24 सितंबर को हिंदी सिनेमा के एक ऐसे महान हास्य अभिनेता की जयंती है, जिन्होंने अपनी विशिष्ट अभिनय शैली से दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई — असित सेन। 1922 में जन्मे असित सेन का नाम सुनते ही एक गंभीर चेहरे वाला, धीमी आवाज़ में बोलता हुआ और अपने भारी-भरकम शरीर से हँसी का तूफान ला देने वाला किरदार ज़ेहन में उभर आता है। असित सेन ने न सिर्फ अभिनय में, बल्कि निर्देशन और फिल्म निर्माण की तकनीकी दुनिया में भी अपनी प्रतिभा दिखाई थी। उनका फिल्मी सफर एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे प्रतिभा और मेहनत के बल पर एक अभिनेता दर्शकों का चहेता बन सकता है।
असित सेन का करियर कैमरे के पीछे से शुरू हुआ था। वे कोलकाता में उस दौर के महान फिल्म निर्देशक बिमल रॉय के सहायक के रूप में काम कर रहे थे। जब बंगाली सिनेमा में गिरावट आई, तो 1950 में वे बिमल रॉय के साथ मुंबई आ गए। यहीं से उनके करियर ने एक नया मोड़ लिया। उन्होंने दो फिल्मों — 'परिवार' (1956) और 'अपराधी कौन' (1957) — का निर्देशन भी किया, लेकिन उनकी असली पहचान अभिनय से बनी।
उनकी सबसे बड़ी खासियत थी उनकी अनोखी कॉमिक टाइमिंग, धीमी आवाज़ में संवाद बोलने की कला और उनका सौम्य, सहज व्यक्तित्व। वे अक्सर फिल्मों में इंस्पेक्टर, डॉक्टर या किसी अफसर की भूमिका निभाते थे, लेकिन उनका अंदाज़ इतना अलग और मजेदार होता था कि वे हर दृश्य में छा जाते थे। उनका हास्य कभी जबरदस्ती नहीं लगता था, बल्कि उनके बोलने, चलने और देखने के तरीके से ही हँसी आ जाती थी।
असित सेन ने अपने करियर में 200 से अधिक फिल्मों में काम किया और कई पीढ़ियों के साथ काम करने का अवसर पाया। उन्होंने संजीव कुमार, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गज अभिनेताओं के साथ स्क्रीन शेयर की और हर बार अपनी उपस्थिति से सीन को खास बना दिया। उनकी प्रमुख फिल्मों में 'चलती का नाम गाड़ी', 'काबुलीवाला', 'भूत बंगला', 'आराधना', 'बुद्धा मिल गया', 'अमर प्रेम', और 'रोटी कपड़ा और मकान' जैसी फिल्में शामिल हैं।
उनका अभिनय न तो ऊँचा-नीचा था, न ही शोरगुल भरा, बल्कि बेहद सरल, स्वाभाविक और दर्शकों से जुड़ने वाला था। आज जब हम पुराने हिंदी सिनेमा की याद करते हैं, तो असित सेन की छवि हमें मुस्कुराने पर मजबूर कर देती है। वे उन चुनिंदा कलाकारों में से थे, जिनकी मौजूदगी फिल्म को हल्के-फुल्के अंदाज़ में संतुलित करती थी।
उनकी जयंती पर हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं और यह याद करते हैं कि कैसे एक कलाकार अपनी खास शैली से दर्शकों के चेहरों पर मुस्कान बिखेर सकता है। असित सेन भले ही आज हमारे बीच न हों, लेकिन उनका काम, उनकी हँसी और उनका अंदाज़ हमेशा जिंदा रहेगा।