मोहम्मद अकरम / हैदराबाद
कोरोना महामारी के दो साल बाद हैदराबाद की ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में रौनक लौट आई हैं. विशेषकर अलविदा के दिन जैसे नामाजियों का हुजूम मस्जिद में उमड़ पड़ा.मस्जिद का निर्माण 1693 में हुआ है. मगर तब से अब तक पहली 2020 और दूसरी बार 2021 में मस्जिद में सार्वजनिक तौर पर नमाज और इफ्तार पर पाबंदी लागई थी.
मगर इस वर्ष कोरोना की दूसरी लहर खत्म होने पर रमजान के पाक महीने में मक्का मस्जिद में पहले की रौनक लौट आई है. हर रोज शाम ढ़लते ही यहां बड़ी तादाद में रोजेदार पहुंचने शुरु हो जाते हैं, पर अलविदा के दिन जैसे मस्जिद में नामाजियों का सैलाब उमड़ पड़ा. इफ्तार के समय मक्का मस्जिद के पूरे प्रांगण में पैर धरने तक की जगह नहीं बची थी.
रमजान के मौके पर रंगीन रोशनी से मस्जिद को खूबसूरती से सजाया गया है. दूर से मक्का मस्जिद देखते ही बनती है. मस्जिद प्रशासन की तरफ से इफ्तार की व्यवस्था होती है. साथ ही ज्यादातर लोग अपने साथ इफ्तार का सामान लेकर आते हैं.
महिला सेक्शन में सिर्फ महिलाएं और मस्जिद के आंगन में लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ जगह-जगह इफ्तार के सामान के साथ अल्लाह को याद कर रोजे कबूलवाने की दुआएं करते नजर आते हैं. इफ्तार से कुछ वक्त पहले ही पूरा प्रांगण भर जाता है. रमजान के आखिरी जुमा यानी जुम्मतुल विदा में सैंकड़ों लोग ऐसे थे जो नमाज के बाद घर लौटे ही नहीं. वहीं इफ्तार तक इबादत करते रहे.
चारमीनार और मक्का मस्जिद के अधीक्षक मोहम्मद अब्दुल कद्दीर सिद्दीकी ने आवाज द वॉइस को बताया कि मक्का मस्जिद से लगाव पूरे मुस्लिम समुदाय का है. हैदराबाद शहर और दूर दराज जिले के लोग अपने परिवार के साथ रमजान के दिनों में मक्का मस्जिद आते हैं. दो साल हमलोगों ने सरकार की गाइडलाइन का पालन किया, लेकिन इस साल हालात बेहतर हुए हैं. जिससे शाम में मक्का मस्जिद के अंदर पांव रखने की जगह नहीं होती है.
रमजान के पवित्र महीने में रोजेदारों के लिए हैदराबाद नगर निगम की तरफ से इफ्तार का इंतेजाम किया जाता है. इस में काम करने वाले जोहैब कलीम ने बताया कि जो लोग इफ्तार नहीं लेकर आते. उनके लिए निगम की तरफ से इफ्तार किट का इंतेजाम किया गया हैं.
किट में कई तरह के फल, जूस, खजूर, बोतलबंद पानी, केला, तरबूज आदि होते हैं. शोऐब कलीम ने बताया कि हर शाम इफ्तार का इंतजाम करते हैं. अलिवाद के दिन उमड़ने वाली भीड़ के मददेनजर इफ्तार किट की संख्या बढ़ाई गई थी.
शहर के चंदरकुट्टा से परिवार के साथ मस्जिद में इफ्तार करने पहुंची आसमां फातिमा ने बताया कि दो साल बाद मस्जिद में इफ्तार के लिए आना बहुत अच्छा लगा. बहुत खुशी और अल्लाह का एहसान है कि उसने हमें परिवार के संग मक्का मस्जिद में इफ्तार करने की तौफीक दी. मक्का मस्जिद के लिए हर हैदराबादी और मुसलमानों के दिलों में अलग जगह है. यहां पर इफ्तार करके बहुत खुशी होती है.
एक अन्य महिला ने बताया कि मक्का मस्जिद वह जगह है जहां से हमारे पूर्वजों की यादें जुड़ी हुई हैं. दो साल बाद आप लोगों की भीड़ देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि लोग कितनी संख्या में इफ्तार करने और नमाज पढ़ने पहुंचते हैं. हमें इस बात की खुशी है कि इस साल मैं अपने परिवार के साथ मक्का मस्जिद में इफ्तार और नमाज पढ़ने आई हूं.
शहर के रहने वाले सैयद मोबीन ने बताया कि इस मस्जिद में शहर और राज्य के जिलों से लोग परिवार के साथ इफ्तार और नमाज अदा करने आते हैं. कोरोना की रफ्तार धीमी होने के बाद मक्का मस्जिद में रमजान की रौनक लौट आई है. पहले की तरह लोग शहर और आसपास के इलाकों से यहां पहुंचते हैं.
अलविदा के दिन मक्का मस्जिद में इफ्तार के समय लोगों की भीड़ का अंदाजा इस से लगाया जा सकता है कि मगरिब की नमाज के बाद मुख्य द्वार से बड़ी तादाद में लोगों के निकलने का सिलसिला करीब एक घंटे तक बना रहा. जबकि यहां से कुछ सेकेंड के फासले पर स्थित चारमीनार तक पहुंचने में 10 से 15 मिनट लग गए.