शिमला
शिमला का ऐतिहासिक 203 साल पुराना कालीबाड़ी मंदिर रविवार को रंगों, स्वाद और उत्सव के माहौल से जगमगा उठा। यहाँ बंगाली समुदाय ने हर साल की तरह पारंपरिक “आनंद मेला” का आयोजन किया, जो दुर्गा पूजा की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
इस मेले में परिवारों और समुदाय के सदस्यों ने पारंपरिक बंगाली व्यंजनों के स्टॉल लगाए। इस आयोजन से होने वाली आमदनी आगामी दुर्गा पूजा समारोह के लिए उपयोग की जाएगी।
1822 में स्थापित शिमला कालीबाड़ी मंदिर दो शताब्दियों से अधिक समय से बंगाली संस्कृति और अध्यात्म का केंद्र रहा है। हिमाचल प्रदेश, विशेषकर शिमला क्षेत्र में, यह मंदिर बंगाल से दूर रह रहे लोगों के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अहम हिस्सा बना हुआ है।
आयोजकों का कहना है कि यह मेला केवल खानपान का उत्सव नहीं है, बल्कि यह मिलन, यादों और भक्ति का प्रतीक है। एक आयोजक ने कहा— “आनंद मेला केवल भोजन तक सीमित नहीं है, यह एक साथ आने, nostalgia और माँ दुर्गा के स्वागत की तैयारी का अवसर है।”
शिमला कालीबाड़ी की दुर्गा पूजा उत्तर भारत की सबसे पुरानी और प्रमुख पूजा में से एक मानी जाती है, जिसमें हिमाचल और अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं।
इसी बीच, हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा भी विजयादशमी के बाद सात दिनों तक बड़े उत्साह से मनाया जाता है। पारंपरिक परिधानों में सजी महिलाएँ लोक नृत्य करती हैं, जबकि पुरुष ढोल-नगाड़ों की थाप पर उत्सव को जीवंत बना देते हैं।
यह पर्व अपनी विशिष्टता के लिए जाना जाता है, क्योंकि इसमें घाटी की 300 से अधिक देवी-देवताओं का एक स्थान पर संगम होता है। पहले दिन सभी देवताओं की सजी-धजी पालकियों को मुख्य देवता भगवान रघुनाथ जी के मंदिर में नमन किया जाता है और फिर शोभायात्रा धालपुर ग्राउंड तक पहुँचती है।