कदीमी माल और कश्मीरी बाजार: वजीर और मुगल सिपहसालार घोड़े पर बैठ करते थे खरीदारी

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 28-03-2021
ये 12 फुट ऊंची दुकान मुगलिया शानो-शौकत बयां करती हैं
ये 12 फुट ऊंची दुकान मुगलिया शानो-शौकत बयां करती हैं

 

-माल और कश्मीरी बाजार में कभी 12 फीट ऊंची हुआ करती थीं दुकानें

-मुगलिया दौर में बादशाह के अफसर यहां पर आते थे खरीदारी करने

-बिना ऊंट और घोड़े से उतरे ही खरीदते थे सामान इसलिए दुकानों को बनवाया गया इतना ऊंचा

-सड़क ऊपर उठते-उठते भी दुकान की ऊंचाई अभी कही चार-छह फीट तक बची हुई है

 

आगरा / फैजान खान

मुगल बादशाह ही नहीं उनके वजीर और सिपहसलारों की भी शान-ओ-शौकत कोई कम नहीं थी. उनकी शान को बयां करतीं आज भी आगरा में कई निशानियां उस दौर की याद दिलाती हैं. ऐसी ही एक निशानी है आगरा में माल और कश्मीरी बाजार. इस बाजार में बादशाह के वजीर और बड़े ओहदेदार कभी ऊंट-घोड़े से नीचे उतरकर सामान नहीं खरीदते थे. जब ये लोग बाजार से गुजरते थे, तो वे अपनी सवारी पर बैठकर ही दुकानों से खरीदारी करते थे. इसलिए मुगलिया दौर में इन दुकानों को करीब 12 फीट ऊंचा बनवाया गया था. आज वो शान तो बाकी नहीं, लेकिन दुकानों के कुछ निशां जरूर अपनी दिलचस्प कहानी बया करते हैं.

इन दुकानों की ऊंचाई छह फीट रह गई

मोतविद खां की मस्जिद में बनी दुकानों में इत्र बेचने वाले किशोर मित्तल बताते हैं कि मुगलकाल में दादा प्रिया दास यहां पर इत्र बेचा करते थे. उस दौर में माल और कश्मीरी बाजार में मुगल सल्तनत के वजीर, सैनिक, कर्मचारी ऊंट-घोड़ों पर सवार होकर बाजार करने के लिए आते थे.

उन्होंने बताया कि वे सवारी से नीचे उतरना अपनी शान के खिलाफ समझते थे. न ही वे बाजार में कभी उतरते थे. सवारी से ही बैठे-बैठे वे सामान की खरीदारी करते. इसलिए दुकान को इतना ऊंचा बनवाया गया था कि ऊंट-घोड़ों पर बैठे-बैठे ही उन्हें सामान मिल जाए.

आज कई बार सड़क बनने के बाद दुकान की ऊंचाई कम हो गई हैं. वर्तमान में भी इन दुकानों की ऊंचाई करीब छह फीट है, जो आपको आज के दौर में कहीं भी देखने को नहीं मिलेगी. बाकी लोगों ने अपनी दुकानों की ऊंचाई को छोटा करवा लिया था, लेकिन बहुत से दुकानदारों ने ऐसा नहीं किया.

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इन मुगलकालीन दुकानों की ऊंचाई अब भी कहीं-कहीं 6 फुट तक है

भारतीय मुस्लिम विकास परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष समी आगाई बताते हैं कि ब्रिटिश काल तक यह बाजार बहुत गुलजार रखता था. यहां पर पूरी रात रईसजादों की चहल-पहल होती थी.

आगाई ने बताया कि कश्मीरी बाजार में दर्जनों कोठों पर मुजरे होते थे. वे लोग भी अपनी सवारी यानी घोड़े और बग्गी से ही आते थे और अपनी सवारी पर बैठकर ही सामान खरीदते थे. इन ऊंची दुकानों में इत्र, मिठाई, पान और फूलों की दुकान होती थीं.  बची हुईं ये चंद दुकानें आज भी मुगलकालीन अफसरों की शान की कहानी को बयां करती हैं.