हरजिंदर
यह बात है 22 मार्च 1907 की.जगह थी पंजाब का लायलपुर शहर, जो आज पाकिस्तान में है, अब उसका नाम कर दिया गया है फैसलाबाद.उस दिन वहां पंजाब के किसानों का एक दो दिवसीय सम्मेलन शुरू होना था.कुछ ही समय पहले समय ब्रिटिश सरकार ने कृषि संबंधी तीन कानून लागू किए थे जिन्हें लेकर परे पंजाब में खासा असंतोष था.इसी असंतोष के चलते लायलपुर में दस हजार से भी ज्यादा किसान जमा हो गए थे.
इसका आयोजन कांग्रेस के गरम दल के नेता सरदार अजीत सिंह ने किया था जो पंजाब में किसानों की मांगों को लेकर काफी समय से मुखर थे.इस सम्मेलन का एक और आकर्षण था पंजाब के उस समय के सबसे कद्दावर नेता लाल लाजपत राय की मौजूदगी.उन्होंने इस सम्मेलन में आने की सहमति यह कह कर दी थी वे वहां सिर्फ पर्यवेक्षक की हैसियत से रहेंगे, हालांकि बाद में उन्होंने वहां भाषण भी दिया.सम्मेलन जब शुरू हुआ तो वे भी मंच पर मौजूद थे.
स्वतंत्रता की अनकही कहानी-8
आमतौर पर ऐसे जलसों की शुरुआत गीतों और कविताओं वगैरह से होती है, नेताओं के भाषण उसके बाद होते हैं.मंच पर सबसे पहले बुलाया गया झंग सयाल अखबार के संपादक लाला बांके दयाल को.बांके दयाल गीतकार और शायर भी थे और अक्सर ऐसे कार्यक्रमों की शुरुआत उन दिनों उनकी रचानओं से ही होती थी.उंची आवाज और सधे स्वरों में गाए गए उनके गीत ऐसे जलसों के लिए मुनासिब भी थे.
उस दिन बांके दयाल ने वहां अपना एक नया गीत पेश किया.गीत के बोल थे- पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल ओए.तेरा लुट गया माल, जट्टा पगड़ी संभाल.
पगड़ी किसान की शान और उसकी आन होती है.बांके दयाल अपने गीत से किसानों को यह बता रहे थे कि तुम अपने सम्मान केा संभालों नहीं तो वह लुट जाएगा.जो बात अगले दो दिन तक किसान नेता अपनी लंबी और उलझी दलीलों से कहते उसे सिर्फ एक गीत से बांके दयाल ने सीधे लोगों के दिल तक पहंुचा दिया था.
उन दिनों अजीत सिंह की गिनती सबसे ओजस्वी वक्ताओं में होती थी.लाला लाजपत राय जो कहते थे उसका एक वजन होता था.लेकिन उस जलसे में किसने क्या कहा यह किसी को याद नहीं रहा.सबकी जबान पर एक ही चीज चढ़ गई थी- पगड़ी संभाल जट्टा.
इसके बाद से हर जगह लाला बांके दयाल की मांग होने लगी.हर कोई उनका यह गीत सुनना और गुनगुनाना चाहता था.हर छोटा-बड़ा जलसा उनके गीत से शुरू होता था और उसी से खत्म.जहां वे नहीं पहंुच पाते उनके बिना ही यह गीत गाया जाता.यह गीत बच्चे-बच्चे की जबान पर चढ़ गया और जो लोग अभी तक किसान आंदोलन से दूर थे इस गीत ने उन्हें भी आंदोलन से जोड़ दिया.
और फिर वह समय भी आया जब तीन कृषि कानूनों की वापसी का आंदोलन पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन के नाम से जाना जाने लगा.
अंग्रेज सरकार को इसका एक इलाज ही नजर आया.उसने लाला बांके दयाल को पकड़ कर जेल में डाल दिया.वे भले ही जेल चले गए लेकिन उनका गीत आंदोलन का सबसे बड़ा सहारा बन चुका था.इस दौरान सरकार ने लाला लाजपत राॅय और अजीत सिंह को गिरफ्तार करके बर्मा की मांडले जेल भेज दिया.लेकिन अब न यह गीत रुकने वाला था और न आंदोलन.
बाद में मजबूर होकर सरकार को मांगे माननी पड़ी और गिरफ्तार नेताओं को भी रिहा कर दिया गया.लेकिन इस गीत की गूंज बहुत बाद तक पूरे स्वतंत्रता आंदोलन में सुनाई देती रही.
बाद में पगड़ी संभाल जट्टा शीर्षक से कईं फिल्में भी बनीं.बहुत सी दूसरी फिल्मों में भी इस गीत को उलटफेर के साथ इस्तेमाल भी किया गया.भगत सिंह पर बनी तकरीबन सभी फिल्मों में यह गीत नए रूप में सुनाई दिया.
मुहम्मद रफी से लेकर रब्बी शेरगिल तक न जाने कितने गायकों ने इसके किन्हीं संस्करणों को अपने सुरों से पिरोया.कुछ महीनों पहले तक दिल्ली की सीमाओं पर जो किसानों का आंदोलन चला था उसमें भी इस गीत के बोल सुनाई देते रहे.यहां तक कि इस दौरान पगड़ी संभाल जट्टा दिवस भी मनाया गया था.
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लेकिन इतनी लोकप्रियता के बावजूद इस गाने का मूल संस्करण अब शायद कहीं भी पूरी तरह उपलब्ध नहीं है.पंजाबी कविता की एक वेबसाइट पर इसके मूल स्वरूप का एक अंश मौजूद है.उसके नीचे लिखा है- यह रचना अधूरी है, जिस किसी के पास पूरी रचना उपलब्ध हो वह हमें भेज दे.
हमने सिर्फ सेनानियों को ही नहीं भुलाया, उन गीतों को भी भुलाते जा रहे हैं जो आजादी की लड़ाई की आत्मा थे.
जारी.....
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )