नई दिल्ली
निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के अधिकारियों ने बुधवार को बताया कि देश के अधिकतर राज्यों में आधे से ज्यादा मतदाताओं को आगामी विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान किसी भी प्रकार के दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इसका कारण यह है कि उनके नाम उनके राज्यों में पिछले एसआईआर के बाद तैयार की गई मतदाता सूची में पहले से ही शामिल होंगे।
अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि अधिकांश राज्यों में मतदाता सूची का आखिरी विशेष गहन पुनरीक्षण 2002 से 2004 के बीच हुआ था, और इसी वर्ष को उनकी कट-ऑफ तिथि का आधार माना जाएगा। आयोग जल्द ही पूरे भारत में इस प्रक्रिया को शुरू करने की तारीख तय करेगा।
पिछली सूची बनेगी आधार
निर्वाचन आयोग ने राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईओ) को निर्देश दिया है कि वे अपने राज्यों में पिछली एसआईआर के बाद प्रकाशित मतदाता सूची को तैयार रखें। उदाहरण के लिए, दिल्ली में आखिरी गहन पुनरीक्षण 2008 में हुआ था, और उस वर्ष की मतदाता सूची अब सीईओ की वेबसाइट पर उपलब्ध है। इसी तरह, उत्तराखंड में अंतिम एसआईआर 2006 में हुआ था, और उसकी सूची भी वेबसाइट पर मौजूद है।
यह प्रक्रिया ठीक उसी तरह काम करेगी जैसे बिहार में हो रहा है, जहाँ गहन पुनरीक्षण के लिए 2003 की मतदाता सूची का उपयोग किया जा रहा है। आयोग के निर्देशों के अनुसार, 2003 की सूची में शामिल 4.96 करोड़ मतदाताओं (जो कुल मतदाताओं का 60 प्रतिशत हैं) को अपनी जन्मतिथि या जन्मस्थान साबित करने के लिए कोई भी सहायक दस्तावेज प्रस्तुत करने की जरूरत नहीं होगी।
नए आवेदकों के लिए नियम
हालांकि, लगभग 3 करोड़ मतदाताओं (40 प्रतिशत) और नए मतदाता बनने के इच्छुक आवेदकों को अपनी जन्मतिथि या जन्मस्थान स्थापित करने के लिए कुछ दस्तावेज देने होंगे। इसके लिए, उन्हें 12 सूचीबद्ध दस्तावेजों में से कोई एक प्रदान करना होगा।
मतदाता बनने या राज्य के बाहर से स्थानांतरित होने वाले आवेदकों के लिए एक अतिरिक्त ‘घोषणा पत्र’ जारी किया गया है। उन्हें यह शपथपत्र देना होगा कि उनका जन्म 1 जुलाई, 1987 से पहले भारत में हुआ था। इसके अलावा, यदि उनका जन्म 1 जुलाई, 1987 और 2 दिसंबर, 2004 के बीच हुआ है, तो उन्हें अपने माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान से संबंधित दस्तावेज भी प्रस्तुत करने होंगे।
बिहार में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले एसआईआर की शुरुआत ने विपक्षी दलों की आलोचना को जन्म दिया है। विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया के समय पर सवाल उठाया है और दावा किया है कि करोड़ों पात्र नागरिकों को दस्तावेजों के अभाव में मताधिकार से वंचित कर दिया जाएगा।
इस मामले पर, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्वाचन आयोग से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि कोई भी पात्र नागरिक इस प्रक्रिया के कारण मताधिकार से वंचित न रह जाए। आयोग का कहना है कि इसका उद्देश्य मतदाता सूची को अधिक सटीक और त्रुटिहीन बनाना है।