अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में गिरावट के बाद JNU ने फीस में की 80% कटौती, वैश्विक पहुंच बढ़ाने की कोशिश

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 01-07-2025
JNU cuts fees by 80% after drop in number of international students, tries to increase global reach
JNU cuts fees by 80% after drop in number of international students, tries to increase global reach

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली 

भारत के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में से एक, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए ट्यूशन फीस में 80 प्रतिशत तक की बड़ी कटौती का फैसला लिया है. विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह कदम ऐसे समय पर उठाया है जब पिछले कुछ वर्षों में विदेशी छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है.
 
विश्वविद्यालय का मानना है कि यह निर्णय न केवल JNU को वैश्विक स्तर पर अधिक आकर्षक बनाएगा, बल्कि दक्षिण एशिया में उच्च शिक्षा के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में भारत की छवि को भी मजबूती देगा.
 
क्या है नया फीस ढांचा?

इससे पहले JNU में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए सालाना फीस लाखों रुपये तक पहुंच जाती थी, जो कई विकासशील देशों के छात्रों के लिए एक बड़ी चुनौती थी। अब नए ढांचे के तहत यह फीस लगभग भारतीय छात्रों के बराबर या थोड़ी अधिक होगी. उदाहरण के तौर पर, जो पीएचडी प्रोग्राम की सालाना फीस पहले 2,400 डॉलर (लगभग ₹2 लाख) थी, वह अब घटाकर मात्र 480 डॉलर (लगभग ₹40,000) कर दी गई है.
 
वाइस-चांसलर प्रोफेसर शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने प्रेस को बताया, “JNU हमेशा से वैश्विक संवाद और विविधता का समर्थन करता रहा है. हम चाहते हैं कि दुनिया भर के छात्र यहां आएं और भारत के विचारों, ज्ञान परंपरा और आधुनिक शोध का हिस्सा बनें। फीस में कटौती इसी दिशा में एक रणनीतिक कदम है.
 
क्यों घटी अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या?

पिछले पांच वर्षों में JNU में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में 40 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई है. इसका प्रमुख कारण बढ़ती ट्यूशन फीस, कोविड-19 महामारी के बाद वैश्विक यात्रा में बाधाएं, वीजा नीति में बदलाव और प्रतिस्पर्धी वैश्विक विश्वविद्यालयों द्वारा आकर्षक स्कॉलरशिप योजनाएं रही हैं.
 
विशेषज्ञों का मानना है कि JNU जैसी संस्था को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए सुविधाएं, कोर्स का डिज़ाइन और फीस ढांचे को लगातार बेहतर बनाना होगा। इसी संदर्भ में यह फैसला लिया गया है.
 
किन देशों के छात्रों को होगा लाभ?

इस फैसले से खास तौर पर दक्षिण एशिया, अफ्रीका, मध्य एशिया और लैटिन अमेरिका के छात्रों को लाभ मिलेगा. इन क्षेत्रों से हर साल सैकड़ों छात्र JNU में एडमिशन की कोशिश करते हैं, लेकिन फीस, रहने की लागत और सीमित छात्रवृत्तियों के कारण पीछे हट जाते हैं.
 
अब जबकि फीस काफी कम हो गई है, विश्वविद्यालय को उम्मीद है कि 2025-26 शैक्षणिक सत्र से अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में 30-40% तक की बढ़ोतरी देखी जा सकती है.
 
वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत

भारत सरकार भी “Study in India” जैसे अभियानों के जरिए विदेशी छात्रों को भारत आने के लिए प्रेरित कर रही है. JNU का यह फैसला इसी सरकारी नीति के अनुरूप है. भारत पहले से ही नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान, नाइजीरिया और केन्या जैसे देशों के छात्रों के लिए एक लोकप्रिय डेस्टिनेशन रहा है.
 
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने भी उच्च शिक्षण संस्थानों को सुझाव दिया है कि वे अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए लचीलापन बढ़ाएं, जिसमें फीस, वीजा सहायता और सांस्कृतिक समावेशिता शामिल है.
 
क्या होंगे इसके दीर्घकालिक प्रभाव?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालय की रैंकिंग और छवि में सुधार
सांस्कृतिक और शैक्षणिक विविधता में वृद्धि
विदेशी छात्रों से जुड़ी शोध और सहयोग परियोजनाओं को बढ़ावा
अन्य भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए भी एक उदाहरण
 
हालांकि, कुछ शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ फीस घटाने से काम नहीं चलेगा। उन्हें लगता है कि JNU को इंफ्रास्ट्रक्चर, अंतरराष्ट्रीय संकाय और कोर्स कंटेंट को भी वैश्विक मानकों के अनुरूप ढालना होगा.
 
JNU का यह निर्णय भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में एक रणनीतिक और साहसिक पहल माना जा रहा है. इससे न केवल विश्वविद्यालय में विविधता और समावेशिता बढ़ेगी, बल्कि भारत को वैश्विक शिक्षा केंद्र बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम भी साबित हो सकता है.
 
अब देखना यह होगा कि अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थान JNU के इस निर्णय को अपनाते हैं या नहीं, और यह पहल अंतरराष्ट्रीय छात्रों को किस हद तक भारत की ओर आकर्षित कर पाती है.