नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' की रिलीज़ पर रोक हटाने की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी है।यह याचिका फिल्म के निर्माता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया ने पेश की, जिन्होंने बताया कि इस फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) की मंजूरी पहले ही मिल चुकी है, और इसके बावजूद रिलीज़ पर रोक लगाना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में फिल्म की आधिकारिक रिलीज़ से एक दिन पहले, 10 जुलाई को, इसकी रिलीज़ पर रोक लगाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने यह रोक तब तक के लिए लगाई है जब तक केंद्र सरकार जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा CBFC की मंजूरी के खिलाफ दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर कोई निर्णय नहीं ले लेती।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की खंडपीठ ने यह अंतरिम आदेश उस समय दिया जब जमीयत उलेमा-ए-हिंद और पत्रकार प्रशांत टंडन द्वारा दाखिल दो याचिकाओं पर सुनवाई हो रही थी। इन याचिकाओं में फिल्म को मिली प्रमाणन को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि फिल्म की रिलीज़ से सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता है और यह सार्वजनिक व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है, क्योंकि इसका विषय अत्यधिक संवेदनशील है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि याचिकाकर्ताओं को सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के अंतर्गत पुनरीक्षण का विकल्प अपनाने के लिए कहा गया है, इसलिए उनके अंतरिम राहत के आवेदन पर निर्णय आने तक फिल्म की रिलीज़ पर रोक बनी रहेगी।
पीठ ने कहा, "जब तक अंतरिम राहत पर निर्णय नहीं आ जाता, तब तक फिल्म की रिलीज़ पर स्थगन रहेगा।"
गौरतलब है कि 'उदयपुर फाइल्स' वर्ष 2022 में राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल की दिनदहाड़े हत्या पर आधारित है। यह हत्या कथित रूप से पूर्व बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा के समर्थन में एक सोशल मीडिया पोस्ट के चलते दो युवकों द्वारा की गई थी।
यह घटना पूरे देश में आक्रोश का कारण बनी और कट्टरपंथ व सांप्रदायिक हिंसा को लेकर गंभीर चिंताएं उठीं। याचिकाकर्ताओं ने फिल्म पर आरोप लगाया है कि यह घटना को सनसनीखेज तरीके से प्रस्तुत करती है और इससे सामाजिक तनाव और बढ़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि फिल्म की रिलीज़ का समय, जब कई राज्यों में चुनाव निकट हैं, और भी अधिक चिंताजनक है।
कोर्ट ने फिल्म की विषयवस्तु पर टिप्पणी किए बिना कहा कि CBFC के निर्णय को चुनौती देने की कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अंतरिम अवधि में कोई अपूरणीय क्षति न हो।