राकेश चौरासिया
कुछ दशक पहले किसी अखबार में पढ़ा कि कोई हुसैनी ब्राह्मण भी होते हैं. तब से यह विषय मेरे लिए कौतुहल और गवेषणा का विषय बन गया. पता चला कि बा्रह्मणों के एक उप समूह ‘मोहियाल’ को हुसैनी ब्राह्मण या शिया ब्राह्मण भी कहा जाता है. जिज्ञासा बढ़ी, तो एक दिन बाल सखा संजय बाली से पूछा, वो भी मोहियाल ब्राह्मण हैं.
उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी. तत्लकालीन दैनिक प्राण के संपादक स्व. विश्वबंधु छिब्बर से पूछा. हम दोनों के मध्य सदैव गुरू-शिष्य भाव रहा. उन्होंने अवश्य बताया कि उन्होंने पुरखों से सुना है कि जब ईराक में उनके पुरखे रहते थे, तब उन्होंने कर्बला की लड़ाई में हिस्सा लिया था.
हालांकि कुछ लोगों को यह गुमां रहता है कि हुसैनी ब्राह्मण मुस्लिमों का ही कोई जुदा मसलक है. मगर वे मूलतः हिंदू हैं, लेकिन पैगंबर मुहम्मद के पोते और हजरत अली के बेटे हजरत इमाम हुसैन में आस्था रखते हैं. वे आम हिंदुओं की तरह देवी-देवताओं की मूर्ति पूजा करते हैं और अपने घरों के पूजा घर के एक कोने में हजरत इमाम हुसैन का प्रतीक ‘अलम’ भी रखते हैं.
हिंदी, उर्दू और फारसी के लोग लोकगीतों में मोहियाल ब्राह्मणों का जिक्र मिलता है. एक कहनूत के मुताबिक ‘वाह ‘दत्त’ सुल्तान, हिंदू का धरम, मुसलमान का ईमान, आधा हिंदू, आधा मुसलमान.’ मोहियाल ब्राह्मणों के इतिहास के अनुसार उनका इतिहास महाभारतकालीन है. महाभारत के भीषण युद्ध में गुरू द्रोणाचार्य ने भी भाग लिया था, जो दत्त गोत्र के ब्राह्मण थे. उनका पुत्र अश्वत्थामा युद्ध में घायल हो गया, तो वह ईराक जाकर बस गया. ये हुसैनी ब्राह्मण अश्वत्थामा के ही वंशजों में शुमार होते हैं.
ये भी पढ़ें : कर्नाटक के हिरेबिदानूर में मुस्लिम नहीं हिंदू मनाते हैं मुहर्रम !
मोहियाल ब्राह्मणों के इतिहास में लिखा है कि इस समुदाय के सदस्य ब्राह्मण वृत्ति के अनुरूप प्रारंभिक काल में दान-दक्षिणा लेकर और षिक्षण-अध्यापन करके जीवन यापन करते थे. कालांतर में उन्हें दान मिलना कम हो गया, तो उन्होंने सैन्य कर्म अपना लिया और जंग लड़ने लगे. वे इतिहास में सिद्ध योद्धाओं में गिने जाने लगे और उनकी अपनी फौज हो गई. इसके बाद इस समूह के पास मोहि यानी जमीनें आ गईं और ये मोहियाल ब्राह्मण कहलाने लगे.
उस समय मोहियाल ब्राह्मणों का एक समुदाय ईराक में रहता था. अभी भी कुछ मोहियाल ब्राह्मण ईराक के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं. जहां वे रहते थे, उस इलाके को दार-अल-हिंदिया कहा जाता था यानी वह जगह, जहां भारतीय रहते हों. ईराक में अभी भी एक इलाके को अल-हिंदिया डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है.
इस वंश में एक प्रमुख व्यक्ति राजा राहब सिंघ दत्त का जिक्र मिलता है, जो मोहियाल फौज् के कमांडर थे और उन्हें राजा राहब दत्त भी कहा जाता है. वे पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के समकालानी थे और निसंतान थे. एक दिन वे हजरत अली की बड़ाई सुनकर उनके पास गए. उन्होंने हजरत अली को अपनी व्यथा बताई और उनका आशीर्वाद मांगा.
हजरत अली ने उनके लिए अल्लाह से दुआ की. इसके बाद राहब दत्त को सात पुत्र प्राप्त हुए थे. बाद में हुसैन इब्न अली (इमाम हुसैन) के 72 अनुचरों के साथ, राहत दत्त के ये सात पुत्र भी इतिहास के सर्वाधिक क्रूरतम करबला-युद्ध में शहीद हो गए थे.
मोहियाल समुदाय में छिब्बर या छिब्बड़, बाली, भीमवाल, दत्त या दत्ता, लाउ, मोहन और वैद नाम के सात उप गौत्र हैं. इस समुदाय ने हिंदू परंपराओं के पालन के साथ हजरत अली और उनके बेटे हजरत हुसैन से मोहब्बत के कारण उनकी परंपराओं को भी अपनाया. कुछ दत्त परिवारों में लड़कों के मुंडन के समय हजरत इमाम हुसैन का नाम लिया जाता है. उनकी शादियों में हजरत इमाम हुसैन के नाम पर हलुवा भी बनाया और बांटा जाता है.
विभिन्न कारणों से मोहियाल ब्राह्मणों ने अरब, ईरान और पाकिस्तान से पलायन किया. सबसे बड़ा पलायान हिंदुस्तान-पाकिस्तान बंटवारे के बाद हुआ. बंटवारे के पहले हुसैनी ब्राह्मणों की बड़ी आबादी लाहौर में रहती थी. बंटवारे के बाद अधिकांष मोहियाल परिवार भारत आकर बस गए. और अब वे भारत के पुणे, पुष्कर, लखनऊ, दिल्ली, चंडीगढ़, पंजाब और जम्मू क्षेत्र में बसे हुए हैं. महाराष्ट्र और राजस्थान के अलावा पाकिस्तान के सिंध, चकवाल और लाहौर और अफगानिस्तान के काबुल में भी इनके कुछ परिवार हैं.
हालांकि कर्बला की जंग में कुछ कारणों से हजरत हुसैन ने इन ब्राह्मणों को साथ ले जाने से इनकार कर दिया था. मगर कुफा के हमले में जब यजीद की फौज के साथ जंग में हजरत हुसैन शहीद हो गए, तो हजरत हुसैन के सिर की सलामत वापसी के लिए एक और जंग हुई, जिसमें अमीर मुख्तार की सरपरस्ती में राहब दत्त ने जंग लड़ी.
दरअसल, यजीद की सेना हजरत हुसैन का सिर कूफा शहर ले जाना चाहती थी. राहब दत्त ने सिर को अपने कब्जे में ले लिया. यजीद के सैनिक किसी भी कीमत पर सिर अपने कब्जे में लेना चाहते थे, तो इस पर जंग हुई. राहब दत्त ने हजरत इमाम हुसैन के कातिलों से जंग करते हुए अपने सभी सात पुत्रों को कुर्बान कर दिया और हजरत हुसैन का सिर वापस लाए.
हिस्ट्री ऑफ मुहियाल्स नामक किताब के कर्बला के युद्ध के समय 1400 ब्राह्मण उस समय बगदाद में रहते थे. इस युद्ध में इन लोगों ने यजीद के खिलाफ हजरत इमाम हुसैन का साथ दिया था. 1911 में टीपी रसेल स्ट्रेसी ने कर्बला की जंग के बारे में लिखा है, ‘‘जब ये राजकुमार गिर गए, तो राहिब नामक दत्त कबीले के एक बहादुर योद्धा ने दृढ़तापूर्वक, लेकिन बचे लोगों की रक्षा की.’’ एक किवदंती यह भी है कि अरब से लौटने पर राहिब दत्त अपने साथ पैगंबर के बाल लाए थे, जो कश्मीर में हजरतबल दरगाह में रखे हुए हैं.
इन मोहियाल ब्राह्मणों ने कर्बला की लड़ाई में हजरत इमाम हुसैन की तरफ से जंग लड़ी थी. इसीलिए मुस्लिम समुदाय के लोग आदर व स्नेह से इन्हें हुसैनी ब्राह्मण के नए नाम से पुकारने लगे. मोहियाल बा्रह्मण हिंदू और इस्लामी परंपराओं के सेतु हैं.
लोकगीतों के अनुसार,
‘‘लरयो दत्त, दाल खेत जी तिन लोक शाका परह्यो चरह्यो, दत्त दाल गह जी गढ़ कुफा जा लुट्यो.’’
(दत्त योद्धा अकेले ही मैदान में बहादुरी से लड़े और कूफा के किले को लूट लिया.)
‘‘बाजे भीर को चोट फतेह मैदान जो पै बदला लिया, हुसैन, धन धन करे लुकाई.’’
(जब उन्होंने मैदान जीत लिया, तो ढोल पीटा गया, हुसैन का बदला ले लिया और लोगों ने शाबाश-शाबाश का जयघोष किया.)
‘‘जो हुसैन की जद्द है दत्त नाम सब धियायो, अरब शहर के बीच में रहिब तख्त बथायो.’’
(हुसैन की संतानों! अपने पिता के मित्र राहिब को मत भूलिए, जो आपके पिता के निधन से पहले अरब के शहर में सिंहासन पर बैठा था. इसलिए सुबह और रात में अल्लाह से अपनी प्रार्थनाओं में दत्त का नाम लें.)
हुसैनी ब्राह्मण बड़ी श्रद्धा से हर साल मोहर्रम में शिरकत करते हैं और श्रद्धा के साथ ताजियादारी, अजादारी और नोहाख्वानी में भाग लेते हैं. हुसैनी ब्राह्मण अब भी करबला जंग में हजरत इमाम हुसैन, उनके 72 सहयोगियों और अपने मोहियाल शहीदों की शहादत के दोहे पढ़ते हैं, जिन्हें मर्सिया और नौहा कहा जाता है और इस पूरे क्रम को नौहाख्वानी कहते हैं. हुसैनी ब्राह्मण अकीदे के साथ अजाखाने में ‘सलाम’ करते हैं. मान्यता है यह ‘सलाम’ करबला के शहीदों तक पहुंचता है. परंपरा के कारण हुसैनी ब्राह्मण नौहाख्वानी से प्रवीण होते हैं. बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में भूमिहार ब्राह्मणों का एक संप्रदाय भी हुसैनी ब्राह्मणों का वंश होने का दावा करता है और हर साल मुहर्रम में भाग लेता है.
मोहियाल ब्राह्मण या हुसैनी ब्राह्रमण जमात के प्रमुख हस्ताक्षरों में प्रख्यात फिल्म अभिनेता सुनील दत्त, अभिने़त्री योगिता बाली, शास्त्रीय संगीत गायिका सुनीता झिंगरान, उर्दू लेखक कश्मीरी लाल जाकिर, साबिर दत्त और नंद किशोर विक्रम गिने जाते हैं.
ठुमरी, ख्याल, दादरा और गजल के प्रसिद्ध गायिका सुनीता झिंगरान कहना है कि भगवान ने इंसानों को पहले बनाया, लेकिन हमने खुद को धर्मों में बांट लिया. हिंदू और मुसलमान दोनों के शरीर का खून लाल है. हमें समझना चाहिए कि मानवता सभी धर्मों में सबसे महान है और सभी के लिए प्यार और सम्मान को बढ़ावा देने का यह तरीका है. उन्होंने भारत में रहने के लिए सांप्रदायिक सद्भाव के अर्थ को समझने की आवश्यकता पर बल दिया.
प्रतिष्ठित इतिहासकार मोहम्मद मुजीब लिखते हैं, ‘‘वे (हुसैनी ब्राह्मण) वास्तव में इस्लाम में परिवर्तित नहीं हुए थे, लेकिन उन्होंने ऐसी इस्लामी मान्यताओं और प्रथाओं को अपनाया था, जिन्हें हिंदू आस्था के विपरीत नहीं माना जाता था.’’