प्राचीन शहर अलेप्पो को भूकंप से ज्यादा बर्बादी तो गृह युद्ध के कारण झेलनी पड़ी है

Story by  रावी द्विवेदी | Published by  onikamaheshwari | Date 17-02-2023
सीरिया-तुर्की में तबाही—4
सीरिया-तुर्की में तबाही—4

 

रावी द्विवेदी

प्राचीन शहर अलेप्पो का सिटडल सीरिया के लिए कभी वही अहमियत रखता था जो तुर्की के लिए गाजियांटेप कैसल की है. ये बात अलग है कि तुर्की ने कैसल को अपने स्वाभिमान का प्रतीक बनाकर उसके संरक्षण पर पूरा ध्यान दिया. वहीं, सिटडल हालिया सालों में एक लंबे गृह युद्ध के कारण हर तरफ तबाही का मंजर देखने को ही बाध्य रहा. अलेप्पो एक ऐसा प्राचीन शहर है, जो उस समय से ही आबाद रहा है जब पृथ्वी पर मानव बस्तियां बसनी शुरू हुई थीं.
 
प्राचीन सभ्याओं से लेकर ऑटोमन शासनकाल तक इसने उजड़ने-बसने के कई दौर देखे. और, हालिया भूकंप ने एक बार फिर इसे दहलाकर रख दिया. यूनेस्को के मुताबिक, अलेप्पो सिटडल में किले की दीवार और वॉच टॉवर के अलावा अल-गाजी मस्जिद की मीनारें भी ढह गई हैं.
 
अलेप्पो शुरुआती दौर से ही कारोबार का एक बड़ा केंद्र रहा है, आलीशान बाजारें हुआ करती थीं, हर तरफ समृद्धता झलकती थी. इसी वजह से कई बार बाहर से आए आक्रांताओं ने हमले बोले, विभिन्न साम्राज्यों ने इस शहर को जीतना अपनी शान समझा. हर दौर की कुछ निशानियां समेटे पुराना अलेप्पो शहर पुरातात्विक लिहाज से कितनी अहमियत रखता है, यह इसी से जाहिर है कि यूनेस्को ने पूरे शहर को ही अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल कर रखा है. हालिया भूकंप ने अलेप्पो की तमाम ऐतिहासिक विरासतों को क्षति पहुंचाई है. लेकिन सही मायने में देखें तो इस शहर को उसके अपने ही बाशिंदों और अपनी ही सरकार के बीच गृह युद्ध ने जो जख्म दिए हैं, उसके आगे ये विभीषका तो शायद कम ही दर्दनाक है.
 
 
एशिया-यूरोप के बीच कारोबार का रास्ता
अलेप्पो जिसे अरबी में हलब और तुर्की भाषा में हालेप भी कहा जाता है, उत्तरी सीरिया का एक प्रमुख शहर है. लेकिन इतिहास कितना पुराना है, इसका कोई ठोस अंदाजा लगाना मुश्किल है. गृह युद्ध से पहले अच्छी-खासी आबादी के कारण पुरातात्विक लिहाज से खोज करना आसान नहीं रहा. 20वीं सदी में पुरातत्व विज्ञानियों को अलेप्पो के मध्यकालीन सिटडल में एक मंदिर के अवशेष मिले, जो तीसरी सहस्राब्दि ईसा पूर्व के माने जाते हैं.
 
थोड़ा आगे के इतिहास की बात करें तो 18वीं शताब्दी ईसा पूर्व हलब यमकद साम्राज्य की राजधानी बना और 17वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 14वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक हित्तियों के नियंत्रण में रहा. तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत में यह शहर सेल्यूसिड के हाथों में आने के बाद मैसेडोनियन उपनिवेश बना और भूमध्यसागरीय क्षेत्र और सुदूर पूर्व के बीच एक प्रमुख व्यावसायिक प्रवेश द्वार बन गया. पहली शताब्दी ईसा पूर्व शहर को रोमन प्रांत का हिस्सा बना लिया गया. इसी दौरान यहूदी बस्तियां बसीं और ईसाई समुदाय भी बसा. 540 ईसवी में सासानी राजा ने इसे लूटा और आग के हवाले कर दिया. 
 
637 ईसवी में यह शहर अरबों के पास आया तो इसे फिर पुराना नाम हलब दिया गया. 10वीं शताब्दी में हमादनिद वंश के शासन के दौरान इस शहर को आंशिक तौर पर खुली हवा में सांस लेने का मौका मिला. उसी समय यहां कला-संस्कृति पनपी. लेकिन इसे बीजांटाइन सेना के हमले और स्थानीय सूबेदारों के बीच गृह युद्ध की स्थिति का सामना करना पड़ा.
 
जंग के लंबे दौर के बाद शहर का नियंत्रण अयूबिद वंश के हाथ आया जिसकी स्थापना सलाहदीन ने की थी. यह समृद्धि की राह पर बढ़ने का एक और दौर था. यूरोप और एशिया के बीच कारोबार बढ़ा. सिटडल का फिर निर्माण हुआ, बाजारों की चमक-दमक लौटी और सुन्नी इस्लाम को बहाल करने के उद्देश्य के साथ तमाम मदरसे बने. 1260 में अयूबिद शासन के खात्मे के बाद शहरवासियों ने मंगोलों की मारकाट झेली और 1400 में एक बार फिर तैमूर लंग का आतंक देखा. 
 
ऑटोमन शासनकाल में समृद्धता चरम पर रही
1516 में ऑटोमन साम्राज्य के तहत आने पर इसे उत्तरी सीरिया और दक्षिणी अनातोलिया का केंद्र बनाया गया. फिर से वाणिज्यिक गतिविधियां तेज हुई. बाजार विकसित हुए और व्यापार के लिए यहां से गुजरने वालों की सुविधाओं को ध्यान में रख सरायें भी बनाई गईं. ऑटोमन साम्राज्य में ही इसने सबसे ज्यादा समृद्धि देखी. लेकिन 18वीं सदी आते-आते प्रमुख कारोबारी और व्यापारिक संगठनों के बीच संघर्ष होने लगे और ये टकराव अलेप्पो के ईसाई समुदाय के खिलाफ हिंसा और लूट में बदल गया, जो पिछले कुछ समय में यहां अच्छा-खासा वर्चस्व स्थापित कर चुके थे. हालांकि, ऑटोमन शासन का नियंत्रण बना रहा.
 
तमाम उतार-चढ़ावों के बीच अलेप्पो के सिटडल का अपना खास रुतबा बरकरार रहा है. यह सिटडल मध्य पूर्व में सैन्य संरचना का भी एक अद्भुत नमूना है. प्राकृतिक चूना पत्थर से निर्मित सिटडल में समय-समय पर बदलाव भी हुए जो कुछ संरचनाओं में साफ नजर आते हैं. पुराने अलेप्पो शहर का यह सिटडल नए बसे अलेप्पो के लिए भी एक लैंडमार्क है. अलेप्पो अरब पोएट्री, कला-संस्कृति, म्यूजिक, हस्तशिल्प और अपने खाने के लिए भी खासा प्रसिद्ध है.
 
अलेप्पो यूनिवर्सिटी, संगीत संस्थानों और तमाम मदरसों की वजह से इसे बौद्धिक केंद्र भी माना जाता है.
बहरहाल, प्रथम विश्व युद्ध के बाद जब ब्रिटेन और फ्रांस ने सीरिया और तुर्की की सीमाएं तय कराईं तो अलेप्पो सीरिया के नियंत्रण में आ गया. 20वीं सदी में भी इस औद्योगिकी क्षेत्र ने दमिश्क जैसे शहरों को चुनौती देना जारी रखा. गांव से शहरों की तरफ पलायन की वजह से आबादी बढ़ी और ज्यादा घरों की जरूरत महसूस की जाने लगी. इसी दौरान समय के साथ कदमताल की जो कोशिशें की गईं उन्होंने अमीर-गरीब की एक खाई चौड़ी कर दी.
 
शहर की सूरत बदलने की कोशिशों के बीच आलीशान इमारतें आकार लेने लगीं, बाजारों में चहल-पहल बढ़ी लेकिन शहर का पुराना हिस्सा इससे अछूता रहा. 1978 आते-आते इस ऐतिहासिक शहर का करीब 20 फीसदी हिस्सा खूबसूरत घरों, ऊंचे-ऊंचे और शानदार भवनों वाले दफ्तरों में बदल गया. 1980 के दशक में यह शहर कुल आबादी के लिहाज से शीर्ष पर रहा लेकिन पुराने हिस्से में आबादी तेजी से घटने लगी.
 
 
धरोहर शहर को बचाने के लिए अथक प्रयास
यही वो समय था जब प्राचीन शहर के पुरातात्विक महत्व को देखते हुए इसके संरक्षण की जरूरत महसूस की गई. तभी 1940 में पुराने अलेप्पो शहर में जन्मे और आगे पढ़ने के लिए अमेरिका चले गए अदली कुदुस्सी 1975 में अपनी आर्किटेक्ट की डिग्री लेकर स्वदेश लौटे. पुराने शहर की हालत देख उन्होंने ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण की पहल की और शहर का मूल स्वरूप बदलने की कोशिशों को रोका.
 
उन्होंने कुछ स्थानीय आर्किटेक्ट के साथ मिलकर सीरिया के संस्कृति मंत्रालय से धरोहर बचाने की गुहार लगाई और प्राचीन अलेप्पो को नेशनल हिस्टॉरिक मान्यूमेंट घोषित करा लिया. सरकार ने कुदुस्सी के साथ मिलकर शहर के विकास की वैकल्पिक योजना पर काम करना शुरू किया. इसके तहत इमारतों का मूल स्वरूप बदलने के लिए बनाए गए कड़े नियम-कायदे स्थानीय लोगों को खास पसंद नहीं आए.
 
कुदुस्सी जानते थे कि काम सिर्फ पुरातात्विक महत्व की इमारतों के संरक्षण का नहीं है, बल्कि लोगों को सहूलियतें मुहैया कराना भी आवश्यक है. उन्होंने सार्वजनिक सुविधाएं बढ़ाने और साथ ही लोगों को ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराने के प्रयास किए ताकि वे बिना किसी झंझट निर्धारित नियम-कायदों के तहत अपने घर पुनर्निर्मित कर सकें. इसके बेहतर नतीजे भी सामने आए. 1984 में कुदुस्सी ने ही प्राचीन अलेप्पो को यूनेस्को की धरोहर सूची में शामिल कराने की पहल की और उसे 1986 में यह दर्जा हासिल हो गया. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी पहल शुरू हो पाईं. कुदुस्सी ने भले ही अपना सारा जीवन इस प्राचीन शहर के संरक्षण की कोशिशों में लगा दिया लेकिन इसका एक और भयावह दौर से गुजरना बाकी था.
 
 
गृह युद्ध ने सारी कोशिशों पर फेर दिया पानी
सीरिया में 20वीं सदी के मध्य में उभरते राजनीतिक ढांचे के बीच शिया-सुन्नी टकराव आम हो गया था. इसी का नतीजा था कि राष्ट्रपति हफीज अल असद के शासन के खिलाफ बगावत भड़की लेकिन सरकार ने उसे सख्ती से दबा दिया. इस दौरान 1980 में अलेप्पो में बड़ी संख्या में सेना की तैनाती की गई. हालांकि, इस दौरान संघर्ष में भी सैकड़ों जानें गई थी लेकिन सबसे ज्यादा स्थिति बिगड़ी 2011 में जब राष्ट्रपति बसर अल असद के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए.
 
सीरियाई सुरक्षा बलों ने इसे सख्ती से कुचलने की कोशिश की और बेकाबू हालात 2012 गृह युद्ध की स्थिति में तब्दील हो गए. यह गृह युद्ध दिसंबर 2016 तक चला, फिर विपक्षी लड़ाकों ने सीरियाई बलों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. बहरहाल, इस जंग में न जाने कितनी जानें गईं और अरबों डॉलर की संपत्ति नष्ट हो गई. सीरिया में छिड़े इस गृह युद्ध के दौरान सिटडल के साथ-साथ यहां की जकरियाह मस्जिद को भी खासा नुकसान पहुंचा.
 
सीरियाई सरकार के नियंत्रण में आने बाद इनमें मरम्मत का कार्य भी कराया गया. लेकिन लगातार अशांत क्षेत्र बने रहने के कारण इनके संरक्षण की तमाम कोशिशें रंग लाती नहीं दिखीं. सालों चले गृह युद्ध और देशी-विदेशी हमलों को झेलने के बाद आज यह प्राचीन शहर भूकंप से बुरी तरह बर्बाद हो चुका है. स्थिति यह है कि जो इमारतें भूकंप के बाद भी खड़ी नजर आ रही हैं, कब ताश के पत्तों की तरह ढह जाएंगी कुछ कहा नहीं जा सकता. बचाव कर्मियों ने ऐसी इमारतों में रहने वालों से घर खाली करा लिए है. भूकंप ने हजारों की संख्या में लोगों को बेघर कर दिया है, और उन्हें समझ नहीं आ रहा कि जंग और जलजले के बाद आखिर अभी और क्या देखना बाकी है.