ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, इंसानियत का गहवारा है

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 24-01-2023
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह

 

ज़ाहिद ख़ान

अजमेर में गरीबनवाज हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां अब तक 8 बार चादर चढ़ाई है. सूफ़ी मोइनुद्दीन चिश्ती ख़्वाजा ग़रीब नवाज के 811वें उर्स की शुरुआत हो गई है. 22 जनवरी को रज्जब के महीने के चांद दिखने के साथ ही उर्स की मज़हबी रस्में शुरू गईं. उर्स की सभी रस्में 22 जनवरी से 1 फरवरी तक पूरी की जाएंगी.

रिवायत के मुताबिक़ दरगाह में जन्नती दरवाजा चांद रात यानी 22 जनवरी के दिन खोला गया. रज्जब महीने का चांद दिखाई देने के साथ ही रात से ही उर्स शुरू हो गया. ग़रीब नवाज़ की क़ब्र पर ग़ुस्ल करने की प्रक्रिया देर रात से शुरू हुई.

उर्स को लेकर ख़ुद्दाम-ए-ख़्वाजा ने माकूल तैयारियां की हैं. उर्स का झंडा पूरी शान-ओ-शौकत के साथ बीते 18जनवरी को दरगाह के बुलंद दरवाजे पर हज़ारों लोगों की मौज़ूदगी में फहरा दिया गया. और इसके साथ ही उर्स का अनौपचारिक आग़ाज़ हो गया. झंडे की रस्म में भी बड़ी तादाद में लोगों ने शिरकत की.

इससे पहले सैयद मारूफ़ चिश्ती की सदारत और गौरी परिवार के फ़ख़रुद्दीन गौरी की अगुवाई में अजमेर शहर के अहम रास्तों से जुलूस निकला. जुलूस के दौरान बड़े पीर साहब की पहाड़ी से तोप के गोले दागे गए. जुलूस में ख़ासी तादाद में अक़ीदतमंद शरीक थे. 

dargah

गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी के चलते बीते दो साल, उर्स के मौके़ पर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह में ज़ायरीन ज़ियारत के लिए नहीं पहुंच पाए थे. इस मर्तबा सभी पाबंदियां हटा दी गई हैं.

उम्मीद है कि इस साल उर्स में देश-दुनिया से 2 से 3लाख जायरीन दरगाह पर ज़ियारत के लिए पहुंचेगे.

ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर लोग बड़ी अक़ीदत और उम्मीद से आते हैं और उनसे अपनी मुरादें मांगते हैं. मन्नत पूरी होने पर दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं. जो लोग भी ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के दर पर आते हैं, ग़रीब नवाज़ उनको मुहब्बत, अमन और इंसानियत का पैग़ाम देते हैं.

रोज़ाना नमाज़ के बाद अजमेर शरीफ के परिसर में सूफ़ी क़व्वाल, क़व्वालियों की महफ़िल सजाते हैं. इन क़व्वालियों में ऊपरवाले की नेमत और बड़ाईयों का बखान होता है. यहां आने वाला कभी भी कोई भी भूखा नही जाता. दरगाह के अंदर ही दो बड़े कढ़ाहे में रोज़ाना तबर्रुक बनाया जाता है. ये रात में तैयार होता है और सुबह बांट दिया जाता है. बड़े कढ़ाहे के बारे में कहा जाता है कि इसे बादशाह अकबर ने दरगाह में भेंट किया था. जबकि छोटा जहांगीर ने यहां चढ़ाया था.

दरगाह का जन्नती दरवाजा जायरीनों के लिए साल भर में चार बार खोला जाता है. लेकिन उर्स में ये पूरे छह दिन के लिए खुलता है. रिवायत के मुताबिक़ जन्नती दरवाजा, उर्स में आने वाले जायरीन के लिए खोला जाता है. यह दरवाजा कुल की रस्म के बाद 6रज्जब को बंद कर दिया जाता है. जन्नती दरवाजे पर जायरीन साल भर मन्नत का धागा बांधते हैं.

जन्नती दरवाजा खुलने के बाद से ही जायरीन की आमद बढ़ जाती है. दरगाह ज़ियारत को आने वाले जायरीन जन्नती दरवाजा से जियारत करने के लिए बेक़रार नज़र आते हैं. जायरीन सिर पर मखमल की चादर और फूलों की टोकरी लिए अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं.

चादर चढ़ाने की ये रस्म पहले उर्स के दौरान मज़ार को ढकने के लिए शुरू की गई थी. लेकिन ये रस्म अब अक़ीदत का नज़ारा बन चुकी है. यहां पूरे मुल्क से ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे मुमालिक़ से भी चादरें आती हैं. अक़ीदत की यह रिवायत कोई 810 साल पुरानी है.

dargah

आलम ये है कि उर्स के दौरान यहां रोज़ तक़रीबन 2 हज़ार चादरें चढ़ती हैं. इस हिसाब से उर्स के पन्द्रह दिन में यानी उर्स का झंडा चढ़ने से लेकर 9रज्जब यानी बड़े कुल की रस्म तक करीब 30 हज़ार चादरें चढ़ जाती हैं. इन चादरों से सीधे और अप्रत्यक्ष तौर पर क़रीब 15 हज़ार लोगों की रोज़ी-रोटी जुड़ी है.

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/167438473515_ajmer5_(3).jpg

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से बीते 8 साल में 8 चादरें पेश हो चुकी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चादर के साथ एक खास संदेश भी भिजवाते हैं. पिछले साल उन्होंने संदेश में लिखा था, "ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के उर्स पर विश्वभर में उनके अनुयायियों को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं. दुनिया को मानवता का संदेश देने वाले महान सूफी संत के उर्स के अवसर पर अजमेर शरीफ में चादर भेजते हुए मैं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. अनेकता में एकता भारत की पहचान है. देश में विभिन्न पंथों, संप्रदायों एवं मान्यताओं का सद्भावपूर्ण सह-अस्तित्व हमारी विशिष्टता है.

विभिन्न कालखंडों में देश के सामाजिक, सांस्कृतिक ताने-बाने को मजबूती प्रदान करने में संतों, महात्माओं, पीर व फकीरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस गौरवशाली परंपरा में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का नाम पूरे आदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है जिन्होंने समाज को प्रेम एवं सौहार्द का संदेश दिया. गरीब नवाज के आदर्शों एवं विचारों से पीढ़ियों को निरंतर प्रेरणा मिलती रहेगी. समरसता और भाईचारे की मिसाल यह उत्सव श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास को और प्रगाढ़ बनाएगा. इसी विश्वास के साथ ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के वार्षिक उर्स के अवसर पर मैं दरगाह अजमेर शरीफ से देश की खुशहाली और समृद्धि की कामना करता हूं."

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भी चादरें भेजी जाती रही हैं. यहां तक कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के तत्कालीन और मौजूदा राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री भी अजमेर शरीफ़ के दरबार में चादर पेश कर चुके हैं.

ख़्वाजा हुसैन चिश्ती अजमेरी को शेख़ हुसैन अजमेरी और मौलाना हुसैन अजमेरी, ख़्वाजा हुसैन चिश्ती के नाम से भी जाना जाता है. ग़रीब नवाज़, लोगों द्वारा दिया गया लक़ब है. ख़्वाजा हुसैन अजमेरी, ख़्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के वंशज हैं.

मोइनुद्दीन चिश्ती की पैदाइश 1141-42 में ईरान के सिज़िस्तान (मौजू़दा सिस्तान) में हुई थी. भारत में चिश्ती सिलसिले की क़ायमगी ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती द्वारा ही की गई थी. मोइनुद्दीन चिश्ती साहब ने सूफ़ी तरीक़े को भारतीय उपमहाद्वीप में क़ायम और इसका प्रचार किया. यह तरीक़ा रूहानी या आध्यात्मिक था.

अज़ीम सूफ़ी ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने सांप्रदायिक एकता, भाईचारे और आपसी मुहब्बत का पाठ पढ़ाने का मिशन लेकर सूफी रवायत का आग़ाज़ किया था. यह रवायत आज भी जारी है. दुनिया भर के अलग-अलग मज़हब और पंथ के अनुयायी बड़ी तादाद में अपनी अक़ीदत का नज़राना पेश करते हैं.

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/167438470415_ajmer5_(2).jpg

सूफ़ीवाद में एक ईश्वर की उपासना तो है, मगर सूफ़ी को किसी एक मज़हब से जोड़कर नहीं देखा जाता. यही वजह है कि बीती आठ सदी से ख़्वाजा के दर पर सभी मज़हबों के लोग अपनी अक़ीदत रखते हैं. ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के लाखों मुरीद हैं.

उनके शागिर्दों में कुछ अहम नाम हैं-क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी, बाबा फ़रीद, निज़ामुद्दीन औलिया, हज़रत अहमद अलाउद्दीन साबिर कलियरी, अमीर ख़ुसरो, नसीरुद्दीन चिराग़ दहलवी और बन्दे नवाज़ वगैरह. ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ उर्फ़ ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने सूफ़ीवाद चलाकर,अपने सभी उत्तराधिकारियों को अपना दर सभी मज़हबों के लिए खोलने और सभी के लिए दुआ करने की हिदायत दी.

यही वजह है कि महरौली दिल्ली स्थित ख़्वाजा कुतुबुद्दीन चिश्ती की दरगाह हो या हजरत निज़ामुद्दीन चिश्ती की दरगाह, सारे सूफ़ियों की दरगाह में सभी मज़हबों के मानने वालों का साल भर तांता लगा रहता है.

15 मार्च, 1236 को ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने पर्दा कर लिया. आज अजमेर में उसी जगह पर उनकी दरगाह तामीर है. अजमेर शरीफ़ दरगाह मुग़लकाल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है. दरगाह की तामीर शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने शुरू की थी, मुग़ल बादशाह हुमायूं के दौर मे इसकी तामीर मुकम्मल हुई. गुम्बद की तामीर बादशाह शाहजहाँ के दौर में हुई.

अजमेर शरीफ़ का मुख्य दरवाजा निज़ाम गेट कहलाता है. इसकी तामीर हैदराबाद स्टेट के निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ाँ ने करवाई थी. इस दरवाजे के बाद मुग़ल सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनवाया शाहजहानी दरवाज़ा आता है. आख़िर में सुल्तान महमूद खि़लजी द्वारा बनवाया गया बुलंद दरवाज़ा आता है, जिस पर हर साल उर्स के मौके़ पर झंडा फहराकर, उर्स का आग़ाज़ होता है.

हर साल हज़रत ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर बड़े पैमाने पर उर्स होता है. हज़ारों-लाखों अक़ीदतमंद जिनमें मुस्लिम, हिन्दू, सिख, ईसाई व दीगर मज़हब के लोग अपनी हाज़िरी देने आते हैं. उनके दर पर मज़हब, अमीर-ग़रीब, बड़े-छोटे किसी भी तरह का भेदभाव नहीं. सब पर उनकी रहमत बराबरी से बरसती है. आठ सदी से ज़्यादा वक़्त बीत गया, मगर जिसने भी उनकी चौखट चूमी, वह खाली नहीं गया.

dargah

ख़्वाजा साहब या ग़रीब नवाज़ के नाम से लोगों के दिलों में बसने वाले इस अज़ीम सूफ़ी मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का बुलंद दरवाजा इस बात का गवाह है कि मुहम्मद-बिन-तुगलक, अल्लाउद्दीन ख़िलजी, शेरशाह सूरी और मुग़ल बादशाह अकबर से लेकर जहाँगीर, शाहजहाँ, दारा शुकोह और औरंगज़ेब जैसे बड़े से बड़े हुक्मरान यहां पर पूरे अदब के साथ, अपना सिर झुकाए ही आए.

दुनिया भर में हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, सर्वधर्म सद्भाव की एक बेहतरीन मिसाल है. यहां से हर मज़हब के लोगों को आपसी मुहब्बत और भाईचारे का पैग़ाम मिला है. उनके जानिब सभी की अक़ीदत है. ख़्वाजा के मुकद्दस आस्ताने में राजा मानसिंह का लगाया चांदी का कटहरा है, तो वहीं ब्रिटिश महारानी मेरी क्वीन का अक़ीदत के तौर पर बनवाया गया वुज़ू का हौज़ है.

दुनिया भर की नामवर हस्तियों ने ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के पैग़ाम को न सिर्फ़ समझा, जाना और बाकी लोगों तक इसे पहुंचाया है, बल्कि अपनी अक़ीदत के फूल अजमेर आकर पेश किए हैं. ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, वाक़ई इंसानियत का गहवारा है. जिसका पैग़ाम सिर्फ़ मुहब्बत और भाईचारा फैलाना है.