झारखंड में मधुपुर के पास रोहिणी से शुरू हुई थी 1857 की क्रांति, अमानत अली, सलामत अली और शेख हारो ने की बगावत

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 07-08-2022
रोहिणी का शहीद स्मारक
रोहिणी का शहीद स्मारक

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

जसीडीह से मधुपुर की तरफ जाने वाली रेलवे लाइन पर रेलवे हॉल्ट रोहिणी जंगल के बीच बसा एक छोटा-सा ऊंघता हुआ गांव है. बगल में बहती अजय नदी का पानी बरसात में लाल हो जाता है. सावन में इसके बगल के शहर देवघर में भगवान शिव के श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है लोग लाखों की संख्या में आते हैं पर उनमें से अधिकतक लोगों को नहीं पता कि अजय नदी का यह लाल पानी असल में उन शहीदों के बलिदान की रक्तिम याद है, जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ हथियार उठाए थे.

आज देश आजादी के 75 साल पूरे करके अमृत महोत्सव मना रहा है. पूरे देश भर में इस बात का उत्साह है और बेशक ये मौका अपने शहीदों को याद करके उनके प्रति कृतज्ञता जताने का भी है. देश के हर हिस्से में क्रांतिकारियों ने अपने तरीके से अंग्रेजों का विरोध किया था.

1857 की क्रांति को देश की आजादी का पहला संग्राम कहा जाता है और झारखंड राज्य में इसकी शुरुआत हुई थी इसी रोहिणी गांव से.

सन सत्तावन का विद्रोह देश से फिरंगियों को भगाने की सुनिश्चित योजना थी, जो बदकिस्मती से वक्त से पहले फूट गई. उस समय, यह इलाका पूरा जंगलों से भरा था और जब देश ने आजादी की पहली अंगड़ाई ली तो इसी इलाके में सिदो-कान्हो के मशहूर विद्रोह की ज्वाला खामोश भी नहीं हुई थी.

12 जून, 1857 को रोहिणी से फिर चिनगारी उठी और वह झारखंड में सन सत्तावन के विद्रोह की पहली लहर थी. उस गांव में मेजर मैकडॉनल्ड के कमान में ईस्ट इंडिया कंपनी की थल सेना की 32वीं रेजिमेंट तैनात थी.

1857 की पहली स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी देवघर के रोहिणी ग्राम स्थित देशी घुड़सवार सैनिक छावनी तक भी आ पहुंची. इसमें शामिल देशी सैनिक अमानत अली, सलामत अली और शेख हारो ने अग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करके 12 जून को एक अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट नॉर्मन लेस्ली की हत्या कर दी और दूसरे अधिकारी को घायल कर दिया.  

इन तीन मुस्लिम फौजियों अमानत अली, सलामत अली और शेख हारून की बगावत से पूरे इलाके में विद्रोह फैल गया. इस विद्रोह को अंग्रेजो ने भागलपुर से काफी संख्या में घुड़सवार फौज मंगा कर जवाब दिया.

लेकिन पूरी रेजिमेंट वहां मौजूद थी तो दो दिनों में ही अंग्रेजों ने विद्रोही सैनिकों पर काबू पा लिया और इन तीनों बागियों को 16 जून, 1857 को उसी गांव में आम के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी गई. इसके साथ ही इस गांव में अंग्रेजों ने बेतरह जुल्म ढाया और मासूम बच्चों तक को अपनी संगीनों से भोंक-भोंककर मार डाला.

लेकिन यहां से शुरू हुई क्रांति की ज्वाला पूरे बिहार में फैल गई. अंग्रेजों को इस रेजिमेंट को यहां रोहिणी से हटाना पड़ा. और वे इसे हटाकर भागलपुर ले गए.

इधर छोटानागपुर में उस महासंग्राम में बलिदानियों की कुर्बानी का यह आलम था कि दर्जनों विद्रोही नायकों को फांसी पर लटकाने के बावजूद अंग्रेज शासकों के पांव इस क्षेत्र से उखड़ गये. करीब एक साल तक छोटानागपुर क्षेत्र में अंग्रेजों का शासन ठप रहा.

रोहिणी में तीनों शहीदों की याद में शहर के बीच एक स्मारक है, जो इनके बलिदान की याद दिलाता है. लेकिन आज इन तीनों वीर शहीदों की स्मारक उपेक्षित है. आजादी के अमृत महोत्सव में यहां बड़ा आयोजन किया जाना चाहिए.