मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली
संजय लीला भंसाली की पहली ओटीटी वेबसीरिज ‘हीरा मंडी’ इस समय चर्चा में है. इसकी जहां लोग खुलकर तारीफ कर रहे हैं, वहीं एक वर्ग ऐसा भी है, जो ‘हीरा मंडी’ की त्रासदी को ‘ग्लैमराइज’ करने के लिए संजय लीला भंसाली की आलोचना कर रहा है.
इस रिपोर्ट में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि ‘हीरा मंडी’ तब और अब वास्तव में कैसी है, जिसपर संजय लीला भंसाली ने लगभग 14 साल के शोध के बाद यह वेबसीरिज तैयार की है. इस सीरिज के लेखक मोइन बेग हैं, जबकि फिल्म निर्माता संजय लीला.
हिरामंडी, जिसे उर्दू में ‘हीरा बाजार’ कहा जाता है, दरअसल, पाकिस्तान के लाहौर शहर में स्थित है.हीरामंडी पाकिस्तान के लोकप्रिय स्थानों में से एक है जिसने ब्रिटिश काल में नाटकीय पतन देखा.इस क्षेत्र का उदय मुगल काल में हुआ था.
यहां मुख्य रूप से अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान की लड़कियां नाच-गाकर सम्राटों का मनोरंजन किया करती थीं. इसके बाद ब्रिटिश राज में ब्रिटिश सैनिकों के मनोरंजन के लिए यह जगह वेश्यावृत्ति के लिए विकसित कर दी गई. बाद यह वेश्यावृत्ति का बहुत बड़ा केंद्र बन गया. यह वह समय था जब हीरामंडी ने अपना सम्मान खो दिया. इसकी पहचान वेश्यावृत्ति केंद्र के तौर पर बन गई.
तब हीरा मंडी कैसी थी ?
लाहौर का यह बाजार मूल रूप से मुगल काल में विकसित हुआ. 15 वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान इसे शहर की तवायफ (रखैल) संस्कृति का केंद्र बनाया गया. इसकी शुरुआत मुगलों ने की. यहां मुगल नृत्य और मनोरंजन का आनंद लेने आते थे.
इसके लिए खास तौर से अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान की लड़कियां लाई जाती थीं. बाद में, मुगलों के मनोरंजन के लिए कथक जैसे भारतीय शास्त्रीय नृत्य पर प्रदर्शन करने के लिए भारतीय उपमहाद्वीप की विभिन्न शैलियों से कुछ महिलाओं को हीरामंडी लाया गया.
मुगल काल की समाप्ति के बाद, महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर में मुगलों के कई शाही रीति-रिवाजों को फिर से शुरू किया. इसमें तवायफों की संस्कृति और दरबार में उनके प्रदर्शन भी शामिल थे.महाराजा ने इसका नाम हीरा सिंह दी मंडी रखा. उनके क्षेत्र में व्यापारिक बाजार की स्थापना की गई थी. इसकी शुरुआत ‘हीरा सिंह दी मंडी’ से हुई थी. बाद में यह
हीरामंडी से जानी जाने लगी.
तवायफों की संस्कृति की शुरुआत भले ही फिर से सिंह द्वारा की गई, बावजूद इसके कभी भी इसकी भव्यता मुगलों से मेल नहीं खा सकी, जिसे उन्हांेने दिलाया था. इतिहास की पुस्तकांे में दर्ज है कि महाराजा रणजीत सिंह को भी एक तवायफ से प्यार हो गया था, जिसका उनके लोगों ने विरोध किया था.
वह महिला कंजर जाति से थी. मगर इन आलोचनाओं का दौलत सिंह ने कोई ध्यान नहीं दिया और उस महिला से शादी कर ली. बाद में उसके लिए एक अलग हवेली बनवाई.हालांकि, ब्रिटिश शासन काल में इस क्षेत्र को अपवित्र कर दिया गया.
इसे वेश्यावृत्ति केंद्र के रूप में जाना जाने लगा. ब्रिटिश सेना के लिए पुराने अनारकली बाजार में वेश्यालय को पुनर्विकास किया गया. उसके बाद इसे लाहौरी गेट और टैक्साली गेट में स्थानांतरित कर दिया गया.
आज कैसी है हीरामंडी ?
दिन के समय, हीरामंडी किसी भी तरह के सामान्य बाजार की तरह दिखती है, जहां खास तरह के भोजन, खुस्सा (पैराम्प्रिक मुगल जूता) और संगीत वाद्ययंत्र बिकते हैं. मगर रात रंगीन हो जाती है.रात के समय वेश्यालय के ऊपर पंडाल खुल जाते हैं. देह व्यापार शुरू हो जाता है.
आज हीरामंडी सेक्स वर्कर्स का बड़ा केंद्र बन गई है. यहां की कुछ महिलाएं लोगों का मनोरंजन करने के लिए मुजारा भी करती हैं. यह प्रथा कभी बंद नहीं हुई. पाकिस्तान के अलावा यहां पड़ोसी देशों की महिलाए भी धंधे में लगाई गई हैं.
पाकिस्तान में जिया-उल-हक के शासन (1978-1988) में, इस क्षेत्र में वेश्यावृत्ति प्रथा को समाप्त करने के लिए कठोर प्रयास किए गए. मगर यह सिरे नहीं चढ़ पाया. वेश्यालय को यहां से लाहौर की अन्य गलियों में स्थानांतरित कर दिया गया. यही नहीं इंटरनेट के युग में, अब हीरामंडी के यौन कलाकार सोशल मीडिया के दर्शकों के लिए मनोरंजन का साधन बने हुए हैं.