जन्मदिवस विशेष : ड्रामा निगार आग़ा हश्र काश्मीरी ने लिखे थे केएल सहगल की सुपर हिट फ़िल्म ‘ चंडीदास ’ के गाने

Story by  ज़ाहिद ख़ान | Published by  [email protected] | Date 02-04-2024
Birthday Special: Drama Nigar Agha Hashr Kashmiri had written all the songs of KL Sehgal's super hit film 'Chandidas'.
Birthday Special: Drama Nigar Agha Hashr Kashmiri had written all the songs of KL Sehgal's super hit film 'Chandidas'.

 

-ज़ाहिद ख़ान

आग़ा मुहम्मद शाह हश्र काश्मीरी एक ऐसी अज़ीम शख़्सियत हैं, जिन्होंने भारतीय रंगमंच में नाटककारों को मान—सम्मान दिलाने का अहमतरीन काम किया.उनका नाम पारसी रंगमंच के बडे़ ड्रामा निगारों में शुमार किया जाता है.अरबी, फ़ारसी, उर्दू, अंग्रेज़ी, गुजराती, बांग्ला, संस्कृत आदि कई ज़बानों के जानकार आग़ा हश्र थिएटर से रूमानियत और उसके ज़ानिब हद दर्जे की दीवानगी के चलते.

हालांकि आला तालीम से महरूम रहे, लेकिन अपने शौक और स्वाध्याय से उन्होंने भरत मुनि के नाट्य शास्त्र, भारतीय लोक नाट्य और यूरोपियन रंगमंच के इतिहास और वहां के प्रमुख नाटककारों विलियम शेक्सपियर, शेरेटन, हेनरी आर्थर जोन्स, डब्ल्यू टी मांट्रिफ़ के नाटकों का विशद एवं गहन अध्ययन किया.

नाट्य लेखन पर शेक्सपियर के प्रभाव, भारतीय रंगमंच में महत्वपूर्ण योगदान और अवाम में उनकी मक़बूलियत ने आग़ा हश्र काश्मीरी को हिंदोस्तानी शेक्सपियर बना दिया.आग़ा हश्र काश्मीरी का दौर, वह दौर था जब देश में आज की तरह सर्व सुविधासम्पन्न स्थाई थिएटर हॉल नहीं थे.पारसी थिएटर कम्पनियां शहर-दर-शहर ख़ुले मैदान और मेलों में ओपन थिएटर करती थीं.

 आग़ा हश्र कश्मीरी का नाम किसी भी नाटक की कामयाबी की ज़मानत होता था.हज़ारों की तादाद में लोग उनके नाटकों के मंचन का लुत्फ़ लेने के लिए दूर-दूर से पहुंचते थे.लाईन लगाकर लोग नाटक के टिकिट खरीदते और नाटक का शो होने से पहले ही हॉल हाऊसफ़ुल हो जाया करते थे.आग़ा हश्र के नाटकों के जानिब ऐसी ग़ज़ब की दीवानगी थी, लोगों की.

आग़ा हश्र काश्मीरी को नौजवानी से ही शेरो-शायरी और ललित कलाओं से लगाव था.उन दिनों बनारस में जब भी पारसी थिएटर का मंचन होता, वे ज़रूर नाटक देखने जाते.आग़ा हश्र काश्मीरी का पहला नाटक ‘मुरीद-ए-शक' था.यह ड्रामा शेक्सपियर के ‘अ विन्टर्स टेल’ पर आधारित था.अल्फ्रेड कम्पनी के लिये लिखा, यह नाटक इस कदर मक़बूल हुआ कि नौ महीने में इसके साठ मंचन हुये.

 ‘मुरीद-ए-शक' से नाटक कंपनियों ने उनके हुनर का लोहा मान लिया। थोड़े से ही अरसे में वे नाट्य जगत पर छा गए.आग़ा हश्र काश्मीरी की उस दौर में क्या मक़बूलियत थी ?, इसको अपनी किताब ‘आग़ा हश्र और उनके ड्रामे’ में बयां करते हुए लेखक, तंकीद निगार वक़ार अज़ीम ने लिखा हैं,''हमारे ड्रामे की तक़रीबन सौ बरस की तारीख़ में आम-ओ-ख़ास दोनों में जो मक़बूलियत आग़ा हश्र के हिस्से में आई, उससे दूसरे लिखने वाले महरूम रहे.

जिस ज़माने में हश्र ने ड्रामे की दुनिया में कदम रखा अहसन लखनवी और नारायण प्रसाद बेताब का बड़ा शुहरा था.नाटक कम्पनियों में उनके ड्रामें मुंह मांगे दामों में बिकते थे.लेकिन जब आग़ा हश्र के ड्रामे स्टेज पर आए, तो कम्पनी के मालिकों ने महसूस किया कि इस नौजवान ड्रामाटिस्ट के ड्रामों में कोई न कोई ऐसी बात है, जो देखने वालों को अपनी तरफ़ खींचती है.चुनांचे, हर अच्छी कंपनी की कोशिश होती थी कि आग़ा हश्र उनके लिए ड्रामे लिखें.और हुआ भी यूं की हश्र का तअल्लुक़ जिस कंपनी के साथ हुआ उसके दिन फिर गए.’’

साल 1910 से 1932 तक का दौर, आग़ा हश्र काश्मीरी का सुनहरा दौर था.इस दौर में उन्होंने हिन्दी, उर्दू दोनों ही भाषाओं के प्रमुख नाटकों की रचना की.पारसी रंगमंच के लिये उन्होंने जिन नाटकों की रचना की उनमें शास्त्रीय, लोक, यथार्थवादी, धार्मिक-पौराणिक ग्रन्थों, ऐतिहासिक कथानकों और अंग्रेजी रंगमंच के तत्वों का अद्भुत मिश्रण मिलता है.

 भारतीय जीवन दर्शन, इतिहास, हिन्दुस्तानी रीति-रिवाज और सभ्यता-संस्कृति उनके नाटकों में साफ परिलक्षित होते हैं.सदियों से भारतीय जनमानस के चेतन और अवचेतन में अन्तर्निहित धार्मिक, पौराणिक ग्रन्थों के कथानकों को उन्होंने ख़ास तौर से अपने नाटकों का विषय बनाया.उनका नाटक ‘सीता वनवास’-रामायण और ‘भीष्म प्रतिज्ञा’-महाभारत पर आधारित थे..

 नाटक ‘भगीरथ गंगा’ उनके संस्कृत ज्ञान का अनुपम उदाहरण है.आग़ा हश्र काश्मीरी की लोकप्रियता ने उनके कई आलोचक भी बना दिये.आलोचकों ने प्रचारित किया कि हिन्दी के ड्रामें उनके लिखे नहीं है.वे हिंदी ज़बान से नावाकिफ़ है, लिहाज़ा इतने अच्छे हिंदी नाटक लिख ही नहीं सकते.जब आग़ा हश्र काश्मीरी तक यह बात पहुंची, तो इस बात का जवाब उन्होंने अलग ही ढंग से दिया.

नाटक के शो के पहले आग़ा हश्र काश्मीरी ने तक़रीबन दो घंटे तक लगातार हिंदी में तकरीर की, जिसमें एक भी शब्द उर्दू या फ़ारसी का नहीं था.अपने ही अंदाज़ में आलोचकों को यह उनका कड़ा जवाब था.‘बिल्वमंगल’, ‘मधुर मुरली’, ‘भारत रमणी’, ‘भीष्म’, ‘प्राचीन और नवीन भारत’, ‘सूरदास’, ‘लवकुश’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘औरत का प्यार’, ‘आंख का नशा’, ‘भारतीय बालक’, ‘धर्मी बालक’, ‘दिल की प्यास’, ‘पाक दामन’, ‘दोरंगी दुनिया उर्फ मीठी छुरी’, ‘वन देवी’ आग़ा हश्र काश्मीरी के वे हिंदी नाटक हैं, जो काफ़ी मशहूर हुए। हिन्दी नाटकों के अलावा उर्दू नाटक को भी उन्होंने फार्म, तकनीक, भाषा, विषयवस्तु के स्तर पर नये क्षितिज तक पहुंचाया.

आग़ा हश्र काश्मीरी का थिएटर, सही मायने में गंगा-जमुनी सांझा तहज़ीब की अलामत है.जहां तक इन नाटकों की ज़बान का सवाल है, तो हिंदी, उर्दू ज़बान से इतर हिंदोस्तानी ज़बान को उन्होंने अपने थिएटर और नाटकों के मार्फ़त पूरे मुल्क में मकबूल बना दिया.

पारसी रंगमंच पर शुरू से ही शेक्सपियर के नाटकों का असर था और आग़ा हश्र काश्मीरी भी इससे अछूते नहीं रहे.सच बात तो यह है कि उनके कई नाटक शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटकों के अनुवाद, रूपांतर, छायानुवाद, भावानुवाद थे.

नाटक ‘सैद-ए-हवस’-किंग जॉन, ‘बज्म-ए-फ़ानी’-रोमियो एंड जूलियट, ‘दिल फरोश’-मर्चेंट ऑफ वेनिस, ‘शहीद-ए-नाज़’-मेजर फॉर मेजार, ‘मार-ए-आसीन’-ऑथेलो, ‘सफ़ेद ख़ून’-किंग लियर, ‘ख़्वाब-ए-हस्ती’-मेकबेथ पर आधारित थे.

आग़ा हश्र काश्मीरी की निजी ज़िंदगी पर शेक्सपियर का ख़ासा असर था.यही वजह है कि आगे चलकर जब उन्होंने साल 1912में अपनी ड्रामा कंपनी बनाई, तो उसका नाम भी शेक्सपियर के ही नाम पर ‘इंडियन शेक्सपियर थिएट्रिकल कंपनी ऑफ़ कलकत्ता’ रखा.आग़ा हश्र काश्मीरी के नाटकों में ऐतिहासिक कथानक, राजसी दरबार और सियासती दांव-पेंच, षडयंत्र, कूटिनीति आदि तमाम तत्व शेक्सपियर के नाटकों की ही देन हैं.

बावजूद इसके अपने नाटकों को उन्होंने जिस तरह भारतीय परिवेश, वेशभूषा और हिन्दुस्तानी भाषा में ढाला, वह वाक़ई तारीफ़ के क़ाबिल है.यहां तक कि कई बार तो उन्होंने इन नाटकों के अंज़ाम तक में रद्दोबदल की.ज़िंदगी के आख़िरी दिनों में लिखा आग़ा हश्र का ऐतिहासिक नाटक ‘रुस्तम-सोहराब’ फ़ारसी के प्रसिद्ध कवि फ़िरदौसी के ऐतिहासिक एवं राष्ट्रीय महाकाव्य ‘शाहनामा’ पर आधारित है.

 यह नाटक उनके दीर्घकालीन नाटकीय अनुभव, कलात्मकता और साहित्यिक अभिरुचि का जीता जागता प्रमाण है.नाटक ‘यहूदी की लड़की’, ‘ख़ूबसूरत बला’, ‘सीता वनवास’, ‘मशरिकी हूर’, ‘असीरे-हिर्स’ और ‘रुस्तम-सोहराब’ अपने जीवंत और सशक्त कथ्य, बेजोड़ संरचना से साहित्यिक कोटि में रखे जा सकते है.

 एक लिहाज़ से देखें, तो आधुनिक रंगमंच का परिवर्तित, परिवर्धित, परिष्कृत स्वरूप पारसी थियेटर और आग़ा हश्र काश्मीरी के लोकप्रिय नाटकों की ही देन है.उन्होंने भारतीय रंगमंच को समृद्ध करने का बेमिसाल काम किया.

आग़ा हश्र काश्मीरी के कई नाटक उनकी ज़िंदगी में अप्रकाशित रहे, जिनका प्रकाशन बाद में हुआ.अपने नाटकों के प्रकाशन से ज़्यादा, उन्हें मंचन पर विश्वास था.नाटकों के प्रकाशन पर उनका कहना था,‘‘ला हौल विला... आगा हश्र काश्मीरी के ड्रामें, चीथड़ों पर छपें.

 बगैर इज़ाजत के इधर-उधर से सुन-सुनाकर छाप देते है.’’ ऐसा अज़ब-ग़ज़ब मिज़ाज और बला की ख़ुद्दारी थी, जो ताउम्र बरकरार रही.आग़ा हश्र काश्मीरी ने अपनी ज़िंदगी में करीब सत्ताईस नाटक लिखे.रंगमंच में उन्होंने हमेशा नये-नये प्रयोग किए.उनके नाट्य लेखन से पहले नाटक, पूरी तरह काव्यमय होते थे.उनमें अनेक गानों का समावेश होता था.आग़ा हश्र काश्मीरी ने नाटक में गद्य को महत्व दिया.

 रंगमंच को चुटीली, मुहावरेदार भाषा दी.यही नहीं उन्होंने पुराने नाटकों की रंग शैली तथा भाषा को बदलकर आधुनिक रंगमंच की नींव डाली.देशकाल, सामाजिक समस्याओं और अवाम के मिज़ाज को समझकर अपने नाटकों की रचना की.नाटकों से मनोरंजन के साथ सामाजिक, सियासी पैगाम देने की कोशिश की.

 अपने नाटकों पर उनका कहना था,‘‘मेरे नाटक देखकर लोग रोते-धोते हुये नहीं, बल्कि मुस्कराते हुये एक संदेश लेकर जायें.’’ आग़ा हश्र के बारे में एक बात जो बहुत कम लोगों को मालूम होगी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक पाने वाले वे अकेले मुस्लिम लेखक थे.आग़ा हश्र काश्मीरी बहुत उम्दा शायर भी थे.उनकी कई ग़ज़लें आज भी अवाम में बेहद मक़बूल हैं.

 मसलन ‘‘याद में तेरी जहां भूल जाता हूं/भूलने वाले कभी तुझे भी याद आता हूं.’’, ‘‘सब कुछ ख़ुदा से मांग लिया, तुझे मांग कर/उठते नहीं हैं हाथ, मेरे इस दुआ के बाद.’’, ‘‘आह जाती है, फ़लक पर रहम लाने के लिए/बादलों हट जाओ, दे दो राह जाने के लिए.’’ आगा हश्र काश्मीरी ने कुछ मूक फ़िल्मों में अदाकारी और डायरेक्शन किया.

बीएन सरकार के ‘न्यू थिएटर्स’ में डायलॉग राइटर और नग़मा निगार के तौर पर भी अपने आप को आजमाया.आग़ा हश्र के नाटक ‘बिल्वमंगल’ और ‘यहूदी की लड़की’ पर इसी नाम से फ़िल्में बनी.केएल सहगल की सुपर हिट फ़िल्म ‘चंडीदास’ के सभी नौ गीत उन्होंने ही लिखे थे, जो उस वक़्त काफ़ी लोकप्रिय हुए.