'कभी अलविदा न कहना': इंदौर के कॉलेज में गूंजे पूर्व छात्र किशोर कुमार के नग़मे

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 05-08-2025
'Kabhi Alvida Na Kehna': Former student Kishore Kumar's songs echo in Indore's college
'Kabhi Alvida Na Kehna': Former student Kishore Kumar's songs echo in Indore's college

 

इंदौर

हिंदी सिनेमा के महान और बहुमुखी प्रतिभा के धनी गायक किशोर कुमार की 96वीं जयंती के अवसर पर सोमवार को इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में उनके सदाबहार गीतों की गूंज सुनाई दी। इस भावुक आयोजन में कॉलेज ने अपने पूर्व छात्र को श्रद्धांजलि अर्पित की।

इस 141 साल पुराने शिक्षण संस्थान में किशोर कुमार के पूर्व और वर्तमान छात्र, साथ ही उनके प्रशंसकों ने बड़ी संख्या में एकत्र होकर इस विशेष दिन को संगीतमय और भव्य अंदाज़ में मनाया। इस मौके पर एक विशेष केक काटा गया, जिससे उनके कॉलेज जीवन की यादें ताजा हो गईं।

जब स्थानीय गायकों ने ‘कभी अलविदा न कहना’ और ‘सारा ज़माना हसीनों का दीवाना’ जैसे कालजयी गीतों की प्रस्तुति दी, तो वहां मौजूद हर व्यक्ति किशोर दा की यादों में डूब गया।

पर्दे के पीछे से गाते थे किशोर

कॉलेज के प्रशासनिक अधिकारी डॉ. दीपक दुबे ने बताया,"किशोर कुमार 1946 से 1948 तक क्रिश्चियन कॉलेज में बी.ए. की पढ़ाई के लिए आए थे। वह छात्र जीवन में ही गाने के बेहद शौकीन थे। लेकिन शर्मीले इतने थे कि स्टेज पर आने की बजाय परदे के पीछे छिपकर गाया करते थे।"

हालांकि, किशोर कुमार ने अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी और 1948 में बॉम्बे (अब मुंबई) रवाना हो गए, जहां उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखकर इतिहास रच दिया।

"पांच रुपैया बारह आना" की सच्ची प्रेरणा

डॉ. दुबे ने एक दिलचस्प किस्सा साझा किया कि किशोर कुमार कॉलेज के हॉस्टल में रहते थे और कैंटीन में काम करने वाले एक व्यक्ति को, जिसे सब 'काका' कहते थे, 5 रुपये 12 आने उधार थे।"जब भी काका मिलते, किशोर कुमार से अपने पैसे मांगते रहते। यही बात उनके दिल में बैठ गई। माना जाता है कि फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ के प्रसिद्ध गीत ‘पांच रुपैया बारह आना’ की प्रेरणा इसी वाकये से मिली थी।"

इमली का पेड़ बना यादों का गवाह

कॉलेज प्रशासन के मुताबिक, पुराने हॉस्टल के पास स्थित एक इमली का पेड़ आज भी किशोर दा की यादों को संजोए खड़ा है। उस समय वह अपने दोस्तों के साथ कक्षाएं छोड़कर इसी पेड़ के नीचे बैठकर गाने गाया करते थे, जिससे कॉलेज के प्रोफेसर अक्सर नाराज़ रहते थे।

जन्मस्थली से अंतिम विदाई

किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को खंडवा (तब मध्य प्रांत) में अभास कुमार गांगुली के रूप में हुआ था। बाद में फिल्मों में आने पर उन्होंने नाम बदलकर किशोर कुमार रख लिया।

भले ही उनका करियर और जीवन मुंबई में रहा, लेकिन उनका मन हमेशा खंडवा से जुड़ा रहा। इसी कारण 13 अक्टूबर 1987 को मुंबई में निधन के बाद, उनका अंतिम संस्कार खंडवा में किया गया।

इस तरह किशोर दा की जयंती पर उनका कॉलेज एक बार फिर गीतों की मिठास से सराबोर हो उठा और साबित हो गया कि 'कभी अलविदा न कहना' सिर्फ गीत नहीं, एक भावना है — जो इस महान कलाकार को आज भी हमारे बीच जीवित रखती है।