International artist bhapang player Yusuf Khan spread the colors of folk art in Jaipur
फरहान इसराइली/ जयपुर
राजस्थान का अलवर वैसे ही गीत-संगीत के लिए विख्यात है. इसमें भी अगर अनोखे वाद्य यंत्र भपंग का नाम आता है, तो खुद ब खुद यूसुफ खान मेवाती के परिवार का नाम जुबां पर आ जाता है. शिवभक्त इस परिवार ने डमरू रूपी वाद्ययंत्र भपंग को देश-विदेश में खास पहचान दिलाई है. राजस्थान फोक म्यूजिक के साथ ठेठ मेवाती गीत गाकर युवा वादक और गायक यूसुफ खान और उसके साथी लोक गायकों ने मंगलवार को राजधानी जयपुर वासियों का दिल जीत लिया.
राजस्थान फोरम और श्री सीमेंट के सहयोग से पीपुल्स मीडिया थिएटर के बैनर तले अपेक्स यूनिवर्सिटी में संगत की नवीं कड़ी का आयोजन किया गया. यहां सैकड़ों युवक-युवतियों के बीच यूसुफ खान, मोहम्मद खान, जाकिर, राजेश कुमार, शुबराती और राम अवतार ने एक के बाद एक आधा दर्जन मेवाती गीत प्रस्तुत किए.
गौरतलब है कि युवा गायक यूसुफ खान को पिछले महीने ही केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी का प्रतिष्ठित बिस्मिल्लाह खान अवॉर्ड मिला है. इन कलाकारों के लोक गीत आधुनिक जीवन की विसंगतियां, हास्य और व्यंग्य से लबरेज थे. कार्यक्रम की शुरुआत में इन कलाकारों ने गणेश वंदना सुनाई. इसके बाद मेवात के भूगोल भाषा और इतिहास को दर्शाने वाले मस्त लोक गीत सुनाए. तुम्बे और घोड़े के बाल से बने चिकारा पर इन मेवाती लोग कलाकारों की जुगलबंदी ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया.
कार्यक्रमों के संयोजन करते हुए वरिष्ठ निर्देशक अशोक राही ने कहा कि राजस्थान फोरम की इस मुहिम संगत का उद्देश्य नई पीढ़ी को अपने संस्कृति इतिहास और लोकभावनाओं से रूबरू कराना है.कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि गोविंद माथुर, वरिष्ठ पत्रकार पुरुषोत्तम सैनी, निर्देशक सुप्रिया शर्मा, छायाकार सतेंद्र सिंह सहित अनेक साहित्य और संस्कृति से जुड़े लोग मौजूद थे. कार्यक्रम के अंत में अपेक्स विश्वविद्यालय के डीन देवेंद्र सिंह शेखावत में सभी कलाकारों का धन्यवाद देते हुए स्मृति चिन्ह प्रदान किए.
तीन पीढ़ियों से भपंग वादन का कार्य कर रहा है यह परिवार: अलवर का यह परिवार तीन पीढ़ियों से भपंग वादन का कार्य कर रहा है. यह परिवार अब तक 40 से ज्यादा देशों में भपंग वादन कर चुका है. इस परिवार को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं. अलवर शहर के मूंगस्का निवासी भपंग वादक यूसुफ खान मेवाती छोटी सी उम्र से ही भपंग वादन कर रहे हैं. यह कला उन्हें पिता से विरासत में मिली थी.
अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंच चुकी है भपंग की गूंजः भपंग वादन की कला इनके खून में रची-बसी है. इनके दादा जहूर खां राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भपंग की गूंज को पहुंचा चुके हैं. उनके पिता उमर फारूख मेवाती 44 देशों में भपंग वादन कर चुके हैं. यूसुफ कहते हैं कि उनके पिता कई फिल्मों में भी भपंग बजा चुके हैं. अंतरराष्ट्रीय भपंग वादक यूसुफ पिता से मिली कला को आगे बढ़ा रहे हैं. यूसुफ ने पिता की कला को आगे बढ़ाने के लिए अपनी इंजीनियरिंग की जॉब को छोड़ दिया था. उन्होंने देश के प्रतिष्ठित मंचों पर भपंग वादन की कला को पहुंचाया. युसूफ खान मेवाती को भी कई प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिल चुके हैं. करीब 20 से 22 देशों में भपंग वादन अभी तक वह कर चुके हैं.
भगवान शिव का उपासक है पूरा परिवारः युसूफ खान मेवाती ने सन् 1998 से भपंग सीखना शुरू किया था. वैसे तो बड़े-बड़े देशों में जाकर भपंग वादन कर चुके हैं. इसके बाद भी आज भी युसूफ दिन में 2 से 3 घंटे भपग का अभ्यास करते हैं. यूनुस ने कहा कि उनका पूरा परिवार भगवान शिव का उपासक हैं.
शिवरात्रि पर भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. यूसुफ ने कहा कि भपंग भगवान शिव के डमरू का एक रूप है. मेवात क्षेत्र में उनके दादा ने इस वाद्य यंत्र को सबसे पहले बजाया. इसके लिए उनको देश-विदेश में खास पहचान मिली. भपंग राजस्थान का लोक यंत्र है. वैसे तो राजस्थान के जैसलमेर बाड़मेर सहित कई हिस्सों में लोग भपंग जाते हैं, लेकिन मेवात में केवल यूसुफ है. उसका परिवार ही भपंग वादन करता है.
यूसुफ ने कहा कि उनके परिवार में वो 21वीं पीढ़ी हैं, जो संगीत व गाने बजाने के कार्य में हैं. उनका बेटा व अन्य लोग भी इसी कारोबार से जुड़े हुए हैं. वो अपनी इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर लोक कला में आए और अब वो अपने इस पेशे से खासे खुश हैं.