सेराज अनवर / रांची
झारखंड का जामताड़ा जिला साइबर क्राइम के लिए जाना जाता है. संथाल परगना क्षेत्र में स्थित ये जिला ठगी के लिए भी मशहूर है. जहरखुरानी के जरिए रेल यात्रियों से लूट की वारदात को अंजाम देने वाले यहां के अपराधियों ने डिजिटल क्रांति का सहारा लेकर साइबर की दुनिया में हंगामा मचा दिया है.
2019की बात है, जामताड़ा के अताउल अंसारी ने खुद को स्टेट बैंक का मैनेजर बताते हुए पंजाब की परणीत कौर को फोन किया. फिर सैलरी ट्रांसफर के नाम पर धोखे से उनकी एटीएम जानकारी और ओटीपी नंबर जान लिया. इसके बाद तीन बार में परणीत कौर के अकाउंट से 23लाख रुपए निकाल लिए गए.
जामताड़ा से ही की गई साइबर ठगी से एक केंद्रीय मंत्री को 1.80लाख का नुकसान हुआ. केरल के एक सांसद को तो 1.60लाख का झटका लगा. यूपी के एक बीजेपी विधायक से 5000रुपये की ठगी हुई. इस पर एक फिल्म भी बनी है ‘जामताड़ा-सबका नंबर आएगा.’
लेकिन इस वक्त देश भर में जामताड़ा की चर्चा दूसरी बात को लेकर हो रही है. बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी आईएएस फैज अहमद मुमताज ने पुस्तकालय-क्रांति की ऐसी नींव रखी है कि जामताड़ा का काला अतीत काफी पीछे छूट गया है. देश का शायद यह पहला जिला है, जहां सभी पंचायतों में पुस्तकालय की लगभग स्थापना हो चुकी है. 2014बैच के आइएएस फैज अहमद जामताड़ा के डीडीसी पद पर कार्यरत हैं.
उपायुक्त के पद पर तैनात होते ही इन्होंने जिले की सूरत बदलने की ठान ली थी. जामताड़ा में 118पंचायतें हैं और 112में पुस्तकालय स्थापित हो चुके हैं. फैज अहमद ने ‘आवाज द वॉयस’ को बताया कि एक दो दिनों में जिले की सभी पंचायतों में लाइब्रेरी खोल दी जाएगी.
रांची से प्रकाशित उर्दू दैनिक फारुकी तंजीम के पत्रकार मुजम्मिल आलम कहते हैं कि जामताड़ा जिले के सुदूरवर्ती गांव में ग्रामीण पुस्तकालयों की स्थापना कर फैज अहमद ने एक नई मिसाल कायम की है. बेकार पड़े सरकारी भवनों को प्रयोग में लाने का हुनर अन्य अधिकारियों को इनसे सीखना चाहिए. पुराने भवनों को पुस्तकालयों में बदलने के साथ ही नई पुस्तकालयों का भी निर्माण किया गया है.
फैज अहमद कहते हैं कि यह विचार ग्रामीण युवाओं के घर में पढ़ने की आदतों और पढ़ाई के स्थान को विकसित करने के लिए एक बेहतर वातावरण प्रदान करना है, ताकि वे शहरों और कस्बों की ओर रुख किए बिना प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता हासिल कर सकें.
पुस्तकालय खोलने की प्रेरणा के बारे में फैज ने बताया कि एक जनता दरबार के आयोजन के सिलसिले में ग्रामीण भ्रमण पर था। इसी दौरान चेंगाडीह पंचायत के एक शख्स ने कहा कि अगर यहां लाइब्रेरी होती, तो इससे हमें काफी मदद मिलती. उनकी यह बात हृदय को छू गयी और मैंने इस दिशा में कुछ सार्थक करने की ठान ली.
सामाजिक बदलाव को धरातल पर उतारने की खातिर फैज अहमद ने जिले में पुस्तकालयों को बढ़ावा देने के लिए अनोखी पहल का आगाज किया. यूपीएससी में 17वीं रैंक प्राप्त फैज जामताड़ा के जिलाधिकारी भी रह चुके हैं. पुस्तकालय स्थापना की शुरुआत की बाबत फैज बताते हैं कि शहर में काफी जर्जर स्थिति में एक सरकारी भवन था, उन्होंने इसे तोड़ने का फैसला किया.
लेकिन जब इंजीनियर ने उन्हें इसका खर्च बताया, तो उन्हें अहसास हुआ कि सरकारी भवनों को बनाने में भारी खर्च होता है, लेकिन सही इस्तेमाल नहीं होने के कारण कुछ वर्षों में उसकी स्थिति बदहाल हो जाती है और उसे तोड़ दिया जाता है. इसके बाद उन्हें विचार आया कि क्यों न ऐसे भवनों को चिन्हित कर उसे फिर से संवारा जाए और एक पुस्तकालय के रूप में तब्दील किया जाए.
भवनों की मरम्मत के बाद उसमें कुर्सियां, टेबल और किताबें रखने का सिलसिला चला. जिसके बाद पुस्तकालयों के रख-रखाव के लिए स्थानीय ग्रामीणों की एक समिति बनाकर उन्हें सौंप दिया गया है.
उपायुक्त फैज अहमद कहते हैं कि उनकी पहल से दो उद्देश्यों की पूर्ति हो रही है. पहली बेकार पड़े भवनों को उपयोग में लाना और साथ ही पुस्तकालय के निर्माण से ग्रामीणों के बीच एक सामाजिक और सामुदायिक भवनों को विकसित करना है. मेरा मानना है कि किसी भी समुदाय के विकास में पुस्तकालय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. उन्होंने बताया कि मेरे इस प्रयास से जामताड़ा का पूरा माहौल बदल गया है. पढ़ने-पढ़ाने का माहौल बना है.
चेंगाडीह, नाला, कुंडहित, फतेहपुर जैसे सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में स्थापित पुस्तकालय जामताड़ा में बदलाव की कहानी बता रहा है. शुरूआती दिनों में फैज की योजना महज 20-30पुस्तकालयों को बनाने की थी, लेकिन लोगों के उत्साह को देखते हुए फैज ने अपने दायरे को बढ़ाने का विचार किया और आज हर पंचायत में एक लाईब्रेरी दिख रही है.
इन पुस्तकालयों में किताबों की उपलब्धता जनभागेदारी के तहत सुनिश्चित की जा रही है. जहां मामूली खर्च की जरूरत पड़ रही है, वहां सरकार के कन्वर्जन से संसाधनों को जुटाया जा रहा है. जैसे पीएचडी नल की सुविधा दे रही है, तो बिजली विभाग निःशुल्क बिजली की. वहीं, टेबल, अलमारी जैसे संसाधनों को सीएसआर फंड से जुटाया जा रहा है.
फैज कहते हैं कि हमने पुस्तकालयों के रख-रखाव के लिए लोगों को अपनी तरफ से ज्यादा दिशा-निर्देश नहीं दिए हैं. हमने इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय समुदायों को ही सौंप दी है.इसे कब और कितने समय के लिए खोलना है, यह पूरी तरह उनके ऊपर निर्भर करता है. इसके लाइब्रेरियन, लाइब्रेरी के अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष का चयन किया जा रहा है.
हम उनके अकाउंट बना रहे हैं, ताकि यदि कोई दान देना चाहता है, तो वह आसानी से जमा कर सके. भविष्य में हर पुस्तकालय की व्यक्तिगत रूप से समीक्षा के साथ इंटर लाइब्रेरी डिबेट कम्पीटीशन के आयोजन पर भी काम चल रहा है. डिबेट की शुरुआत भी हो चुकी है. पुस्तकालय में अखबारों के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षा के लिए कई जरूरी किताबें हैं. ग्रुप स्टडी की भी शुरूआत की गयी है.
उपायुक्त फैज अहमद ने कुछ दिन पहले उच्च विद्यालय के शिक्षकों को रविवार को सामुदायिक पुस्तकालय में बच्चों को पढ़ाने का लिखित निर्देश भी जारी किया था. जिसके आधार पर रोस्टर के अनुसार विद्यालय अलग-अलग शिक्षकों को प्रबंधन पुस्तकालय में रविवार को भेज रहा है. फैज ने लोगों को शिक्षित करने के लिए एक बेहतरीन पहल की है.
इसका उद्देश्य ये है कि इससे गरीब पढ़ाई-लिखाई के लिए प्रेरित हो सकें. शिक्षा के क्षेत्र में देश के पिछड़े होने का एक महत्वपूर्ण कारण उन्नत देशों के मुकाबले यहां के पुस्तकालय काफी पिछड़े हुए हैं. देश में जितनी जल्दी अपने पुस्तकालयों को बढ़ावा देंगे, उतनी ही जल्दी हम ज्ञान के क्षेत्र में अपना परचम लहरा सकेंगे.फैज ने अपने कठिन परिश्रम से यह साबित कर दिया है, जो जामताड़ा कल तक ठगी और साइबर क्राइम लिए जाना जाता था, आज वही जिला देश-दुनिया में पुस्तकालय क्रांति के लिए प्रसिद्ध हो रहा है.