टेबल टेनिसः इंडिया की ‘सिंड्रेला गर्ल’ थीं सईदा सुल्ताना

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 20-07-2022
टेबल टेनिसः इंडिया की ‘सिंड्रेला गर्ल’ थीं सईदा सुल्ताना
टेबल टेनिसः इंडिया की ‘सिंड्रेला गर्ल’ थीं सईदा सुल्ताना

 

अभिजीत सेन गुप्ता

भारत की स्वतंत्रता के समय, हैदराबाद की एक किशोरी आश्चर्य थीं, जिनके पास टेबल टेनिस में असाधारण प्रतिभा थी और उन्होंने भारत और यूरोप के विशेषज्ञों को चकित कर दिया था. उसका नाम सईदा सुल्ताना था और बाद में उन्होंने दो अलग-अलग देशों भारत और पाकिस्तान की राष्ट्रीय चौंपियन बनने का अनूठा गौरव हासिल किया. वह 1949 से 1954 तक भारत की राष्ट्रीय चैंपियन रहीं. उसके बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया और वहां भी वह 1956 से 1958 तक राष्ट्रीय चैंपियन बनी रहीं.

उनका जन्म 14 सितंबर 1936 को एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसके सात बच्चे थे. छह लड़कों के बाद वह पहली लड़की थीं. इसलिए उस दिन से ही उन पर विशेष ध्यान दिया जाता था. उसके पिता मोहम्मद अहमद अली ने उन्हें महबूबिया गर्ल्स हाई स्कूल में दाखिला दिलाया और वह पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी होशियार साबित हुईं. लेकिन टेबल टेनिस में उनकी उत्कृष्टता 1947 में शुरू हुई, जब उनके एक बड़े भाई हामिद अली ने एक टेबल टेनिस टेबल खरीदी. अपने भाइयों को खेल खेलते हुए देखने के बाद, उन्होंने खुद भी इसे आजमाने का फैसला किया और यह तुरंत स्पष्ट हो गया कि वह इतनी छोटी होने के बावजूद बाकी सबसे बेहतर थीं. संयोग से अल्ताफ नाम का उनका एक भाई बाद में लड़कों के बीच राष्ट्रीय चैंपियन बना, जबकि दूसरा भाई मुजफ्फर उसका मुख्य कोच था.

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सईद सुल्ताना का बचपन


दो साल के भीतर वह खेल में पारंगत हो गईं और उनके खिलाफ खेलने वाले हर किसी को हरा सकती थीं. एक पारिवारिक मित्र ने उन्हें हैदराबाद राज्य चैंपियनशिप में भाग लेने की सलाह दी. शुरू में उनकी माँ जनता के सामने खेलने के विचार के खिलाफ थीं, लेकिन उनके भाइयों ने अपनी माँ को राजी कर लिया. उन्होंने भाग लिया और चैंपियन बन गई. यही उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट था.

दिसंबर 1949 में हैदराबाद में अखिल भारतीय टेबल टेनिस चैंपियनशिप आयोजित की गई थी और उन्होंने खिताब जीता. हालांकि वह तब भी 13 साल की स्कूली छात्रा थी. छोटी लड़की, अपने बालों को दो पट्टियों में बांधकर, तेज और शानदार टाइमिंग के साथ खेलती थीं, जो कि बेजोड़ थी. उनके वरिष्ठ प्रतिद्वंद्वी, सभी अनुभवी महिलाएं, न तो उनके तीखे हमलों का मुकाबला कर सकीं और न ही उनके मजबूत बचाव को तोड़ सकीं. उस जीत ने उन्हें प्रशंसकों की प्रिय बना दिया और उनकी तस्वीर सभी प्रमुख अखबारों के पन्नों पर छा गई.

1950 में उन्होंने श्रीलंका में एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता जीती और फिर 1951 में वियना (ऑस्ट्रिया) में एक अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुनी गईं. वहां उन्होंने विश्व चैंपियन रोमानिया की एंजेलिका रोजेनु को खेल छोड़ने के लिए मजबूर करके दुनिया को चौंका दिया. यह कुछ ऐसा था, जो शायद ही कभी हुआ हो, क्योंकि छह बार की विश्व चौंपियन रोजियानू को अपराजेय कहा जाता था. सलवार-कमीज पहने भारतीय किशोरी के लिए विश्व चैंपियन के मुकाबले खेल लेना एक अनसुना कारनामा था. हालांकि रोजेनु ने मैच जीत लिया, लेकिन विशेषज्ञों ने सुल्ताना को वर्ष की खोज के रूप में सम्मानित किया.

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सईद सुल्ताना अपनी ट्राफियों के साथ 


अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का एक क्षेत्र दिवस था. कुछ दिनों के लिए हैदराबाद शहर, उनका स्कूल महबूबिया जीएचएस, उनके परिवार के सदस्य और खुद सुल्ताना दुनिया में चर्चा बन गए. आश्चर्यजनक बात यह थी कि वह जो सामान ले जाती थी, उनमें उसकी पसंदीदा गुड़िया होती थी, जिसके साथ वह खेलती थीं और जिसे वह अपना भाग्यशाली साथी मानती थी. मीडिया ने उन्हें ‘इंडिया की सिंड्रेला गर्ल’ का उपनाम दिया.

पुरुष विश्व चैंपियन ग्रेट ब्रिटेन के जॉनी लीच ने कहा कि अगर सुल्ताना जल्द ही दुनिया की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बन जाती हैं, तो उन्हें आश्चर्य नहीं होगा. ऑस्ट्रिया के रिचर्ड बर्गमैन, एकल और युगल में विश्व चैंपियन, ने कहा कि उस समय की चार सर्वश्रेष्ठ महिला खिलाड़ी हंगरी की रोजेनु, गिजेला फार्कस, ऑस्ट्रिया की गर्ट्रूड प्रिट्जी और भारत की सईद सुल्ताना थीं. टेबल टेनिस में एक प्रसिद्ध नाम विक्टर बरना ने कहा, ‘‘मिस सुल्ताना के रूप में, भारत में विश्व चैंपियनशिप की क्षमता वाली एक लड़की है. मैं अपनी दो भारत यात्राओं में उनके खिलाफ कई बार खेल चुका हूं इसलिए मुझे उनकी क्षमता का पता है.’’

जब प्रतिष्ठित कॉर्बिलन कप चैंपियनशिप बॉम्बे (अब मुंबई) में आयोजित की गई थी, तो जापानी टीम ने सभी यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों को जीतकर चौंका दिया था. प्रभावशाली प्रदर्शन करने वाली एकमात्र अन्य एशियाई हैदराबाद की सुल्ताना थीं. अगर उनके साथी उनके कौशल से मेल खाते, तो भारत एक बेहतर प्रदर्शन करता, लेकिन अन्य खिलाड़ी उनके स्तर के अनुरूप प्रदर्षन नहीं कर पाए. 

अगले कॉर्बिलन कप में, हंगरी विजेता था, लेकिन फिर से सुल्ताना एशिया की सबसे उत्कृष्ट खिलाड़ी थीं.

यही वह चरण था, जब भारत सरकार के सामने उन्हें आगे के प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन विभिन्न कारकों के कारण यह कारगर नहीं हुआ.

मामला तब और उलझ गया, जब उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. नव स्वतंत्र भारत और पाकिस्तान की दोनों सरकारों के पास खिलाड़ियों के लिए बहुत कम वित्तीय संसाधन थे. अगर उन्हें दुनिया के शीर्ष क्रम के खिलाड़ियों के खिलाफ प्रशिक्षण और खेलने का अधिक मौका दिया जाता, तो वह निस्संदेह एक दिन विश्व चैंपियन बन जातीं.

जैसे-जैसे चीजें सामने आईं, वह पाकिस्तान में भी राज करती रहीं. खेल से संन्यास लेने से पहले उसने कई ट्राफियां और कई यादगार जीत हासिल की. वर्षों बाद, उनके 69वें जन्मदिन के ठीक एक दिन बाद उनका निधन हो गया.