की कोई परेशानी नहीं है.
सऊदी अरब में लाउडस्पीकर
सऊदी अरब में लाउडस्पीकर मस्जिदों के अन्दर होते हैं, बाहर नहीं होते. जून 2021 में सऊदी अरब की हुकूमत ने मुल्क में मस्जिदों में लाउडस्पीकर की तादाद सीमित कर दी थी. सऊदी अरब के इस्लामिक मामलों के मंत्री शेख़ डॉक्टर अब्दुल लतीफ़ बिन अब्दुल अज़ीज़ अल शेख़ ने मस्जिदों में अज़ान के लिए लाउडस्पीकरों की तादाद चार तय कर दी है.
उन्होंने सभी मस्जिदों के इमामों को हिदायत दी थी कि अगर उनके पास ज़्यादा लाउडस्पीकर हैं, तो उन्हें मस्जिदों से कम किया जाए और इन्हें बाद में इस्तेमाल के लिए गोदामों में रखा जाए या जिन मस्जिदों में लाउडस्पीकर की कमी है, इन्हें वहां दे दिया जाए.
ख़ास बात यह भी है कि भारतीय मुसलमान हर मामले में सऊदी अरब की हिरस करते हैं, लेकिन इस तरह के मामलों में अरब को भूल जाते हैं. इसलिए भारत में भी मस्जिदों में बाहर लाउडस्पीकर नहीं लगाए जाने चाहिए. भारत एक ऐसा विशाल देश है, जहां बहुत सी संस्कृतियों और मज़हबों के लोग एक साथ रहते हैं यानी एक ही इलाक़े में रहते हैं. इसलिए यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि हम ऐसा कोई काम न करें, जिससे दूसरों को परेशानी हो. हमारी अक़ीदत हमारे लिए है, हम उसे किसी दूसरे पर जबरन थोप नहीं सकते. हमें यह बात समझनी ही होगी.
(लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)
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