25 हजार लावारिस लाशों की अंतिम क्रिया कर चुके हैं फैजाबाद के शरीफ चाचा

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 06-02-2021
बेटे के मौत ने मोहम्मद शरीफ की जिंदगी बदल दी
बेटे के मौत ने मोहम्मद शरीफ की जिंदगी बदल दी

 

अनु रॉय/ फैजाबाद   

जब हम अपने किसी अजीज को खो देते हैं तो कई बार जिंदगी से भरोसा उठ जाता है. हम कई बार कड़वाहटों से भर जाते हैं तो कई बार उदासी से. लेकिन फिर कुछ लोग ‘मोहम्मद शरीफ़’ हो जाते हैं.

एक ऐसा शख्स जिनकी इंसानियत उन्हें और बेहतर इंसान बल्कि फरिश्ते में बदलने लगती है. ऊपर लगी तस्वीर देखकर आप सोच रहे होंगे, यह तो एक आम पंक्चर बनानेवाला है. क्या ख़ास है इसमें!

आम दिखने वाले मोहम्मद शरीफ़ वाकई खास हैं. मोहम्मद शरीफ ऐसे शख़्स हैं जिन्होंने बकौल मीडिया रिपोर्ट्स, अभी तक 25,000से ज़्यादा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया है.

वैसे, गिनती कम-ज्यादा हो सकती है क्योंकि खुद मोहम्मद शरीफ़ (और मुहल्ले के लिए शरीफ चाचा) को याद भी नहीं कि असल में यह संख्या कितनी है. वह तो बस मानते हैं कि इस दुनिया में आए हर शख़्स की विदाई इज़्ज़त से भरी हुई हो. अगर मरने वाला इंसान मुसलमान है तो आख़िरी दुआ पढ़कर सुपुर्द-ए-ख़ाक किया जाए और हिंदू है तो श्मशान में मुखाग्नि देकर उसके शरीर को पंचतत्त्व में विलीन किया जाए.

शरीफ़ चाचा कहते हैं कि वह इन लावारिस लाशों को दफ़न करने या जलाने के लिए किसी से कोई आर्थिक मदद नहीं लेते हैं. असल में यह उनका तरीक़ा है अपने दुःख को दूर करने का. यही ज़रिया है उनके सुकून का.

दरअसल, उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद के रहने वाले शरीफ़ चाचा ने अपने 27साल के बेटे ‘रियाज़’ को किसी हादसे में खो दिया था. अब तो शरीफ़ चाचा की बूढ़ी आंखों में एक धुंधली-सी परछाई है अपने बेटे रियाज़ की, जो मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की नौकरी के लिए शहर से बाहर गया और कभी लौटा ही नहीं. एक महीने के बाद रियाज़ के ग़ायब होने की ख़बर आई और फिर महीने दिन बाद क्षत-विक्षत उसकी लाश मिली.

एक पिता के लिए बेटे को खोने का दर्द दुनिया के हर दर्द से बड़ा होता है. मोहम्मद शरीफ़ ज़िंदगी से हारने लगे थे. फिर एक दिन उन्होंने देखा, पुलिस एक लावारिस लाश को नदी में फेंक रही थी. उनको लगा उनके रियाज़ की लाश भी ऐसे ही किसी नदी में फेंक दी जाती अगर उन्हें उसका वह बचा-खुचा जिस्म नहीं मिलता.

बस, उसके बाद मोहम्मद शरीफ़ ने तय किया कि किसी भी बेटे-बेटी की लाश यूं फेंकी नहीं जाएगी. सबको उसके हिस्से की माटी नसीब होगी. फिर उन्होंने पुलिस से इसके बारे में बात की. उन्होंने कहा कि वह ख़ुद इन लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करना चाहते हैं. अगर रेलवे ट्रैक पर कोई लाश मिले या किसी सड़क हादसे में किसी की मौत हो जाए और 72घंटे तक उसे कोई ढूंढने या उसके पार्थिव शरीर पर क्लेम करने कोई न आए तो जिस भी धर्म से जुड़ा होगा, उसी के लिहाज से उसकी अंतिम क्रिया वह करना चाहते हैं.

इस हादसे को 25साल से ज़्यादा वक्त बीत चुका है और अब तक तक़रीबन 25,000लाशों को उन्होंने सुपुर्द-ए-ख़ाक किया है.

शुरुआत में घर के लोग और नाते-रिश्तेदार सब इसके ख़िलाफ़ थे. कुछ लोग तो उन्हें पागल आदमी भी कहने लगे. लेकिन वह रुके नहीं, थके नहीं. उनका वह जुनून शायद मुहब्बत है अपने मरहूम बेटे के लिए.

अपने रोजगार के लिए आज भी शरीफ़ चाचा अपनी पंक्चर की दुकान चलाते हैं और फ़ैज़ाबाद में रहकर अपना और अपनी बेग़म का पेट भरते हैं. हाँ, उनका यह काम सरकार की निगाह में भी आया और फिर उन्हें उन्हें पद्म-श्री से सम्मानित किया गया.

मोहम्मद शरीफ़ जैसे लोगों का होना दुनिया को दुनिया बने रहने की बेहद दुर्लभ वजहों में से एक है.