ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
हमारा देश अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. आप उम्मीद कर सकते हैं कि वो ऐतिहासिक क्षण जब भारत ने ब्रिटिश शासन से मुक्ति हासिल की थी. भारत की आजादी के बाद मुख्य धारा हिंदी सिनेमा ने भी इसका जश्न मनाया लेकिन क्या आप जानते हैं कि जंग-ए-आजादी के दौरान बड़े पर्दे पर क्या चल रहा था. इस लेख में आप जानेंगें कि 1945 से 1950 के वर्षों में बड़े पर्दें पर कौन सी फिल्मों ने अपनी छाप छोड़ी.
Jugnu(जुगनू 1947)
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में निर्मित फिल्मों की संख्या
1945 के बाद, जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रतिबंध हटा दिए गए थे, भारत में निर्मित फिल्मों की संख्या लगातार बढ़ रही थी. 1944 में 126 फ़िल्मों से बढ़कर 1947 में यह संख्या 283 हो गई, जिनमें से अनुमानित 114 फ़िल्में बंबई में बनाई गईं. पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में बड़े पैमाने पर आबादी के प्रवास को देखते हुए, बंगाल के विभाजन ने वहां के फिल्म उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव डाला. कोलकाता, फिर कलकत्ता की अधिकांश फ़िल्म प्रतिभाएँ बंबई चली गईं.
मोहम्मद यूसुफ खान, जो दिलीप कुमार के नाम से प्रसिद्ध हुए और उनकी पहली फिल्म ज्वार भाटा (1944) थी, धरम देव पिशोरिमल आनंद, जिन्हें देव आनंद के नाम से भी जाना जाता है, लाहौर से थे और उन्होंने 1946 में 'हम एक हैं' से अपने करियर की शुरुआत की.
जीतेन्द्र (1942), शत्रुघ्न सिन्हा (1946), शत्रुघ्न सिन्हा (1946), नसीरुद्दीन शाह (1950) ये तमाम हीरो इन वर्षों में बड़े पर्दे पर छाए.
1947 की सर्वाधिक कमाई करने वाली फ़िल्में
वर्ष 1947 में, कई फिल्में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों के रूप में उभरीं, जिन्होंने पूरे भारत में दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. उनमें से, दिलीप कुमार और नूरजहाँ अभिनीत 'जुगनू' के साथ-साथ कामिनी कौशल और उल्हास अभिनीत 'दो भाई' को बॉक्स ऑफिस पर उल्लेखनीय सफलता मिली.
सुरैया और श्याम अभिनीत मार्मिक नाटक 'दर्द' के साथ-साथ नूरजहाँ और त्रिलोक कपूर अभिनीत रोमांटिक 'मिर्जा साहिबान' ने भी काफी लोकप्रियता हासिल की. साथ ही नासिर खान और रेहाना अभिनीत 'शहनाई' और सुरेंद्र और मुनव्वर सुल्ताना अभिनीत फिल्म 'एलान' ने दर्शकों का दिल जीत लिया और 1947 में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों के रूप में उभरीं.
सुरैया को पहली बड़ी हिट फिल्म दर्द मिली और वह 1947-1950 तक बहुत लोकप्रिय गायिका बन गईं.
दूर हटों ऐ दुनियावालों, हिंदुस्तान हमारा है ( song duur haṭon aye duniyaavaalon, hindustaan hamaaraa hai)
इसी तरह, ज्ञान मुखर्जी की 'किस्मत' (1943) का गाना, 'दूर हटों ऐ दुनियावालों, हिंदुस्तान हमारा है...' (विदेशियों से दूर जाओ, भारत हमारा है), जिसमें अशोक कुमार को एक ठग के रूप में दिखाया गया था. इसकी अपार लोकप्रियता के कारण गीतकार प्रदीप को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी से बचने के लिए छिपना पड़ा था.
विभाजन की भयावहता के बीच, हिंदी फिल्म उद्योग का भविष्य अधर में लटक गया, 1947 की शुरुआत में महान केएल सहगल की मृत्यु से संगीत जगत अभी भी जूझ रहा था, लेकिन अब कई बड़े नाम नई सीमा के दूसरी ओर चले गए हैं, लेकिन जैसे-जैसे नई विभाजन रेखाएं खींची गईं, सिनेमा और साहित्य के बीच की दूरी काफी धुंधली हो गई. फिल्म उद्योग ने युवा, होनहार कवियों को अपनाया, जिनमें से कई हिंदी-उर्दू क्षेत्र से आए थे.
कुमार मोहन की फिल्म '1857' (Kumar Mohan's film '1857')
1947 में देशभक्तिपूर्ण बॉलीवुड फिल्में प्रतिबंधित थी. फिर भी, एक दिलचस्प अपवाद कुमार मोहन की फिल्म '1857' वर्ष 1947 में थी, जो विद्रोह की पृष्ठभूमि पर सुरैया और सुरेंद्र अभिनीत एक रोमांटिक कहानी थी, जो सेंसरशिप से बचने में कामयाब रही.
इसी तरह, चेतन आनंद की 'नीचा नगर' ने औपनिवेशिक शासन के तहत विशेषाधिकार प्राप्त और हाशिए पर मौजूद लोगों के बीच बढ़ते विभाजन को सावधानीपूर्वक लेकिन शानदार ढंग से चित्रित किया. विशेष रूप से, यह फिल्म कान्स फिल्म महोत्सव में प्रतिष्ठित पाम डी ओर पुरस्कार पाने वाली भारत की एकमात्र प्राप्तकर्ता बनी हुई है.
वर्ष 1947 में युवा अभिनेताओं की एक नई टोली का उदय
मुख्य रूप से, 1947 दिलीप कुमार के लिए महत्वपूर्ण महत्व रखता है. 'ज्वार भाटा' (1944) में उनकी पिछली शुरुआत के बावजूद, यह 'जुगनू' की शानदार जीत थी जिसने उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ की शुरुआत की. बाद के वर्षों में, कुमार ने 'शहीद', 'मेला' और 'अंदाज़' सहित लगातार सफलताओं के साथ एक व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त व्यक्ति के रूप में अपनी जगह मजबूत कर ली.
'ज्वार भाटा' ('Jwar Bhata' (1944)
1947 एक ऐसा वर्ष रहा जब ब्रिटिश प्रभाव के कारण फिल्में बाधित थीं. फिर भी, इसने 1950 के दशक में भारतीय सिनेमा के समृद्ध युग की नींव रखी.
साल 1950 में आई फिल्म 'बाबुल' में लीड रोल में दिलीप कुमार, नरगिस दत्त और मुनव्वर सुल्ताना लीड रोल में थे. फिल्म का निर्देशन एस.यू. सनी ने किया था. फिल्म की कहानी एक जवान पोस्टमैन पर थी, जिसे एक अमीर लड़की से प्यार हो जाता है. इस फिल्म में लव ट्रिएंगल दिखाया गया है, जिसमें कई ट्विस्ट एंड टर्न्स आते हैं. उस दौर की ये बेहतरीन फिल्म है.