अर्सला खान/नई दिल्ली
शाहरुख़ ख़ान का नाम आज बॉलीवुड ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के सिनेमा प्रेमियों की ज़ुबान पर है. उन्हें रोमांस का बादशाह कहा जाता है, जिन्होंने 1990 के दशक से लेकर अब तक करोड़ों दर्शकों के दिलों पर राज किया है. हाल ही में जब उनके बेटे आर्यन ख़ान ने अपनी पहली वेब सीरीज़ बनाने का ऐलान किया, तो शाहरुख़ सबसे आगे खड़े होकर उसके सपनों का साथ देते नज़र आए, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि उनके जीवन की शुरुआती यात्रा में एक महिला की छाया लगातार रही. 
यह महिला कोई और नहीं, बल्कि उनकी बड़ी बहन शहनाज लालारुख ख़ान हैं. शाहरुख़ की ज़िंदगी में लालारुख की भूमिका किसी सच्चे "चेंज मेकर" से कम नहीं रही. उन्होंने ही शाहरुख़ को वह आत्मविश्वास, भावनात्मक सहारा और शुरुआती "स्टार" का दर्जा दिया, जिसकी बदौलत वह बॉलीवुड के हीरो बन पाए.
बहन लालारुख की भूमिका
दिल्ली के राजेन्द्र नगर में जन्मे शाहरुख़ एक साधारण लेकिन संस्कारी परिवार से आते थे. उनके पिता मीर ताज मोहम्मद एक स्वतंत्रता सेनानी थे और माँ लतीफ़ फ़ातिमा दिल्ली के समाजिक दायरे में एक प्रतिष्ठित हस्ती मानी जाती थीं, लेकिन घर का सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता शाहरुख़ के लिए उनकी बहन लालारुख थीं. शाहरुख़ अक्सर मज़ाक में कहते थे कि उनके बचपन की “पहली दर्शक, पहली समीक्षक और पहली प्रशंसक” उनकी दीदी ही थीं.
लालारुख उम्र में शाहरुख़ से बड़ी हैं और उनका स्वभाव बेहद शांत, स्नेहिल और त्याग से भरा हुआ था. जहांं शाहरुख़ बचपन से ही शरारती, नटखट और ऊर्जा से भरे रहते, वहीं लालारुख उनके जीवन में संतुलन और गहराई लाने का काम करतीं.
शाहरुख़ का पहला मंच और लालारूख की भूमिका
शाहरुख़ जब दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में पढ़ते थे, तो थिएटर और खेलकूद में उनकी दिलचस्पी बहुत ज़्यादा थी, लेकिन मंच पर खड़े होने का आत्मविश्वास उन्हें किसने दिया? यह लालारुख ही थीं, जिन्होंने अपने छोटे भाई को हमेशा प्रोत्साहित किया. वह अक्सर उन्हें कहतीं, “तुम चाहे जो करो, तुम्हें देखने वाला पहला चेहरा हमेशा मेरा होगा.
घर में जब शाहरुख़ अभिनय की प्रैक्टिस करते, संवाद बोलते या आईने के सामने खड़े होकर अपनी मुस्कान का अभ्यास करते, तो लालारुख घंटों उनकी यह हरकतें देखतीं और ताली बजाकर उत्साह बढ़ातीं. यही प्रोत्साहन शाहरुख़ के लिए शुरुआती ‘ऑडियंस रिस्पॉन्स’ था,
दुख और जिम्मेदारी की साझेदार
शाहरुख़ की किशोरावस्था में ही माता-पिता का निधन हो गया, यह उनके जीवन का सबसे बड़ा आघात था, पिता का साया कम उम्र में ही उठ गया और माँ का भी जल्दी ही निधन हो गया, ऐसे कठिन दौर में लालारुख ने न केवल अपने छोटे भाई को भावनात्मक सहारा दिया, बल्कि माँ जैसी जिम्मेदारी निभाई,
दिल्ली से मुंबई की ओर शाहरुख़ का सफर आसान नहीं था. फिल्मों में पहचान बनाना बेहद कठिन था, लेकिन लालारुख ने हमेशा यह विश्वास बनाए रखा कि उनका भाई एक दिन बड़ा सितारा बनेगा. उन्होंने शाहरुख़ को कभी हतोत्साहित नहीं किया, बल्कि हर असफलता में उन्हें गले लगाकर कहा “यह तो तुम्हारे लिए एक और सबक है.
शाहरुख़ और लालारूख की कैमिस्ट्री
शाहरुख़ और लालारुख का रिश्ता पारंपरिक भाई-बहन से कहीं आगे था. उनकी कैमिस्ट्री भावनात्मक गहराई से भरी हुई थी, जब शाहरुख़ ने अपने करियर की शुरुआत टीवी सीरियल “फ़ौजी” और “सर्कस” से की, तो लालारुख उनकी सबसे गर्वित दर्शक थीं और जब 1992 में फिल्म “दीवाना” से उन्होंने बॉलीवुड में डेब्यू किया, तो लालारूख की आंखों में खुशी के आँसू थे.
लालारुख ने शाहरुख़ के करियर के शुरुआती दौर में उन्हें वह मानसिक मज़बूती दी, जो किसी भी नए अभिनेता के लिए ज़रूरी होती है. यही वजह है कि शाहरुख़ अपनी कई इंटरव्यूज़ में यह स्वीकार करते रहे हैं कि उनकी बहन का विश्वास और प्यार उनके लिए सबसे बड़ी पूँजी है.
व्यक्तिगत जीवन में लालारूख का महत्व 
आज जब शाहरुख़ करोड़ों की संपत्ति और शोहरत के मालिक हैं, उनके घर “मन्नत” की हर दीवार इस रिश्ते की गवाही देती है. लालारुख उनके साथ उसी घर में रहती हैं और आज भी शाहरुख़ के जीवन में वह पहला चेहरा हैं, जिससे वह अपनी खुशियाँ और दुख साझा करते हैं.
हालाँकि लालारुख मीडिया की चकाचौंध से हमेशा दूर रही हैं. वह कैमरों से बचती रही हैं और साधारण जीवन को प्राथमिकता देती रही हैं, लेकिन शाहरुख़ के जीवन में उनका महत्व इतना गहरा है कि खुद किंग खान कहते हैं“अगर मैं हीरो हूँ, तो मेरी पहली निर्माता मेरी बहन लालारुख हैं.”
शाहरुख़ ख़ान की सफलता के पीछे मेहनत, लगन और किस्मत का बड़ा हाथ है, लेकिन इस पूरी यात्रा की अनकही नायिका उनकी बहन लालारुख रही हैं. उन्होंने अपने भाई को न केवल बचपन में आत्मविश्वास दिया, बल्कि मुश्किल घड़ियों में माँ की तरह सहारा दिया और हर कदम पर उनका साथ निभाया.
शाहरुख़ और लालारुख की कैमिस्ट्री यह दिखाती है कि स्टारडम केवल मेहनत का परिणाम नहीं होता, बल्कि रिश्तों का भी योगदान इसमें अहम होता है.लालारुख ने अपने भाई को वह मज़बूत आधार दिया, जिस पर खड़े होकर शाहरुख़ आज पूरी दुनिया को अपने अभिनय से मोह लेते हैं.