ओनिका माहेश्वरी / नई दिल्ली
तुम्बकनार और मटका दो ऐसे प्राचीन कश्मीरी वाद्य यंत्र हैं जो कश्मीरी लोक संगीत में महत्वपूर्ण हैं. कश्मीरी लोक संगीत की आत्मा में इनकी ताल बसी है. कश्मीर के मोहोमद सादिक शाह और वसिम अकरम कश्मीरी लोक संगीत की आत्मा को जिन्दा रखते हुए रंगारंग कार्यक्रमों में अपनी उंगलियों का जादू बिखेरते हुए तुम्बकनार और मटके पर ऐसी लाजवाब ताल दते है कि कश्मीरी संगीत की रूहानियत लोगों के दिल में घर कर जाती है.
मोहोमद सादिक शाह और वसिम अकरम इन दोनों भाईयों की जोड़ी से बात करने पर पता चला कि ये कश्मीरी वाद्य यंत्र बजाने की कला उन्हें उनके पिता से विरासत में मिली है जो आज उनकी रोजी रोटी का जरिया है.
कश्मीरी संगीत पर विस्तार से बताते हुए उन्होनें कहा कि इसमें कई ताल होती हैं जैसे कि पहली ताल गुणाचाल, दुसरी केरवा, तीसरी दीपचेदी, चौथी रूपक, पांचवीं दादरा और ऐसी कई क्लासिकल ताल वो अपने तुम्बकनार और मटके पर देते हैं.
मोहोमद सादिक शाह और वसिम अकरम के इलाके में एक फोक इंस्टीटूट भी है जिसका नाम है "द कश्मीर कल्चरल ग्रुप" यहां पर वे अपने शाहगिर्दों को सारंगी, मटका और अन्य वाद्य यंत्र बजाना सीखाते हैं. ऐसा ही एक और जीजी प्रोडक्शन भी है जहां ये वाद्य यंत्र सीखाते हैं.
उन्होनें बताया कि कश्मीर के बच्चें इस कला को सीखने के लिए उनसे न सिर्फ प्रेरणा ले रहे हैं बल्कि दुनिया में उनका नाम रोशन कर रहे हैं. उनका एक कला प्रेमी उमर तांग मार्ग पर परफॉर्म कर चूका है. मोहोमद सादिक शाह और वसिम अकरम को स्कूल फंक्शन्स में भी अपने इंस्ट्रूमेंट्स के साथ आमंत्रित किया जाता है.
मोहोमद सादिक शाह तुम्बकनार बजाते हैं जोकि 26 वर्ष के हैं. उन्होनें बताया कि तुम्बकनार पहले मिट्टी का बनता था जब उनके पिताजी इसे बजाते थें लेकिन अब ये फाइबर का है इसे कहीं ले जाने में भी आसानी है और इसपर काफी बेहतर ताल दी जाती है. उन्होनें बताया कि उनका बच्चा अभी स्कूल में पढ़ रहा है और साथ वो भी उन्हें देखकर घर में बर्तन पर अपना हाथ आजमाता है उन्हें ये देखकर खुशी होती है कि उनकी नस्ल भी कश्मीरी संगीत से जुड़ रही है बचपन से ही उसे कश्मीर के लोक संगीत के बारे में वो बता, सीखा रहें हैं. फिल्म शिकारा में इन्होनें डांस भी किया था. फिल्म हैदर, तान और फ़िल्मी गाने बिस्मिल-बिस्मिल गुल से मत मिल में भी इन्होनें परफॉर्म किया है.
वसिम अकरम मटका बजाते हैं जोकि 24 वर्ष के हैं. उन्होनें बताया कि वो मोहोमद सादिक शाह के छोटे भाई हैं. मटका बजाते हुए उन्होनें जिक्र किया कि मटका पहले मिट्टी के होने के कारण गरम होना जरूरी थे तभी ताल में वो बात आती थी लेकिन अब ये और थोड़ा परिवर्तीत हो गया है जो की बेहतर ताल देता है.
मोहोमद सादिक शाह और वसिम अकरम कश्मीरी लोक संगीत में तुम्बकनार और मटके पर ताल देते हुए काफी अवार्ड्स प्राप्त कर चुके हैं. दिल्ली में रुस्तम सहपुरी के यहां वे संगीत कार्यक्रमों में कश्मीर का लोक संगीत अपनी ताल पर प्रस्तुत करते हैं.