किसी भाषा को जाति या धर्म से जोड़ना नाइंसाफी हैः संस्कृत विद्वान अहमद

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 04-08-2021
प्रो मेराज अहमद
प्रो मेराज अहमद

 

कश्मीर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष और संस्कृत के प्रकांड विद्वान प्रो मेराज अहमद से रत्ना शुक्ला आनंद की खास बातचीत

नई दिल्ली. भाषाओं के ज्ञान को लेकर आम तौर पर लोगों की सोच का दायरा बड़ा संकीर्ण है. अमूमन हम भाषा को कई तरह की सीमाओं में बांध देते हैं. ऐसे में मुस्लिम समुदाय से आने वाले विद्वानों के संस्कृत ज्ञान को लेकर भी लोग आश्चर्य करते हैं, क्या ये वाकई कोई अनूठी उपलब्धि है?

कश्मीर विश्वविश्विद्यालय के कला, भाषा और साहित्य के अंतर्गत आने वाले संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मेराज अहमद ने आवाज-दी वॉयस के साथ हुई खास बातचीत में कहा कि “भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है. अभिव्यक्ति का तरीका कुछ भी हो सकता है, दो लोग आपस में या सामूहिक तौर पर संवाद किसी भी तरह स्थापित कर सकते हैं.

क्या एक दूसरे से बातचीत को हम किसी दायरे में कैद करते हैं, नहीं, बल्कि हमारा मूल उद्देश्य संवाद स्थापित करना होता है, भले ही वो मौन ही क्यूँ न हो. यही है भाषा, इसे जाति, वर्ग, वर्ण, धर्म या क्षेत्र से जोड़कर देखना भाषा के साथ नाइंसाफी है.989 में कश्मीर में आतंकवाद ने पैर पसारना शुरू किया.फलस्वरूप कश्मीरी पंडितों का पलायन होने लगा और कश्मीर विश्विद्यालय का संस्कृत विभाग लगभग बंद हो गया.

लेकिन 2002 में इसे पुनर्जीवित करने के प्रयास शुरू हुए.कुलपति प्रोतरीन ने इस शास्त्रीय भाषा की महत्ता को पहचाना और यहाँ सर्टिफिकेट कोर्स की शुरुआत करवाई.हालांकि शुरूआती दौर में विभाग में छात्र न के बराबर थे धीरे-धीरे जम्मू से छात्रों का आना शुरू हुआ.डॉक्टर मेराज अहमद के विभाग में आने के बाद यहां डिप्लोमा, स्नातकोत्तर और पीएचडी पाठयक्रम की शुरुआत हुई.

अब यहाँ integrated पीएचडी पाठयक्रम के तहत भारतीय दर्शन, भारतीय संस्कृति, आयुर्वेद, वैदिक इतिहास, धर्मशास्त्र, कश्मीर का साँस्कृतिक इतिहास और भारत की काव्य यात्रा में कश्मीर का योगदान जैसे विषयों को भी शामिल किया गया है.जिसके बाद छात्रों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है.

आज यहाँ स्नातकोत्तर में 2,  डिप्लोमा में 6 और सर्टिफिकेट में 15 छात्र छात्राएं हैं.जबकि इंटीग्रेटेड पीएचडी के लिए 2021 में 15 छात्रों ने आवेदन किया है और 6 पाठयक्रम पूरा करने वाले हैं.

 

गोल्ड मेडलिस्ट हैं प्रो मेराज 

प्रो मेराज अहमद मूल रूप से पटना, बिहार के रहने वाले हैं. प्रो मेराज बताते हैं कि उनके पिता पुलिस विभाग में थे और बच्चों की शिक्षा को लेकर काफी गंभीर थे. ऐसे में उनके भीतर पटना विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण करने की इच्छा बचपन से ही बलवती थी. स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद उन्हें पटना विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया और यहाँ से एक और इच्छा ने जन्म लिया, वो थी सिविल सर्विसेज में जाने की. अध्ययन चलता रहा और उन्होंने स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों ही परीक्षाओं में विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान पाया. यहा तक कि संस्कृत में सर्वाधिक अंक पाने के विश्वविद्यालय के पहले के सारे रिकॉर्ड टूट गए और उन्हें संस्कृत में गोल्ड मेडल मिला. हालांकि उन्हें सिविल सर्विसेज में कामयाबी नहीं मिल पाई, परंतु उनकी योग्यता उन्हें अध्यापन कार्य की ओर खींचकर कश्मीर विश्वविद्यालय ले गई.

कश्मीर के संस्कृत विभाग का कायाकल्प

प्रो मेराज बताते हैं कि जब उन्होंने वहां पदभार सम्भाला तब संस्कृत विभाग की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, क्यूंकि संस्कृत पढ़ाने वालों की वहां कमी थी. लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने विभाग के पुस्तकालय से लेकर बाकी व्यवस्थाओं को संभाला और विभाग को आधुनिक बना दिया. आज यहां आधुनिक संस्कृत पढ़ाई जाती है और यहां के विद्यार्थी देश-विदेश में ख्याति प्राप्त करते हैं.

प्रो मेराज के मुताबिक भाषा भी एक तरह का विज्ञान है और इसकी खूबसूरती और विकास को वही समझ सकता है, जिसे भाषाओं के अध्ययन में रुचि हो. जब हम किसी भाषा के पठन-पाठन की बात करते हैं, तो ये विशुद्ध रूप से एक शैक्षणिक यात्रा होती है.

संस्कृत है कश्मीर के इतिहास का हिस्सा

प्राचीन भारत के इतिहासकारों में कश्मीर का इतिहास लिखने वाले कल्हण का विशेष स्थान है. कल्हण द्वारा संस्कृत में लिखी गई राजतरंगिणी को भारतीय इतिहास के कालक्रम का विवरण देने के लिए जाना जाता है. इसके मायने हैं कि राजाओं की नदी, जिसमें उस समय के राजनीतिक इतिहास की जानकारी वर्णित है.

प्रोफेसर मेराज के मुताबिक कश्मीर में संस्कृत धीरे-धीरे विलुप्त सी हो गई थी, परंतु भारतीय इतिहास और संस्कृति को जानने की ये कुंजी है, जिसे वैश्विक स्तर पर स्वीकारा जाता है. ऐसे में संस्कृत भाषा की न तो उपेक्षा की जा सकती है और न ही इसे किसी सीमा में बांधा जाना चाहिए.

संस्कृत के कारण भेदभाव नहीं

प्रो मेराज अहमद बताते हैं कि उन्हें संस्कृत के कारण कभी किसी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा. यदि ऐसा होता, तो उन्होंने सर्वोच्च स्थान पाकर गोल्ड मेडल न पाया होता. दृष्टिकोण बहुत मायने रखता है और यदि आप पढ़ने-लिखने वाले व्यक्ति हैं, तो निश्चित तौर पर विस्तृत सोच के मालिक हैं.

आखिर लोकप्रिय क्यूँ नहीं संस्कृत

प्रो मेराज के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में पढ़ने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थी ऐसी भाषा का चुनाव करना चाहते हैं, जो उनके काम आए. यही वजह है कि संस्कृत पीछे छूट जाती है. हालांकि भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के मुताबिक वैदिक श्लोकों का पाठ करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है. यही नहीं चूंकि संस्कृत विश्व की अनेक भाषाओं की जननी है. इसीलिए कहा जाता है कि कहा जाता है कि जिसे संस्कृत आ गई, वो कोई भी भाषा बहुत आसानी से सीख सकता है.

संदेश

प्रो मेराज अहमद आज देश की साझा संस्कृति के जीते जागते प्रतीक हैं. उनके मुताबिक तहजीबों के संगम की ये भारत-भूमि पूरी दुनिया के लिए मिसाल है.