बंगाल का इकलौता यूनानी मेडिकल कॉलेज बंद होने की कगार पर

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 08-02-2021
कोलकाता के यूनानी मेडिकल कॉलेज के छात्र, शिक्षक और कर्मचारी धरना देते हुए
कोलकाता के यूनानी मेडिकल कॉलेज के छात्र, शिक्षक और कर्मचारी धरना देते हुए

 

 

नूरुल्लाह जावेद / कोलकाता

पश्चिम बंगाल के एकमात्र यूनानी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के शिक्षक, छात्र और कर्मचारी 21दिसंबर से हड़ताल पर हैं। इस दौरान छात्रों और शिक्षकों ने कई बार कलकत्ता की सड़कों पर मार्च किया और राज्य के स्वास्थ्य मंत्रालय को एक ज्ञापन सौंपा, लेकिन लगभग डेढ़ महीने में किसी भी वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने उनसे बात करने की आवश्यकता महसूस नहीं की। और न ही सत्ता पक्ष का कोई नेता उनसे मिलने आया। कॉलेज से सिर्फ एक किलोमीटर की दूरर पर संसद के कई मुस्लिम सदस्यों के निवास हैं, लेकिन कोई भी उनसे बात करने को तैयार नहीं।

हकीम सईद अहमद खान, हकीम बख्शी, हाकिम सलीम अजीम, हकीम निहाल अहमद और हकीम इसरार-उल-हक के संयुक्त प्रयासों से हकीम सैयद मुहम्मद फैजान की पहल पर 1989में कलकत्ता ग्रीक मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई थी, जिसे अब यूनानी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल कहा जाता है।

दरअसल, 2008में पूर्व वाम मोर्चा सरकार ने कलकत्ता यूनानी मेडिकल कॉलेज को अपने कब्जे में लेने का फैसला किया और इसके खिलाफ कार्रवाई की। कलकत्ता यूनानी मेडिकल कॉलेज अधिनियम विधेयक 4दिसंबर, 2009को विधानसभा में पेश किया गया था, लेकिन विपक्ष की आपत्तियों के बाद, अध्यक्ष हाशिम अब्दुल हलीम ने विधेयक को स्थायी समिति के पास विचारार्थ भेज दिया, जो सर्वसम्मति से पारित किया गया था। लेकिन विधेयक पर हस्ताक्षर करने के बजाय, तत्कालीन राज्यपाल ने इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया। राष्ट्रपति ने विधेयक पर गृह मंत्रालय, श्रम मंत्रालय और विधि मंत्रालय से राय मांगी।

ममता ने दस सालों में भी नहीं सुलझाया

आयुष मंत्रालय, श्रम मंत्रालय ने बिल के पक्ष में मतदान किया, जबकि कानून मंत्रालय ने बिल पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इसमें उस लागत का उल्लेख नहीं है, जिसमें कॉलेज सरकार द्वारा कब्जे में लिया गया था। एक संशोधित अधिनियम बन सकता था, लेकिन सरकारी अधिकारियों के रवैये के कारण इसमें देरी हुई। इस बीच, 2011में विधानसभा चुनाव आए और ममता बनर्जी सत्ता में आईं। ममता बनर्जी दस सालों से सत्ता में हैं, लेकिन अभी तक यूनानी मेडिकल कॉलेज का मामला लंबित है।

हर दरवाजा खटखटा लिया

अब कॉलेज के शिक्षक और कर्मचारी न्याय पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. मोहम्मद अयूब कासमी ने कहा कि पिछले दस सालों में हमने सरकार के सभी दरवाजे खटखटाए हैं। उन्होंने वादा किया कि इस मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझा लिया जाएगा, लेकिन दस साल बीत गए और सरकार ने कुछ नहीं नहीं किया।

यूनानी मेडिकल कॉलेज से अन्याय क्यों

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कोलकाता के यूनानी मेडिकल कॉलेज के छात्र, शिक्षक और कर्मचारी जुलूस निकालते हुए


इससे पहले, सरकार ने आयुर्वेद और होम्योपैथी के कॉलेजों को कब्जे में लिया था। डॉ. अयूब ने कहा कि हमने कॉलेज को बिना शर्त सरकार को सौंपने का फैसला किया था। हमारी एकमात्र शर्त कॉलेज के मौजूदा कर्मचारियों को बहाल करना था। जब समान शर्तें अन्य कॉलेजों में लागू हो सकती हैं, तो फिर यूनानी मेडिकल कॉलेज के साथ अन्याय क्यों हुआ।

अल्पसंख्यक भूमिका की मांग नहीं

कॉलेज प्रबंधन समिति के एक सदस्य ने कहा कि स्थानीय सांसद सुदीप बंधु पाढिया ने कई मौकों पर कॉलेज प्रशासन से लिखित आश्वासन लिया था कि सरकार द्वारा कॉलेज संभालने के बाद अल्पसंख्यक भूमिका की मांग नहीं की जाएगी। हमने यह भी लिखित आश्वासन दिया कि अल्पसंख्यक भूमिका की मांग नहीं होगी। इसके बावजूद, स्थानीय सांसद ने हमारे लिए कुछ नहीं किया।

कॉलेज को अनुदान कम हो गया

आप सरकार को कॉलेज क्यों सौंपना चाहते हैं? इस सवाल के जवाब में, डॉ. मोहम्मद अयूब कहते हैं कि हम मेडिकल काउंसिल की सख्त शर्तों और खर्चों को बढ़ाने का बोझ नहीं उठा सकते। हमारे यहां छात्रों की फीस बहुत कम है। सरकार से हमें जो अनुदान मिलता है, वह अपर्याप्त है। 2010तक हमें प्रति वर्ष 70लाख रुपए अनुदान के मिलते थे, लेकिन अब यह घटकर केवल 20लाख रुपये रह गया है। ऐसी स्थिति में हम कॉलेज कैसे चला सकते हैं। 2011से पहले के नेता और तृणमूल कांग्रेस कहती थी कि हम न्याय करंगेे, लेकिन उन्होंने अपना वादा नहीं निभाया।