जितेंद्र पुष्प / गया, बिहार
मोक्ष की नगरी गयाधाम स्थित श्री विष्णुपद मंदिर में गैर हिन्दुओं का प्रवेश भले ही वर्जित है, परंतु गैर हिंदुओं द्वारा उत्पादित पूजन सामग्रियां - श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण को आये पिंडदानियों के लिए पूर्वजों के मोक्ष का माध्यम बनी हुई हैं.
श्री विष्णुपद मंदिर से महज दो किलोमीटर की दूरी पर बस हुआ है छठु विगहा. श्री विष्णुपद मंदिर के बगल में स्थित लखनपुरा से छठु विगहा तक करीब 15 से 20 एकड़ से अधिक भूमि में फूलों की खेती वर्षों से हो रही है. गया पॉलिटेक्निक के उत्तर से सटे छठु विगहा निवासी 62 वर्षीय मोहम्मद मोइनुद्दीन के वंशज तीन पुस्तों से करीब सात एकड़ जमीन में फूलों की खेती करते आ रहे हैं.
मोहम्मद मोइनुद्दीन के खेतों में बेली, गुलाब, गेंदा, गुढहल, कुंद सहित अन्य कई किस्म और प्रजाति के फूल और तुलसी के पौधों की खेती होती है. मोहम्मद मोईनुद्दीन बताते हैं कि मेरे खेतों में उपजे फूल और तुलसी श्री विष्णुपद मंदिर, मंगलागौरी सहित अन्य मंदिरों में चढ़ता है. मंगलागौरी मंदिर में मां मंगला का श्रृंगार मेरे खेतों के फूलों से ही वर्षों से होते आ रहा है. इस मामले को लेकर किसी तरह का मतभेद और मनभेद आज तक नहीं हुआ.
मोहम्मद मोइनुद्दीन कहते हैं कि गैर-हिंदुओं द्वारा उत्पादित पूजन सामग्री और निर्मित वस्तुओं को चढ़ाने से श्री विष्णु भगवान अपवित्र नहीं होते, लेकिन मानते हैं कि गैर-हिन्दू के केवल प्रवेश से वे अपवित्र हो जाते हैं.
वे बताते हैं मेरे दादा जी सजलु मियां ने मंगलागौरी के पुजारी तारा गुरु जी की प्रेरणा से अपनी सात एकड़ जमीन में फूल की खेती करना शुरू किया था. पहले इस जमीन में आम, अमरूद, बैर, निम्बू, पपीते की खेती होती थी. फूल की खेती की शुरूआत मेरे दादा जी ने ओढहुल से की थी. चुकी ओढहुल के फूल से ही मां मंगलागौरी का श्रृंगार होता है. तब से आज तक मेरे खेत के फूल से हीं मां मंगलागौरी का श्रृंगार होता आ रहा है.
उन्होंने बताया कि दादाजी ने फूल की खेती की शुरूआत देश की आजादी से पहले 1942 में किये थे. उनके बाद मेरे पिताजी अलीमुद्दीन ने दादाजी की खेती करने लगे. पितृपक्ष सहित अन्य मौके पर फुलों की बढ़ती मांग को लेकर 1975 में फूल जी खेती का विस्तार किया गया.
ओढहुल के साथ गेंदा, गुलाब, बेली, चमेली, कुंद और भगवान विष्णु पर चढ़ने वाला तुलसी की खेती शुरू की. उन्होंने बताया कि फूलों की खेती नगदी और लाभदायक फसल है. यूं तो मोक्षधाम गया में सालोभर फूल की मांग रहती है, परंतु पितृपक्ष मेला के अवसर पर इसकी मांग बढ़ जाती है.
पुर्वजों की मृतात्मा को तृप्त करने के लिए पिंड सामग्री के साथ फूल और तुलसी महत्वपूर्ण पूजन सामग्री माना जाता है. वे बताते हैं पिताजी के इंतकाल के बाद अपने पुरखों के इस विरासत को मैं और मेरे भाई लोग संभाल रहे हैं. मेरी उम्र भी अब 62 साल से अधिक होने को है. जिसके कारण इस विरासत को संभालने की जवाबदेही मेरे बेटे रहीमुद्दीन पर है. वे बताते हैं प्रत्येक दिन माली आकर खेतों में लगे फूलों को तोड़कर इसे बेचते हैं, जिससे दोनों को आमदनी हो जाती है.
उल्लेखनीय है की इन दिनों पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और संस्कृतियों का महासंगम गयाधाम में पिंडदानियों के आस्था का मेला लगा हुआ है. एक पखवाड़े तक चलने वाले इस मेले के चौथे दिन तक करीब चार लाख पिंडदानियों को गयाधाम में आने की बात बतलाई जा रही है. ये पिंडदानी गयाधाम के (पांच कोस पंच कोसे गया तीर्थे) में अलग-अलग स्थानों स्थापित 45 पिडवेडियों पर अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म काण्ड कर रहे हैं.
देश के विभिन्न क्षेत्रों के श्रद्धालु अपने पितरों के मोक्ष प्राप्ति के निमित पवित्र फल्गु नदी में स्नान, तर्पण, आंचमन, पिंडदान और श्राद्ध कर्म काण्ड में तल्लीन हैं. झुंड के झुंड पिंडदानी अंदर गया की संकरी गलियों से गुजरते हुए देवघाट पर आकर अपने पूर्वजों के प्रति समर्पण के भाव से कर्मकांड में लीन देखे जा रहे हैं. एक पखवाड़े तक गयाधाम में चलने वाला पितृपक्ष मेला आश्विन मास के कृष्ण प्रतिपदा की तिथि से शुरू होकर पितृ अमावस्या को संपन्न हो जायेगा.
17 सितंबर से 2 अक्तूबर तक मोक्ष की नगरी के रूप में ख्याति प्राप्त विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला में एक दिन, तीन दिन, सात दिन, नौ दिन, ग्यारह दिन, तेरह दिन, पंद्रह दिन और सत्रह दिन पिंडदान करने की मान्यता है. पिंडदानी अपने समर्थ और इच्छा के अनुसार पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध व अन्य कर्मकांड करते हैं.
पुनपुन के बाद दूसरे दिन पवित्र फल्गु नदी में तर्पण और पिंडदान किया जाता है. गया में आयोजित पितृपक्ष मेला को लेकर गया की संकरी गलियां गुलजार हो गई हैं.