शिक्षक दिवस विशेषः खाड़ी देश की नौकरी त्याग गांव में जला रहे शिक्षा की रौशनी

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 04-09-2021
स्त्री शिक्षा का संकल्प
स्त्री शिक्षा का संकल्प

 

मोहम्मद अकरम

“अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब मैं खाड़ी देश सऊदी अरब मे नौकरी कर रहा था, उस समय मेरा दिल नहीं लग रहा था. हमेशा समाज के बच्चों को शिक्षित करने की सोचता रहता था. चार साल नौकरी करने के बाद गांव लौटा और बच्चों और बच्चियों को शिक्षा देने की ठान ली. शुरुआत में एक रुम में बच्चों को पढ़ाता, लेकिन अब अल्लाह का करम है कि जगह कम होने से लड़कियों के माता-पिता को नहीं चाहते हुए भी मना करना पड़ता है. हर साल हमारे बच्चे बोर्ड और कॉम्पटीशन की परीक्षाओं मे कामयाबी हासिल कर रहे हैं. मेरा सपना है कि मेरे मुस्लिम समाज की उन लड़कियों को शिक्षित करें, जो  गांव में पढ़ाई के अभाव में, अच्छे शिक्षक नहीं मिलने से पढ़ाई नही करती हैं और माता-पिता उन्हें अकेले जाने नहीं देते है. इससे हमारा देश और मुआशरा विकसित होगा.” ये बातें बिहार के मोतिहारी जिले के ढाका थाना अंतर्गत चंदनबाला के रहने वाले स्वर्गीय मोहम्मद उबैदुल्लाह के पुत्र इंजीनियर मोहम्मद आसिम ने कही.

वह बताते हैं कि समाज में लड़कों के साथ लड़कियों को बराबरी की शिक्षा नहीं देना हमारे समाज को पीछे कर रहा है. जब मैंने वर्ष 2016मे अपने गांव चन्दनबारा मे कोचिंग के स्कूल मे बच्चों और बच्चियों को पढ़ाना शुरू किया, तो शुरू में बहुत अफसोस हुआ. हजारों की जनसंख्या वाले गांव और लाखों आबादी वाले इलाके मे क्या सिर्फ तीन-चार बच्चिया ही मैट्रिक और इंटर पहुंच पाते या फिर लड़कियों को मौका नही मिलता है. इसके बाद हमने सोशल मीडिया पर इस बारे लिख कर लोगों के बीच साझा किया, जिस पर लोगों ने हौसला बढ़ाया. बच्चियों के माता-पिता से मिलता था, लेकिन अब दर्जनों की संख्या में नहीं, बल्कि सैकड़ों की तादाद मे मैट्रिक से उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही है.

पिछले साल के बिहार बोर्ड मे हमारे यहां के बच्चों ने कामयाबी हासिल की, जिन के सम्मान मे ढाका फैन क्लब ने सम्मानित भी किया है.

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स्त्री शिक्षा के लिए मोहम्मद आसिम को किया गया सम्मानित

इस साल भी हमारे यहां की छात्राओं ने जिला स्तर पर नाम रौशन किया है. इनमें संजीदा खातून और तहसीन सबा का नाम शामिल है, इन्हंे जिला प्रशासन ने सम्मानित किया है.

वह बताते हैं कि हमारा समाज आज भी लड़कियों को उच्च शिक्षा देने में बहुत पीछे है. इसका कारण ये है कि जिम्मेदार व्यक्ति इसके लिए सोचते नहीं हैं. हालांकि इस्लाम धर्म ने सिर्फ ये कहा है कि शिक्षा प्राप्त करो, लड़के और लड़कियों को बांटा नहीं है., मैं जिस इलाके से आता हूं, वहां लड़कियों को धार्मिक शिक्षा देने का चलन कुछ सदी पहले शुरु हुआ है, लेकिन धार्मिक शिक्षा के साथ आधुनिक शिक्षा दिलाने से माता-पिता हिचकिचाते हैं.

लड़कियों का सपना होता है कि वह भी शिक्षा हासिल ऑफिसर बने, डॉक्टर, इंजीनियर बनें, लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हो पाता है. आज पूरी दुनिया में लड़कों के साथ लड़कियां शाना-बशाना खड़ी हैं, वो ओलंपिक का मैदान हो या फिर खेल की दुनिया, हर जगह कामयाबी के परचम लहरा रही हैं. हमारे समाज को विशेष कर मुस्लिम समाज को इस पर ध्यान देने की अति आवश्यकता है कि वह बच्चों की तरह बच्चियों को भी हर मैदान मे कामयाब होने का अवसर दें.

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मोहम्मद आसिम के स्कूल में पढ़ती हुई छात्राएं

वह आगे कहते हैं कि सच्चर कमिटी ने कई साल पहले कहा था कि देश के मुसलमानों की शैक्षिक स्थिति बेहद खराब है. हाल के कुछ वर्ष पहले राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश के मुसलमान शिक्षा के कई मानदंडो पर एससी और एसटी से भी बदतर स्थिति में हैं. कमेटी की रिपोर्ट के बाद मुसलमानों में तालीम की तरफ जागरूकता बढ़ी, मगर अभी इस पर ज्यादा कार्य करने की आवश्यकता है.

आज के दिन शिक्षक को याद करने का है. साथ ही ये तय भी करना है कि समाज मे ंशिक्षा का स्तर कैसे बढ़े, जिस तरह लड़कों को मौका दिया जा रहा है, उसी तरह लड़कियों को भी दिया जाए, जिससे वह अपनी सलाहियत का लोहा मनवा सकें.