मुझे ऐसे किरदार पसंद हैं जो भीड़ में खो जाते हैं : नवाजुद्दीन सिद्दीकी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 30-04-2025
I like characters who get lost in the crowd: Nawazuddin Siddiqui
I like characters who get lost in the crowd: Nawazuddin Siddiqui

 

आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली 
 
ज्यादातर अभिनेताओं की तरह नवाजुद्दीन सिद्दीकी का मकसद भी अपने किरदारों में डूब जाना होता है लेकिन असल जिंदगी में उन्हें फिल्मी चकाचौंध से दूर रहना पसंद है. सिद्दीकी ने 'पीटीआई-भाषा' को दिए साक्षात्कार में कहा, "मेरे लिए खुद को दूसरों से अलग दिखाना बहुत मुश्किल है. लेकिन मुझे बहुत अच्छा लगता है कि मैं एक कोने में बैठा हूं और कोई मुझे नहीं देख रहा है... बल्कि, मैं दूसरों को देख रहा हूं." उन्होंने आगे कहा, "मुझे लगता है कि यह पूरी दुनिया 70 मिमी की एक फिल्म जैसी है और मैं उसे बस देख रहा हूं."
 
सिद्दीकी का सफर उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के छोटे से कस्बे बुढाना से शुरू होकर दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) तक और फिर मुंबई तक पहुंचा, जहां लंबी संघर्ष यात्रा के बाद वह हिंदी फिल्म जगत के सर्वाधिक बहुमुखी कलाकारों में से एक बनकर उभरे. उनका यह सफर किसी कहानी जैसा लगता है. एक उभरते हुए अभिनेता के रूप में नवाज़ुद्दीन ने सीधे सी-ग्रेड फिल्मों से वैश्विक सिनेमा की दुनिया में कदम रखा.
 
बचपन के दिनों को याद करते हुए नवाजुद्दीन ने बताया कि उनके बुढाना में न तो कोई साहित्यिक माहौल था और न ही कोई सांस्कृतिक गतिविधियां होती थीं. वहां सिर्फ एक 'कच्चा थिएटर' था, जिसमें ज्यादातर सी-ग्रेड फिल्में दिखाई जाती थीं. उन्होंने कहा, "मैं उन्हीं (सी-ग्रेड) फिल्मों को देखकर बड़ा हुआ हूं. जब मैं शहर आया और एनएसडी में गया, तब वहां मुझे पहली बार वैश्विक सिनेमा देखने को मिला. इसी कारण उस बीच की बहुत-सी बॉलीवुड फिल्में मुझसे छूट गईं, जिन्हें मैंने बाद में देखा."
 
वाजुद्दीन सिद्दीकी (50) का कहना है कि वह आज भी हर किरदार को एक नई चुनौती मानते हैं. उन्होंने कहा ,"मेरी पसंद के किरदार ... एक ऐसा इंसान जिसकी कोई खास पहचान नहीं है और न ही उसमें कुछ खास दिखता है. अगर वह आपके सामने से गुजरे, तो आप ध्यान नहीं देंगे. मुझे ऐसे किरदार बहुत पसंद हैं जो भीड़ में खो जाते हैं."
यह सोच आम तौर पर अभिनेताओं की इच्छा के उलट है, जो अक्सर सबसे अलग दिखना और सबका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं. लेकिन नवाजुद्दीन इससे सहमत नहीं हैं.
 
वह कहते हैं, "मैं ऐसा नहीं चाहता. मेरी कोशिश रहती है कि असल ज़िंदगी में भी मैं अलग न दिखूं. मेरे कई दोस्त और वरिष्ठ, जैसे मनोज भैया (मनोज बाजपेयी) कहते हैं कि अगर नवाज को भीड़ में खड़ा कर दो, तो वह उसमें ऐसे घुल-मिल जाता है कि पहचानना मुश्किल हो जाता है. मुझे यही पसंद है."