पुणे
पुणे के प्रसिद्ध ढोल-ताशा समूह कलाावंत ट्रस्ट ने रविवार को “डीजे और डॉल्बी-फ्री शोभायात्रा” पहल के तहत हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत की। यह कार्यक्रम बालगंधर्व रंगमंदिर से आरंभ हुआ। इस अभियान का उद्देश्य गणेशोत्सव सहित अन्य धार्मिक व सांस्कृतिक पर्वों में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण को रोकना है।
कलाावंत ट्रस्ट ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि कानून और अदालतों के आदेशों के बावजूद त्योहारों और जुलूसों में तेज आवाज वाले डीजे और डॉल्बी साउंड सिस्टम का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है, जिससे आम नागरिकों को परेशानी होती है। ट्रस्ट ने मांग की है कि धार्मिक जुलूसों, राष्ट्रीय नेताओं की जयंती और विभिन्न सजावटी रैलियों में डीजे और डॉल्बी जैसे हाई-डेसीबल साउंड सिस्टम पर सख्त प्रतिबंध लगाया जाए।
ट्रस्ट के प्रतिनिधियों ने बताया कि इस साल लातूर, सोलापुर और छत्रपति संभाजीनगर में डीजे-फ्री गणेश विसर्जन यात्रा को व्यापक सराहना मिली। लेकिन पुणे में निराशाजनक अनुभव के चलते यह शहरव्यापी अभियान शुरू करना पड़ा।
प्रसिद्ध मराठी अभिनेता और कलाावंत ट्रस्ट के अध्यक्ष सौरभ गोकले ने बताया कि अब तक करीब 3,000 हस्ताक्षर ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से जुटाए जा चुके हैं। यह ज्ञापन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को सौंपा जाएगा। आने वाले तीन रविवारों तक यह अभियान पुणे के अलग-अलग हिस्सों में जारी रहेगा और नागरिकों से अधिकाधिक भागीदारी की अपील की गई है।
गोकले ने कहा, “हमारा प्रयास त्योहारों को खत्म करना नहीं बल्कि उनकी पवित्रता और सांस्कृतिक परंपराओं को सुरक्षित रखना है। डीजे और डॉल्बी के अत्यधिक शोर से स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ती हैं, समुदायों में तनाव पैदा होता है और हमारी परंपराओं का अपमान होता है। हम चाहते हैं कि लोग पारंपरिक वाद्ययंत्रों को अपनाकर उत्सव को और भी सांस्कृतिक, सुरक्षित और आनंददायक बनाएं।”
इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को भी पहल के बारे में जानकारी दी गई। कलाावंत पाठक के ढोल-ताशा कलाकारों ने पारंपरिक कला को बढ़ावा देने के लिए अभियान में भाग लिया।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी इस पहल का समर्थन किया। उन्होंने कहा, “सरकार की भूमिका भी नागरिकों की तरह ही है। इस बार गणेशोत्सव में डीजे का उपयोग काफी कम हुआ है और महानगरों में लगभग पूरी तरह बंद हो गया है। हमने कई जगह कार्रवाई भी की है। लेकिन केवल ‘मत बजाओ’ कहना पर्याप्त नहीं है, बल्कि लोगों में जागरूकता पैदा करना जरूरी है ताकि वे खुद तय करें कि त्योहार डीजे-फ्री हों। यही तरीका लंबे समय तक असरदार साबित होगा।”
कलाावंत ट्रस्ट लंबे समय से पारंपरिक कला, सांस्कृतिक धरोहर और युवाओं की सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय है। ट्रस्ट का मानना है कि ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण और पारंपरिक वाद्ययंत्रों के पुनर्जीवन से त्योहार अधिक सतत और समावेशी बन सकते हैं।