बुद्धिजीवी बोले-वातावरण ऐसा बनाएं, देश विश्व में हमेशा रहे महान

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 14-08-2021
बुद्धिजीवी बोले-वातावरण ऐसा बनाएं, देश विश्व में हमेशा महान बना रहे
बुद्धिजीवी बोले-वातावरण ऐसा बनाएं, देश विश्व में हमेशा महान बना रहे

 

75 वें स्वतंत्रता दिवस के जश्न में देश डूबा है. आजादी का वह पहला जश्न कितना महत्वपूर्ण रहा होगा, जो वर्षों के संघर्ष के बाद हाथ आया था. एक लंबी लड़ाई के बाद जश्न का लुत्फ कितना अधिक हो सकता है, इसका अंदाजा करना भी हमारे लिए आसान नहीं है. मगर आजादी के पहले जश्न के बाद ही बुद्धिजीवियों ने देश के प्रति बहुत कुछ सोचना शुरू किया था. केवल जश्न से देश की उन्नति की रूपरेखा तैयार नहीं की जा सकती, इसलिए हमें जश्न के साथ बहुत से महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सोचना होगा. यही कारण है कि हम ने आजादी के 75 वें स्वतंत्रता दिवस पर विभिन्न वर्गों के लोगों से बात की है. उनकी बातों से अंदाजा होगा कि  आज आजाद देश में सांस लेने वाले क्या कुछ सोचते हैं और उनकी स्थिति क्या है.


सलमान अब्दुस समद / नई दिल्ली

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प्रसिद्ध उपन्यासकार और अलीगढ़ निवासी प्रोफेसर गजनफर अली कहते हैं,  “भारत एक ऐसा देश है जो कई मर्तबा लुटा और कई मर्तबा बसा. लुट कर-लुट कर बस जाना ही इस देश की खूबसूरती है.

बहुत खुशी की बात है कि लूटने वालों से हम ने आज से 75 वर्ष पहले देश को आजाद कराया. इन वर्षों में हमने भारत को बेमिसाल ढंग बसाया है. अब यहां की सभ्यता और संस्कृति को बचाए रखने और देश में शांति का माहौल बनाने से ही हमारा देश बसा रहेगा.

लेकिन आज कुछ लोग ऐसे काम भी कर रहे हैं जो देश के लिए उचित नहीं.  शिक्षा और उद्योग में उन्नति के लिए भी देश की संस्कृति की रक्षा करना अनिवार्य है. उसके बगैर हम विश्व स्तर पर अपनी छाप नहीं छोड़ सकते  है  ”

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मौलाना मजहरुल-हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व कुलपति और प्रसिद्ध लेखक व आलोचक प्रोफेसर एजाज अली अरशद कहते हैं, “वर्षों गुलाम रहने वाला देश अपनी 75 वीं वर्षगांठ मना रहा है.

यह वतन के सभी लोगों के लिए खुशी की बात है. इस अवसर पर विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग हाथ मिलाकर खुशियां बांटते हैं. वास्तव में, पिछले 75 वर्षों से चली आ रही साझेदारी और सद्भाव के माहौल को बनाए रखना ही इस देश के विकास और समृद्धि की गारंटी है.

इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात आपसी चर्चा या बातचीत है जो गलतफहमियों को दूर करती हैं. लोगों को राष्ट्रवाद की राष्ट्रीय अवधारणा पर एक साथ लाती है.”.

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भाषा विशेषज्ञ और भाषाविज्ञान विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के चेयरमैन प्रोफेसर मोहम्मद जहांगीर वारसी कहते हैं कि मैंने लगभग दो दशक अमरीका के विभिन्न विश्विद्यालय में बिताए हैं.

मुझे वहां कभी अजनबी पन का एहसास नहीं हुआ, क्योंकि अमेरिकी संस्कृति पर भारतीय संस्कृति का असर देखने को मिलता है. इस प्रकार वहां बसने वाले भारतीय बड़े गर्व के साथ भारतीय त्योहार मनाते हैं.

इस कारण न केवल वहां अपनेपन का एहसास होता है, भारतीय, अमेरिकी संस्कृति पर अपना रंग जमाते हैं. यह इस बात का उदाहरण है कि हिन्दुस्तानी संस्कृति अपनों को भाती है और दूसरों को लुभाती है.

एक भाषा विशेषज्ञ के रूप में मैं यह भी कह सकता हूं कि ग्लोबलाइजेशन (भूमंडलीकरण) में हिंदुस्तानी भाषाओं को सीखने की रुचि गैर-मुल्की लोगों में अधिक होती जा रही है. विचारणीय बिंदु यह है कि गैर मुल्कों में रहने वाले भारतीयों के वह बच्चे हिंदुस्तानी संस्कृति और भाषाओं में कुछ ज्यादा रुचि रखतें, जिनका जन्म भारत में नहीं हुआ.

उनके इस प्रकार रुचि दिखाने का लाभ भविष्य में कुछ यूं होगा कि विश्व भर में भारतीय संस्कृति की एक अलग पहचान होगी. इसलिए हम देश वासियों के लिए अनिवार्य है कि मुल्क के वातावरण कुछ ऐसा बनाएं, जिससे हमारा देश विश्व स्तर पर सदा महान रहे. इसलिए आजादी के 75वीं वर्षगांठ पर सभ्यता और संस्कृति के रक्षा का हल्फ लेना जरूरी है”.
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गुलाम रब्बानी, सचिव , कॉन्फेडरेशन ऑफ गवर्नमेंट एम्प्लॉयज एसोसिएशन, दिल्ली और मेंबर दिल्ली एडवाइजरी कॉन्ट्रैक्ट लेबर बोर्ड दिल्ली सरकार, का कहना है कि “आजादी के 75 वर्ष हो गए, यदि इन 75 वर्षों में सरकारी नौकरी का आकलन  करें तो हम पाएंगे कि 1947 में जो स्थिति सरकारी नौकरियों की थी.

उससे हालत खराब हुए हैं. उस समय के सरकारी  नौकरी की तुलना में अब काफी गिरावट आई है. पहले नियमित नौकरी मिलती थी. अब उस की जगह संविदा, आउटसोर्स की नौकरियों को बढ़ावा दिया जा रहा है. सरकारी नौकरी मात्र एक नौकरी नहीं, बल्कि  इसके द्वारा देश की जनता में अपने देश के प्रति मुहब्बत बढ़ती है.”
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तस्खीर फाउंडेशन दिल्ली के अन्तर्गत संचालित ‘‘इदारा उलूम -ए- इस्लामिया पलवल, हरियाणा के सहायक नाजिम मौलाना अबुल लैस नदवी का कहना है कि “मदरसों की सेवाओं को किसी भी स्तर पर अधिक मान्यता नहीं मिली है.

हालांकि, स्वतंत्रता का बिगुल बजाने वालों में मदरसों के उलेमा थे. आज भी एक शिक्षित समाज के निर्माण में मदरसों की भूमिका महत्वपूर्ण है. यदि मदरसों की सेवाओं को सरकारी स्तर पर स्वीकार किया जाए, तो देश के लिए और भी उचित होगा. स्वतंत्रता दिवस समारोह की सुंदरता को बढ़ाने के लिए मदरसों की सामाजिक, शैक्षिक और राष्ट्रीय सेवाओं को ध्यान में रखना जरूरी है.

भारत में जिस प्रकार मदरसों का पाठ्यक्रम तैयार किया जाता है, उससे दूसरे देशों के लोग भी लाभान्वित हो रहे हैं. हिंदुस्तानी मदरसों के उलमा की लिखी हुई पुस्तकें हिंदुस्तान के बाहर के मदरसों में पढ़ाई जा रही हैं. यह एक ऐसा बिंदु है जिस पर हमारे देश को गर्व होना चाहिए. आजादी के जश्न का रंग चोखा करने के लिए मदारिस की हर प्रकार की सेवाओं को याद रखने की जरूरत है.

देश के विभिन्न वर्गों से बात करने से यह स्पष्ट होता है कि हमारा देश बहुत से क्षेत्र में बेमिसाल सफलता का झंडा लहरा रहा है. जल्द ही हमारे देश का नाम विश्व स्तर पर बहुत ऊंचे होगा. इसकी सभ्यता और संस्कृति पुरकशिश बनकर उभरेगी.

साथ ही यह प्रदर्शित होता है कि आजादी के बाद जिस खूबसूरत सुबह की उम्मीद थी, वह अभी आनी बाकी है. आजादी की लड़ाई देश के हर वर्ग में समृद्धि और खुशहाली लाने के लिए लड़ी गई थी, लेकिन समृद्धि की तलाश आज भी जारी है.

उर्दू के मशहूर शायर फैज अहमद फैज ने इस संदर्भ में क्या खूब कहा हैः-

ये दाग दाग उजाला ये शब-गज़ीदा सहर
वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं
अभी चिराग-ए-सर-ए-रह को कुछ खबर ही नहीं
अभी गरानि-ए-शब में कमी नहीं आई
नजात-ए-दीद-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई
चले चलो कि वो मंजिल अभी नहीं आई

काश वह सुबह आए, जो दागदार न हो, यही दुआ है हम सब की