अवध नवाब कान्हा का रूप धर छेड़ते थे आपसी भाईचारे की तान

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 29-08-2021
कृष्ण बने वाजिद अली शाह की भूमिका में अभिनेता अमजद खान (फिल्म शतरंज के खिलाड़ी)
कृष्ण बने वाजिद अली शाह की भूमिका में अभिनेता अमजद खान (फिल्म शतरंज के खिलाड़ी)

 

आवाज विशेष । जन्माष्टमी

मुकुंद मिश्र/लखनऊ

मेल-ओ-मिल्लत और अवध का पुराना नाता रहा है. आपसी भाईचारे की खुशबू यहां की मिट्टी में इस कदर रची-बसी है कि इसकी महक दुनिया भर में इसे अलग पहचान देती रही. भले ही इस साझी संस्कृति के बीच मजहबी दीवारें खड़ी की जा रही हों, लेकिन सदियों पहले नवाबों और राजाओं ने इस साझी संस्कृति की नींव रखी, उस पर आज भी यहां के लोगों को नाज है.

फख्र से सिर ऊंचा कर देने वाली इस संस्कृति को चटक रंगे वालों की कड़ी में अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह का जिक्र न हो तो यह बेमानी है.

एक बेहतरीन कलाकार का दिल रखने वाले इस नवाब ने तमाम नज्में लिखीं. कलाओं की दुनिया हमेशा अवध के इस नवाब की कर्जदार रहेगी. गद्य, दास्तानगोई, शाइरी, मौसिकी,रक़स, ड्रामा और भवन निर्माण आदि में उनका नायाब दखल रहा. एक सच्चे कलाकार की फितरत वाले वाजिद अली शाह के मन में कभी किसी की आस्था, मजहब से दुराव नहीं रहा. उन्होंने गणेश, कृष्ण और राधा जैसे हिन्दू आराध्यों पर खूब नज़्में कहीं. कृष्ण से तो उनका खास लगाव था.

नवाब वाजिद अली शाह ने राधा-कृष्ण की प्रेम कथा पर आधारित राधा-कन्हैया का किस्सा नाटक लिखा. बात करें इसकी ऐतिहासिकता की तो यह लखनऊ का पहला नाटक था. इसे लखनऊ में रहस की तर्ज पर खेला गया. वाजिद अली शाह अक्सर रहस में कृष्ण की भूमिका खुद अदा किया करते थे. कान्हा का रूप धर वे मुरली थाम आपसी भाईचारे की रंगत बिखेरते रहे.

लखनऊ के इतिहास के जानकारों का कहना है कि वाजिद अली शाह कृष्ण के जीवन से बेहद प्रभावित थे. वाजिद के कई नामों में से एक ‘कन्हैया’ भी था.

संगीत और नृत्य में उनकी गहरी दिलचस्पी थी. वाजिद अली शाह की लिखी एक ठुमरी में भगवान श्री कृष्ण जिक्र है- मोरे कान्हा जो आए पलट के, अब के होली मैं खेलूंगी डट के...

वाजिद अली शाह पर भले ही इतिहासकारों ने एक अक्षम और अयोग्य शासक का ठप्पा लगाने की कोशिश की, लेकिन ये शायद इनके चरित्र की खूबी में हिंसा से नफरत और कला-संगीत से प्रेम समाया हुआ था. एक वाकया उनके दौर का खूब चर्चित है. चूंकि लखनऊ एक शियाबहुल क्षेत्र था तो कहा जाता है कि एक बार होली और मुहर्रम एक साथ पड़े. मुहर्रम पर लखनऊ गम में डूबा था तो उस वक़्त राज्य के हिन्दुओं ने भी होली नहीं खेली. यह बात जब वाजिद अली शाह को मालूम हुई तो उन्होंने पूरे राज्य के लिए होली खेलने का फरमान जारी किया. वाजिद अली शाह ने राज्य के मुसलमानों से कहा कि वो भी हिन्दुओं के साथ होली खेलें.

देश में कत्थक के उन्नायक नवाब थे वाजिद अली शाह. लखनऊ के कत्थक घराने की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था. कत्थक गुरु ठाकुर प्रसाद-दुर्गा प्रसाद उनके दरबारी नर्तक और नृत्यगुरु थे. नृत्य और संगीत बढ़ावा देने के लिए उन्होने कैसरबाग़ में परीख़ाना तैयार कराया और यह कला का नायाब केंद्र बन गया.

कलकत्ता में अपने प्रवास के दौरान वाजिद अली ने मटियाबुर्ज में दो इमारतें राधा मंजि़ल और शारदा मंजि़ल बनवाई. यहां कृष्ण प्रेम पर आधारित नाटक खेले जाते थे. वाजिद अली शाह कथक में इतने रम जाते थे कि खुद भी कई बार कृष्ण का रूप धरकर किसी तवायफ के साथ नृत्य करने लगते थे. कभी वे महिलाओं के कपड़े पहनकर राधा बन जाते थे. 1887 में मटियाबुर्ज में उऩका इंतकाल हुआ. अवध के नवाब तेरह दिन होली का उत्सव मनाते थे.

वाजिद अली शाह की शख्सियत भाईचारे और आज़ादी की अलामत है. वाजिद अली शाह का जन्म 30 जुलाई 1822 को लखनऊ में हुआ था. 1847 में वह बतौर नवाब अवध की गद्दी पर बैठे और 1856 में अंग्रेज़ों ने उन्हें अयोग्य करार दे हटा दिया. अंग्रेजों की दलील यह भी दी थी कि अवध की जनता उनसे नाराज़ है. हालांकि ये आरोप बेबुनियाद और झूठे थे. दरअसल अवध को हड़पने की अंग्रेजों की यह चाल थी. वाजिद अली शाह को अंग्रेज़ों ने अवध से हटाकर कलकत्ता निर्वासित कर दिया था.

महिलाएं वाजिद अली शाह की विरह वेदना के गीत गाती थीं और कहती थीं-

हाय तुम्हरे बिना बरखा न सोहाय,

अरे मोरे कलकत्ते के जवय्या,

अल्ला तुम्हे लाए हाय अल्ला

तुम्हे लाए हजऱत जाते हैं लंदन,

हम पर कृपा करो रघुनंदन

वाजिद अली मेरा प्यारा,

आप लंदन को सिधारा,

गलियों गलियों खाक उड़त है,

सड़कों पर अंधियारा

श्रीपति महाराज तुम बिपति निवारौ,

कब अइहैं हजऱत देस हो

गलियन गलियन रैयत रोवै,

हटियन बनिया बजाज रे,

महल में बैठी बेगम रोवैं,

डेहरी पर रोवै ख़वास रे.

ये गीत बताता है कि वाजिद अली शाह अपने लोगों के बीच कितने लोकप्रिय थे.