ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
एक राजकुमारी का जीवन सुख सुविधाओं से लेस होता है जहां उसे किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होती लेकिन इंसानियत का मतलब ही है दूसरों के लिए जीना और मानव कल्याण के लिए यह परोपकार की भावना होना उतना ही जरूरी है जितना मनुष्य के जीवन के लिए पानी. तो आज आप इस लेख के माध्यम से जानेंगें एक ऐसी शाही राजकुमारी के बारे में जिन्होनें अपना जीवन मानव कल्याण समर्पित किया और भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई.
जब हम आजादी के बाद भारत द्वारा बनाए गए विश्व स्तरीय संस्थानों की सूची में उच्च पायदान पर एम्स यानी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान भी शामिल है. लेकिन हम उस महिला को भूल गए हैं जिसने इसकी नींव रखी. बहुत कम भारतीय, अमृत कौर की कहानी जानते हैं, जिन्होंने एम्स की नींव रखी. बता दें कि नई दिल्ली में एम्स की स्थापना में भी अमृता कौर ने प्रमुख भूमिका निभाई थी. इसके लिए उन्होंने जर्मनी और न्यूजीलैंड से आर्थिक मदद भी ली थी.

उन्होंने न केवल स्वास्थ्य देखभाल के लिए भारत की प्रमुख सार्वजनिक संस्था की स्थापना में मदद की. बल्कि कौर भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री, डब्ल्यूएचओ की शासी निकाय की प्रमुख बनने वाली पहली एशियाई महिला और 30 से अधिक वर्षों तक भारत की महिला अधिकारों की महान चैंपियनों में से एक थीं.
1947 में भारत को आख़िरकार आज़ादी मिलने के बाद, कौर भारत में कैबिनेट पद संभालने वाली पहली महिला बनीं. देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री के रूप में, उन्होंने भारतीय तपेदिक संघ, भारतीय बाल कल्याण परिषद, केंद्रीय कुष्ठ रोग और अनुसंधान संस्थान और राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ नर्सिंग की स्थापना की. हालांकि, उन्हें दूरदर्शी के रूप में जाना जाता है.
1950 में, कौर को विश्व स्वास्थ्य सभा का अध्यक्ष चुना गया. वह इस प्रतिष्ठित पद को संभालने वाली पहली महिला और पहली एशियाई थीं. 18 फरवरी, 1956 को तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने लोकसभा में एक नया विधेयक पेश किया. उनका कोई भाषण तैयार नहीं था. लेकिन उसने अपने दिल से बात की. “यह मेरे सपनों में से एक रहा है कि स्नातकोत्तर अध्ययन के लिए और हमारे देश में चिकित्सा शिक्षा के उच्च मानकों को बनाए रखने के लिए, हमारे पास इस प्रकृति का एक संस्थान होना चाहिए जो हमारे युवा पुरुषों और महिलाओं को स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा.
लोकसभा में कौर के भाषण ने संस्थान की प्रकृति पर सदन में जोरदार बहस छेड़ दी. लेकिन विधेयक तेजी से आगे बढ़ा, दोनों सदनों के सदस्यों की मंजूरी प्राप्त हुई और उस वर्ष मई तक प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया. सात साल बाद, उन्होंने एम्स की स्थापना के लिए न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन, पश्चिम जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका से सहायता प्राप्त की.
उन्होंने शिमला में अपनी पैतृक हवेली (जिसे मैनरविले कहा जाता है) एम्स को छुट्टियों के निवास और नर्सों के लिए विश्राम गृह के रूप में दान कर दी. कौर ने यह सुनिश्चित किया कि एम्स ने अपनी स्वायत्तता बरकरार रखी और सर्जिकल देखभाल से लेकर चिकित्सा शिक्षा तक स्वास्थ्य देखभाल के सभी पहलुओं में भारतीय उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य किया.
उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि प्रवेश के लिए छात्रों का चयन पूरी तरह से योग्यता के आधार पर किया जाएगा, यानी एक खुली प्रतिस्पर्धी परीक्षा के माध्यम से, जिससे देश के हर हिस्से के छात्रों को समान अवसर मिलेगा.
राजकुमारी अमृत कौर
शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाली राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 को लखनऊ में हुआ था. वह पंजाब के कपूरथला के राजा सर हरनाम सिंह की बेटी थीं. यहीं से उनके पिता शाही परिवार की विशाल अवध संपदा का प्रबंधन करते थे. सात बच्चों के बीच एकमात्र लड़की, कौर की स्कूली शिक्षा इंग्लैंड के अग्रणी संस्थानों में से एक में हुई. एक गुड स्टूडेंट होने के साथ साथ वे खेल की भी शौकीन थीं, वे स्कूल की हॉकी और क्रिकेट टीम की कप्तान भी थीं.
उन्हें खेलों से भी काफी लगाव था. नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना भी अमृत कौर ने की थी और इस क्लब की वह शुरू से ही अध्यक्ष भी रहीं. उनको टेनिस खेलने का बड़ा शौक था और उन्होंने इसमें कई चैंपियनशिप भी जीती थी.
अपनी स्कूली शिक्षा के बाद, कौर अपनी कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के लिए ऑक्सफोर्ड में शामिल हो गईं. इस प्रकार, युवा राजकुमारी अपनी पढ़ाई पूरी करने और 1918 में स्वदेश लौटने के समय तक उतनी ही एडवर्डियन इंग्लैंड की उपज थी जितनी वह भारत की थी. विदेशी अध्ययन के बाद कौर की भारत वापसी ने राष्ट्रवादी संघर्ष के एक युग की शुरुआत भी की. उसके जीवन को बदलने के लिए आगे बढ़ेंगे.
अमृत कौर महात्मा गांधी के बेहद करीब थीं. विदेश में पढ़ाई करने के बाद स्वदेश लौटने पर वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुईं. महात्मा गांधी से 1934 में मुलाकात होने के बाद वह पूरी तरह से गांधीवादी विचारधारा पर चलने लगी थीं.
राजकुमारी अमृत कौर और महात्मा गांधी
देशभर में चल रहे सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होकर, उन्होंने दांडी मार्च में भाग लिया. उनके समर्पण से प्रभावित होकर, अक्टूबर 1936 में, गांधी ने उन्हें पत्र लिखकर कहा, “मैं अब एक ऐसी महिला की तलाश में हूं जो उनके मिशन को साकार करेगी. क्या आप वह महिला हैं? और इसलिए, कौर गांधी की निजी सचिव बन गईं, इस पद पर वह तब तक रहीं जब तक कि प्रधान मंत्री नेहरू ने उन्हें स्वास्थ्यमंत्री का पोर्टफोलियो पेश नहीं किया.
गांधी जी और कौर के बीच सैकड़ों पत्र व्यवहार हुए, जिनमें गांधी जी उन्हें 'माई डियर ईडियट' यानी मेरी प्यारी बेवकूफ लिखते थे. राजकुमारी होने के बावजूद भी वह काफी साधारण रहन सहन पसंद करती थीं. वह गांधीजी के साथ नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल भी गईं. उन्होंने 16 साल तक गांधीजी के सचिव का भी काम किया.
गांधी जी का पत्र राजकुमारी अमृत कौर को
राजकुमारी अमृत कौर केंद्रीय मंत्री बनने वाली आजाद भारत की पहली महिला थीं और 1947 से लेकर 1957 तक दस साल तक स्वास्थ्य मंत्री रहीं. अपने जीवन में कई सफलताएं हासिल करने के बाद 2 अक्टूबर 1964 को दिल्ली में उनका निधन हो गया.