G20 के साथी : भारतीयों ने बसाया था मॉरीशस

Story by  फिदौस खान | Published by  [email protected] | Date 03-09-2023
Indians had settled Mauritius
Indians had settled Mauritius

 

-फ़िरदौस ख़ान 
 
हिन्द महासागर के तट पर स्थित मॉरीशस को छोटा भारत कहा जाता है, क्योंकि यहां के अधिकांश नागरिकों के पूर्वज भारत के रहने वाले थे. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान वे गिरमिटिया मज़दूरों के तौर पर मॉरीशस लाए गए थे. उन्हें काग़ज़ पर अंगूठे का निशान लगवाकर पांच साल के लिए लाया जाता था. फिर उन्हें वापस भेज दिया जाता था.

यह सिलसिला साल 1909 तक चला. साल 1835 से 1907 के दरम्यान साढ़े चार लाख मज़दूर मॉरीशस में थे. साल 1922 तक सिर्फ़ एक लाख 60 हज़ार मज़दूर ही भारत लौटे और बाक़ी वहीं रह गए. ज़्यादातर मज़दूरों से गन्ने के खेतों में दिन-रात काम करवाया जाता था. ये लोग भले ही मीठे गन्ने के खेतों में बेगारी करते थे, लेकिन इनकी ज़िन्दगी में कड़वाहट घुली हुई थी. 
 
महात्मा गांधी ने गिरमिटिया मज़दूरों के दुख-दर्द को महसूस किया और इस अमानवीय प्रथा के ख़िलाफ़ दक्षिण अफ़्रीका से मुहिम शुरू कर दी. भारत में गोपाल कृष्ण गोखले ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में मार्च 1912 में गिरमिटिया प्रथा ख़त्म करने का प्रस्ताव रखा.
 
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महात्मा गांधी ने दिसम्बर 1916 में कांग्रेस अधिवेशन में भारत सुरक्षा और गिरमिट प्रथा अधिनियम प्रस्ताव पेश किया. इसके बाद फ़रवरी 1917 में अहमदाबाद में एक विशाल सभा की गई, जिसमें वक्ताओं ने इस प्रथा को अमानवीय क़रार देते हुए ब्रिटिश हुकूमत की कड़ी निन्दा की.
 
अवाम के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए 12 मार्च को ब्रिटिश हुकूमत ने इस पर रोक लगा दी. इसमें कोई दो राय नहीं है कि गिरमिटिया मज़दूरों ने भले ही मॉरीशस में बहुत ज़ुल्म सहे, लेकिन बाद में इनकी पीढ़ियों ने ख़ुशहाली देखी.  
 
जिस घाट और जिन सीढ़ियों से गिरमिटिया मज़दूरों को लाया गया था, वह अब भी मौजूद हैं. पहले इसे क़ुली घाट कहा जाता था. बाद में इसका नाम बदलकर आप्रवासी घाट कर दिया गया. यहां मज़दूरों की झोपड़ियां बनी हुई हैं, जिनमें वे रहते थे. यूनेस्को ने साल 2006 में इसे विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया था.  
 
मॉरीशस हिन्दू बहुल देश है और यह अफ़्रीका महाद्वीप का इकलौता ऐसा देश है, जिसमें हिन्दुओं की आबादी सबसे ज़्यादा है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक़ यहां हिन्दू 48.54 फ़ीसद हैं, जबकि ईसाई 32.71 फ़ीसद और मुसलमान 17.30 फ़ीसद हैं. 
 
मॉरीशस में इस्लाम भारत के गिरमिटिया मज़दूरों के साथ आया था. इनके अलावा भारतीय उपमहाद्वीप के व्यापारियों ने भी यहां इस्लाम को बढ़ावा दिया. यहां के मुसलमानों में 80 फ़ीसद सुन्नी और बाक़ी 20 फ़ीसद में अन्य मसलक शामिल हैं. मुसलमान ज़्यादातर अरबी, उर्दू और यहां की मातृभाषा क्रेओल बोलते हैं. 
 
मॉरीशस में पहली मस्जिद साल 1805 में तामीर की गई थी. देश की राजधानी पोर्ट लुई में साल 1850 में जामा मस्जिद बनवाई गई. यह देश की सबसे ख़ूबसूरत इमारतों में शामिल है. देश में बहुत सी मस्जिदें हैं, जिनकी देखरेख वक़्फ़ बोर्ड करता है. यहां मदरसे भी हैं, जिनमें बच्चों को इस्लामी तालीम दी जाती है. 
 
यहां के मुसलमान देश की मुख्यधारा में शामिल हैं. वे सरकार में अहम ओहदों पर रहे हैं, जिनमे राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, गवर्नर जनरल, कृषि मंत्री और आवास एवं भूमि मंत्री शामिल हैं. इस देश की पहली महिला प्रधानमंत्री भी एक मुस्लिम महिला रही है.
 
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मुसलमानों की तरह ही यहां हिन्दू धर्म फैलाने में गिरमिटिया मज़दूरों का महत्वपूर्ण योगदान है. यहां शैव सम्प्रदाय के अनुयायियों की तादाद ज़्यादा है. इसलिए यहां शिवालय ज़्यादा देखने को मिलते हैं. देश के उत्तरी हिस्से
में महेश्वरनाथ मन्दिर है, तो पूर्वी हिस्से में सागर शिव मंदिर है.
 
भारत के मन्दिरों की तरह यहां के मन्दिरों में भी मन्दिर के मुख्य देवता के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं, ताकि श्रद्धालु अपने-अपने ईष्ट देवी-देवताओं के दर्शन कर पाएं. यहां गंगा तालाब भी है, जिसकी बहुत मान्यता है. 
 
दरअसल मॉरीशस की संस्कृति विभिन्न देशों की सांझी संस्कृति है. पुर्तगाली नाविक पहली बार साल 1507 में यहां आए और उन्होंने इसे अपने क़याम की जगह बनाया. कुछ वक़्त बिताने के बाद वे यहां से चले गए. इसके बाद साल 1638 में डच यहां आए.
 
उन्हें यह द्वीप इतना अच्छा लगा कि उन्होंने यहां अपनी बस्तियां भी बना लीं. लेकिन यहां के मौसम और तूफ़ानों की वजह से उन्हें यह द्वीप छोड़कर जाना पड़ा. साल 1598 में हॉलैंड के तीन जहाज़ यहां आए. उन्होंने इस ख़ूबसूरत द्वीप का नाम अपने शहज़ादे मॉरिस के सम्मान में मॉरिशस रख दिया.
 
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फ़्रांस के शासनकाल में यह आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध हो गया. इसके क़रीब के द्वीप आइल बॉरबोन यानी मौजूदा रीयूनियन पर फ़्रांसीसियों का क़ब्ज़ा था. साल 1715 में उन्होंने मॉरीशस को भी अपने क़ब्ज़े में ले लिया. उन्होंने इसका नाम बदलकर आइल द फ़्रांस रख दिया. साल 1803 से 1815 के दरम्यान नेपोलियन युद्ध हो रहे थे.
 
उस वक़्त ब्रिटिश हुकूमत ने इस द्वीप की बागडोर अपने हाथ में ले ली. फ़्रांस जंग हार गया था. उसने 3 दिसम्बर 1810 को कुछ शर्तों के साथ समर्पण कर दिया. इन शर्तों के मुताबिक़ द्वीप पर फ़्रांस का क़ानून लागू होगा और फ़्रेंच भाषा का इस्तेमाल होगा.
 
इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने इस द्वीप का नाम बदलकर फिर से मॉरीशस कर दिया. मॉरीशस ने साल 1968 में आज़ादी हासिल की और साल 1992 में यह एक गणतंत्र देश बनकर उभरा. यह एक लोकतांत्रिक देश है. 
 
मॉरीशस को आज़ादी दिलाने में भारतीय मूल के सर शिवसागर रामगुलाम ने अहम किरदार अदा किया था. उनकी अगुवाई में लेबर पार्टी ने आज़ादी के लिए मुहिम चलाई थी. वे मॉरीशस के राष्ट्रपिता माने जाते हैं. वे देश के पहले मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और छठे गवर्नर जनरल थे. उनके पिता मोहित रामगुलाम भारतीय राज्य बिहार के भोजपुर ज़िले के हरिगांव के रहने वाले थे.    
 
सर शिवसागर रामगुलाम भारतीय संस्कृति के प्रबल पक्षधर थे. उन्होंने मॉरीशस में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि यहां की राजकीय भाषा अंग्रेज़ी है. इसके बावजूद उन्होंने हिन्दी को बढ़ावा दिया.
 
उन्होंने साल 1975 में नागपुर में हुए प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान मॉरीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था. फिर 12 नवम्बर 2002 को मॉरीशस के मंत्रिमंडल ने विश्व हिन्दी सचिवालय अधिनियम पारित किया.
 
भारत और मॉरीशस की सरकार के दरम्यान 21 नवम्बर 2003 को एक द्विपक्षीय समझौता हुआ. इसके कई साल बाद 11 फ़रवरी 2008 से विश्व हिन्दी सचिवालय ने औपचारिक रूप से काम शुरू कर दिया. इसमें दोनों देशों के प्रतिनिधि शामिल हैं. 
 
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चूंकि मॉरीशस में विभिन्न देशों और सम्प्रदायों के लोग रहते रहे हैं. इसलिए यहां के खाने में इसका गहरा असर है. यहां चावल, रोटी, चपाती व नूडल्स के साथ गोश्त, मछली, झींगा व अन्य समुद्री जीव, अंडे, दालें और सब्ज़ियां खाई जाती हैं.
 
व्यंजनों में लहसुन, प्याज़, अदरक, टमाटर, मिर्च, नारियल व मसालों का इस्तेमाल किया जाता है. सलाद खाने का एक अहम हिस्सा है. यहां मुग़लई पकवानों के अलावा समोसे, अचार, मुरब्बे और चटनियों को भी ख़ूब पसंद किया जाता है. मुग़लई पकवान मुसलमान पकाते हैं. यहां की मिठाइयों में गुलाब जामुन, रसगुल्ले और लड्डू आदि शामिल हैं.            
 
मॉरीशस के पारम्परिक संगीत को सेगा कहा जाता है. इसमें नृत्य के साथ-साथ क्रेओल में गाया जाता है. इसके अलावा यहां भारतीय लोकसंगीत भी बहुत लोकप्रिय हैं. इसे ज़िन्दा रखने में महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान है.
 
वे अपने तीज-त्यौहारों पर लोकगीत गाती हैं. पुराने गीतों में दुख-दर्द और वेदना है. मुसलमान सूफ़ी संगीत ख़ासकर क़व्वालियां पसंद करते हैं. यहां भारतीय फ़िल्मों के गीत भी ख़ूब पसंद किए जाते हैं. यहां के पारम्परिक वाद्ययंत्रों में रावने, मारावने, ट्राएंगल और गिटार आदि शामिल हैं. 
 
मॉरीशस की अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन, उद्योग, व्यापार और पर्यटन पर आधारित है. मॉरीशस की ख़ूबसूरती बेमिसाल है. समन्दर के किनारे दूर तक फैली रेत के धूप में चमकते ज़र्रे, हरेभरे दरख़्त और समन्दर का शफ़्फ़ाफ़ पानी इसकी ख़ूबसूरती को बेनज़ीर बनाते हैं.
 
यहां का ले मोर्न ब्रेबेंट प्रायद्वीप बहुत प्रसिद्ध है. इसके शिखर पर पहुंचकर दूर-दूर तलक के नज़ारों का लुत्फ़ उठाया जा सकता है. यूनेस्को ने साल 2008 में इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था. अमेरिका के लेखक सैम्यूअल लैंघोर्न क्लेमेन्स उर्फ़ मार्क ट्वेन ने मॉरीशस की ख़ूबसूरती की तारीफ़ करते हुए कहा था कि ख़ुदा ने पहले मॉरीशस बनाया और फिर उसमें से जन्नत की तख़लीक़ की. दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत द्वीपों में इसका शुमार होता है. 
 
मॉरीशस के खेत-खलिहान भारतीय गांवों की याद दिलाते हैं. यहां फ़्रेंच, हिन्दी और भोजपुरी भी बोली जाती है. यहां का पहनावा भी वही है, जो भारत में पहना जाता है. भारतीयों की यही तो ख़ासियत है कि वे जहां भी जाते हैं, अपनी संस्कृति को साथ लेकर जाते हैं.
 
यहां के तीज-त्यौहारों में भी वही रौनक़ होती है, जो भारत में दिखाई देती है. चूंकि यहां कई मज़हबों के लोग रहते हैं, इसलिए सालभर किसी न किसी के त्यौहार आते ही रहते हैं. यहां के लोग मिलनसार हैं. वे अपने पूर्वजों की मातृभूमि भारत से बहुत लगाव रखते हैं. वे भारत आते हैं, तो अपने पूर्वजों के गांव-देहात को ढूंढते हैं.     
 
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)