अर्सला खान/नई दिल्ली
हिंदी सिनेमा में कुछ अभिनेता ऐसे होते हैं जिनकी आवाज़ और व्यक्तित्व स्वयं एक पहचान बन जाते हैं। रज़ा मुराद ऐसा ही एक नाम हैं एक ऐसा कलाकार जिनकी गूँजती आवाज़ और दमदार अभिनय ने खलनायकी और चरित्र भूमिकाओं को नया अर्थ दिया। आज उनकी जन्म जयंती पर उन्हें याद करना भारतीय सिनेमा की उस अनोखी विरासत को सलाम करने जैसा है, जिसे उन्होंने अपनी प्रतिभा से समृद्ध किया।
प्रारंभिक जीवन और परिवारिक पृष्ठभूमि
23 नवंबर 1950 को जन्मे रज़ा मुराद कला और साहित्य के माहिर परिवार से थे। वे मशहूर अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल के भतीजे और उर्दू साहित्यकार मुराद अली खान के पुत्र थे। अभिनय उनके लिए विरासत था, जिसे उन्होंने मेहनत और लगन से और भी ऊँचाइयों पर पहुँचाया। पुणे के एफटीआईआई से उन्होंने अभिनय की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की और 1970 के दशक में अपना फिल्मी सफर शुरू किया।
फिल्मी सफर और यादगार भूमिकाएँ
रज़ा मुराद ने लगभग हर तरह की भूमिका निभाई खलनायक से लेकर सकारात्मक किरदार, ऐतिहासिक पात्रों से लेकर गहन भावनात्मक भूमिकाओं तक। "राम तेरी गंगा मैली", "खून भरी मांग", "दामिनी", "मोहरा", "जोधा अकबर", "पद्मावत" जैसी प्रतिष्ठित फिल्मों में उनके किरदार आज भी दर्शकों की स्मृति में दर्ज हैं। उनकी गहरी आवाज़, दमदार संवाद अदायगी और प्रभावशाली स्क्रीन प्रेज़ेंस ने उन्हें फ़िल्म जगत में अलग मुकाम दिलाया।
अनसुने किस्से जो बन गए उनकी पहचान
रज़ा मुराद की आवाज़ उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी, लेकिन लोग यह नहीं जानते कि बचपन में उनकी आवाज़ इतनी गहरी नहीं थी। रेडियो नाटकों और शायरी के अभ्यास ने उनकी आवाज़ में वह वज़न भर दिया, जो आगे जाकर उनकी पहचान बन गया।
एक दिलचस्प किस्सा उस समय का है जब वे अपने शुरुआती दिनों में ऑडिशन देने गए। कास्टिंग डायरेक्टर ने जब उनकी आवाज़ सुनी, तो कमरे में सन्नाटा छा गया और वही दिन था जब उन्हें पहली भूमिका मिली।
राज कपूर का भी उनसे जुड़ा एक मशहूर बयान है: “रज़ा सिर्फ खलनायक नहीं, निर्देशक का सपना है। उसे जो भी रूप दो, वह ढल जाता है।” यह बात उनके बहुमुखी अभिनय और किसी भी किरदार में पूरी तरह ढल जाने की क्षमता को दर्शाती है।
व्यक्तित्व और सेट पर उनका व्यवहार
वे सिर्फ एक प्रभावशाली अभिनेता ही नहीं, बल्कि बेहद विनम्र और मिलनसार इंसान भी थे। सेट पर नए कलाकारों का मार्गदर्शन करना, शायरियाँ सुनाना और हल्का-फुल्का माहौल बनाकर सबको सहज कर देना उनकी आदतों में शामिल था। संवादों को ‘महसूस करके’ बोलने की उनकी सलाह आज भी कई कलाकारों को प्रेरित करती है।
सम्मान, योगदान और विरासत
लंबे करियर में रज़ा मुराद को कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले, मगर उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान दर्शकों का प्यार था। उन्होंने यह साबित किया कि खलनायक की भूमिका भी वैसी ही गहराई और संवेदनशीलता मांगती है जैसी किसी नायक की।
उनकी आवाज़, उनका अभिनय और उनकी शख्सियत भारतीय सिनेमा की वह विरासत है जिसे समय कभी धुंधला नहीं कर सकता। उनकी जन्म जयंती पर उन्हें याद करना उनके कला-संसार की भव्यता को सलाम करना है। रज़ा मुराद आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा बने रहेंगे—एक ऐसे कलाकार के रूप में जिसने अपनी आवाज़ और अभिनय से इतिहास रचा।