‘अच्छे तालिबान’ का कोई वजूद नहींः पख्तून नेता यासमीन

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
अफगानिस्तान और भारतीय पश्तूनों की स्थिति
अफगानिस्तान और भारतीय पश्तूनों की स्थिति

 

मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली

कोलकाता में काबुली और काबुली में काबुल दिखाई देता हैं. इस शहर में अगर कोई ‘चाइनाटाउन’ बसता है, तो एक ‘काबुल’ भी अपनी मौजूदगी का अहसास कराता है.

इन काबुलियों को हम पख्तून या पश्तून कहते हैं. ये जितने अफगान हैं, उतने ही भारतीय हैं.

यह भी कहा जा सकता है कि वह अब जातीय रूप से पख्तून हैं, लेकिन उनकी रगों में भारतीय खून दौड़ रहा है.

हालांकि, अगर अफगानिस्तान में कोई राजनीतिक या सैन्य भूकंप आता है, तो यह पख्तून ही हैं, जो इसे सबसे पहले कोलकाता में महसूस करते हैं.

अब तालिबान की धमकी और गूंज एक बार फिर अफगानिस्तान में है. इसलिए कोलकाता में पख्तून समुदाय के लिए यह दुख की घड़ी है. धैर्य का क्षण है.

अफगानिस्तान में हाल के राजनीतिक और मानवीय संकट ने कोलकाता को ध्यान का केंद्र बना दिया है.

वह पिछले एक हफ्ते से राष्ट्रीय मीडिया की प्राइम टाइम गेस्ट रही हैं, क्योंकि उनके तार न केवल अफगानिस्तान से जुड़े हुए हैं, बल्कि वह एक ऐसे व्यक्ति की पोती हैं, जिसे दुनिया ‘सरहदी गांधी’ यानी खान अब्दुल गफ्फार खान के नाम से जानती है.

भारत के अखिल भारतीय पख्तून जिरगा की प्रमुख यास्मीन निगार खान, वास्तव में स्वर्गीय खान लाला जान खान की बेटी हैं, जिन्हें सरहदी गांधी ने गोद लिया था, जो भारत में पख्तूनवाद के ध्वजवाहक थे और उनकी मृत्यु के बाद जिम्मेदारी संभाली थी. वह अब भारत में पख्तून समुदाय की एकमात्र महिला नेता हैं.

यह सम्मान उन्हें कहीं न कहीं गर्व का अनुभव कराता है, क्योंकि जब वे केवल आठ या नौ वर्ष की थीं, तब उन्होंने खान अब्दुल गफ्फार खान की गोद में बैठकर उनके शब्दों को सुना, “मुझे पश्तून बेटों की तुलना में बेटियों से अधिक आशा है.”

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काबुलः दिवंगत लाला जान, बाईं ओर पगड़ी में, 1986 में सरहदी गांधी के साथ और दाईं ओर यास्मीन निगार खान, जो उस समय केवल आठ वर्ष की थीं


आज सरहदी खान के वे शब्द उनकी उम्मीद को दूरदर्शी साबित कर रहे हैं. आज अफगानिस्तान में महिलाएं तालिबान से डरने की बजाय सड़कों पर उनके खिलाफ नारे लगाने का साहस दिखा रही हैं.

आज के अफगानिस्तान पर जब ‘आवाज-द वॉयस ने यासमीन निगार खान से संपर्क किया, तो आवाज में पठानी का विश्वास था, निराशा का कोई निशान नहीं था.

उन्होंने कहा, “तालिबान सिर्फ तालिबान हैं. ‘अच्छे तालिबान’ मौजूद नहीं हैं, वे वैसे ही रहेंगे, जैसे वे थे. अब हम जो चेहरा देखते हैं, वह सिर्फ सत्ता हासिल करने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आंखों में धूल झोंकने का एक प्रयास है. उनके पीछे पाकिस्तान जैसी राक्षसी ताकत है, नहीं तो उनके लिए काबुल पर कब्जा करना संभव नहीं होता.”

उनका कहना है कि ये कोई अफगान नहीं, बल्कि पाकिस्तान से आए मदरसों की खेप है .ये पाकिस्तानी आतंकवादी हैं, इन्हें अफगान नहीं कहा जा सकता.

वे पश्तून सभ्यता के अग्रदूत नहीं हैं, वे अफगान नहीं, बल्कि पाकिस्तान के एजेंट हैं. फैलाव उलटा जा सकता है.

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यास्मीन निगार खान, स्वर्गीय लाला जान खान के साथ कोलकाता में एक पश्तून समुदाय के जुलूस में


ज्वार अभी भी बदल सकता है, चीजें बदल सकती हैं. तालिबान ने काबुल पर इतनी आसानी से विजय प्राप्त करने का एक मुख्य कारण यह था कि अफगान सेना की कमान किसी वरिष्ठ अधिकारी के पास नहीं थी. वे तालिबान के खिलाफ कोई मोर्चा नहीं ले पाए हैं. अफगान सैनिकों की संख्या अभी भी 3.5 लाख है, जबकि तालिबान महज 70,000 हैं.

यासमीन निगार खान का कहना है कि बेशक इस समय तालिबान आगे बढ़ता दिख रहा है लेकिन अभी तक सरकार नहीं बनी है. सरकार बनने से पहले ही बगावत के झंडे लहराने लगे हैं.

उग्रवाद न केवल दूरदराज के कबायली इलाकों में फैल गया है, बल्कि अब काबुल से जलालाबाद और हेरात तक फैल गया है. इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि अफगान अब सड़कों पर उतरने से नहीं हिचकिचाते हैं. हद यह है कि महिलाएं अब तालिबान के सामने विरोध कर रही हैं.

तालिबान के लिए कोई समझौता संभव नहीं होगा. इसका एक उदाहरण अफगान झंडे को लेकर हुए विवाद में देखा जा सकता है. लोगों ने फिर से अफगान झंडा लहराया और तालिबान का झंडा उतार दिया.

महिलाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा

अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ उसके बाद सबसे ज्यादा डर और दहशत अफगान महिलाओं में पैदा हो गया है. हालांकि तालिबान ने कहा है कि वे महिलाओं को काम करने से नहीं रोक रहे हैं, यास्मीन निगार खान का कहना है कि महिलाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा है और इसे दूर करने के लिए दुनिया को आगे बढ़ने की जरूरत है.

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कोलकाताः पश्तून जिरगा के कार्यालय में अफगानिस्तान के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर समारोह


उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को इस संबंध में कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और बड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. नहीं तो अफगान महिलाएं एक बार फिर वहीं होंगी, जहां वे दो दशक पहले थीं. अफगान महिलाओं ने दुनिया में अपना नाम बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है.

एक सवाल के जवाब में यास्मीन निगार खान ने कहा कि तालिबान अविश्वसनीय हैं, क्योंकि उनके पीछे पाकिस्तान है. वे पाकिस्तान के इशारे पर नाचने वाली कठपुतली हैं. इसलिए भारत में 32 लाख पश्तून चिंतित हैं. उनके सामने उनके रिश्तेदारों के जीवन और भविष्य का सवाल है.

पाकिस्तान है जिम्मेदार

अफगानिस्तान में संकट के बारे में चिंतित यास्मीन निगार खान का कहना है कि वर्तमान स्थिति पाकिस्तान की देन है.

उनका कहना है कि अमेरिका की अपनी मजबूरी है, जिसका पाकिस्तान ने फायदा उठाया है. संयुक्त राज्य अमेरिका अब अपनी आर्थिक और राजनीतिक स्थिति में सुधार करके अफगानिस्तान को बचाने की कोशिश कर रहा है.