जम्मू-कश्मीर लोकसभा चुनाव: विपक्षी दलों के घोषणा पत्र में पर्यटन और युवा-खेल को महत्व नहीं

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 09-05-2024
Jammu and Kashmir Lok Sabha elections: Tourism and youth sports do not get importance in the manifesto of opposition parties.
Jammu and Kashmir Lok Sabha elections: Tourism and youth sports do not get importance in the manifesto of opposition parties.

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

कश्मीर में लोकसभा चुनाव लड़ने वाली विपक्षी पार्टियों की नजरों में लगता है युवा-खेल और पर्यटन खास अहमियत नहीं रखते. विपक्षी दलों के घोषणा पत्रों से यह विषय नदारद है.महबूबा मुफ्ती की सरकार से समर्थन वापसी और अनुच्छेद 370 हटने के बाद से भारतीय जनता पार्टी शासित सरकार जम्मू-कश्मीर को नया ‘लुक’ देने के प्रयास में है. इस क्रम में उसकी ओर से युवा-खेल गतिविधियों, पर्यटन और पूंजीनिवेशे को बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.

इकोनाॅक्सि टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में 2.02 करोड़ सैलानी जम्मू-कश्मीर घूमने आए, जिनमंे 50 हजार विदशी थे. इसी तरह जम्मू-कश्मीर पर्यटन विभाग की वेबसाइट की एक रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2024 तक 16,25123 पर्यटक जे एंड के में आ चुके हैं. रही बात पूंजी निवेश की तो सरकार इस पर पूरा ध्यान दे रही है,क्योंकि बिना भारी पूंजी निवेश के कश्मीर का कायाकल्प संभव नहीं है.
 
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पीआईबी के एक अंकड़े के अनुसार, अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से यहां 2417.19 करोड़ रुपये का पूंजी निवेश हुआ. इसके बढ़ावा देने के लिए ही यहां से कुछ देशों के लिए सीधी फ्लाइट सेवा शुरू की गई है. जी 20 जैसे शिखर सम्मेलन कराए जा रहे हैं.
 
इन आंकड़ों और तथ्यों के नजरिए से यदि कश्मीर से चुनाव लड़ रही क्षेत्रीय पार्टियों के घोषणा पत्र और उनके मुददे देखे जाएं तो लगता है कि उनके पास जनता से कहने के लिए कुछ खास नहीं है. ले-देकर विपक्षी पार्टियों सत्ता पक्ष पर यह आरोप लगाने में शक्ति लगा रही हैं कि ‘ अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर युवाओं के लिए खुले जेल में बदल दिया गया है और हजारों युवक विभिन्न जेलों में बंद हैं.’’
 
यानी विपक्षी दल यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि इसके अलावा भी लोगों की जरूरतें है. रोजी-रोजगार, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी सुविधाएं आदि की स्थिति यदि ठीक हो तो कोई भी सूबा खुशहाल बन सकता है.
 
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हद तो यह है कि जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी नेशनल कान्फ्रेंस ( एनसी ) ने अब तक अपना घोषणा पत्र भी जारी नहीं किया है.महबूबा मुफ्ती की जम्मू कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक  पार्टी ( पीडीपी) और एनसी इंडिया एलायंस के घटक दल हैं.
 
एनसी ने अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस के घोषणा पत्र को ही अपना मान लिया है, जबकि पीडीपी ने घोषणा पत्र तो जारी किया, पर उसे देख-पढ़, सुनकर यह समझना कतई नामुमकिन है कि इससे जम्मू-कश्मीर की तस्वीर कैसे बदली जा सकती है.पीडीपी के घोषणा पत्र को देखकर लगता है कि वह लोकसभा चुनाव नहीं, विधानसभा का चुनाव लड़ रही है. इसके घोषणा पत्र में व्यापक नजरिए का बड़ा अभाव है.
 
‘अपना वोट अपनों के लिए’ शीर्षक से जारी घोषणा पत्र में स्कूल के बच्चों को लैपटाॅप देने, खेल मैदान और खेल के समान के खरीद में अनुदान, कचरा प्रबंधन, सड़कों की लाइट दुरूस्त करने जैसे लोकल मुददे हैं, जो आम तौर पर विधानसभा चुनाव के दौरान स्थानीय सरकारें या पार्टियां रखती हैं.
 
‘इंडिया एलांस’ की केंद्र में सरकार आने के बाद पीडीपी क्या करेगी जिससे मौजूदा सरकार से बेहतर काम का एहसास हो, घोषणा पत्र में इसकी झलक तक नहीं है.सत्तारूढ़ बीजेपी का दावा है  अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी में आतंकवाद लगभग खत्म हो चुका है. युवा पत्थरबाजी त्याग कर अपने भविष्य के बारे में सोचने लगे हैं. कश्मीर में व्यापक शांति आई है.
 
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शांतिपूर्वक पंचायत चुनाव कराए गए. समय पर स्कूल-कॉलेज की परीक्षाएं आयोजित हो रही हैं. विपक्षी दल कश्मीर के लिए इससे क्या बेहतर कर पाएंगे, उनके घोषणा पत्र में इसका उल्लेख नहीं. न ही यह बताने की कोशिश की गई है कि केंद्र में उनकी सरकार आने पर कैसे पर्यटन का विकास कर रोजी-रोगजार से जोड़ा जाएगा.
 
विपक्षी को चित करना हो तो बड़ी लाइन खींचनी पड़ती है.. यह सीधा और सरल फार्मूला है. विपक्षी दलांे के घोषणा पत्र से ऐसा नहीं लगता कि इसके पास बड़ी लकीर खींचने की क्षमता है. कश्मीर से प्रत्येक साल खासी संख्या में छात्र प्रतियोगी परीक्षा देकर विभिन्न नौकरियों में लगते हैं. इसकी तैयारी के लिए उन्हें कश्मीर से दूर दूसरे स्टेट में जाना पड़ता है.
 
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ऐसे में एएमयू और जामिया में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले सेंटर की शाखाएं घाटी में स्थापित कर दी जाएं तो वे समय, पैसा और परेशानी के दबाव से बच जाएंगे. विपक्षी दल इस मुद्दे को भी नहीं उठा पा रहे हैं.
 
यहां तक कि सूखे मेवे, सेब के उत्पादन में और कैसे बेहतरी लाई जाए, इसके काश्तकार विदेशी बाजार की स्पर्धा कैसे उबर पाएं, घोषणा पत्र में इसका भी अभाव है. केवल पीडीपी ने कहा है कि सत्ता में आने पर वह अखरोट के किसानों को कर के बोझ से बचाने का प्रयास करेगी.