मुगल शैली से प्रभावित जलमहलों की नगरी डीग

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 04-02-2023
मुगल शैली से प्रभावित जलमहलों की नगरी डीग
मुगल शैली से प्रभावित जलमहलों की नगरी डीग

 

ओनिका माहेश्वरी 
 
डीग राजस्थान प्रांत के भरतपुर जिले का एक प्राचीन ऐतिहासिक शहर है. सप्ताह के आखिर में यानी वीकेंड पर डीग घूमने का मौका मिला जहां पर मैंने पाया कि डीग के महलों की वास्तुकला मुग़ल सल्तनत से प्रभावित है. आज मैं आपको डीग के महलों का निर्माण कैसे मुगल वास्तुकला और मुगल शैली के आधार पर बना है विस्तार से बता रहीं हूँ.

डीग का प्राचीन नाम दीर्घापुर था. डीग भरतपुर शहर से 32 किमी की दूरी पर स्थित है. डीग को भरतपुर राज्य की पहली राजधानी राजा बदन सिंह ने बनाया था. डीग को जल महलों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. कभी भरतपुर के शासकों का ग्रीष्मकालीन आवास रहे, डीग ने क्षेत्र की भरतपुर राज्य की दूसरी राजधानी बनने की भूमिका निभाई. यह रोचक छोटा सा नगर अपनी बेजोड किलेबंदी, अत्यधिक सुंदर बगीचों और कुछ भव्य महलों के कारण दर्शनीय है.
 
 
यह नगर लगभग सौ वर्षो से उपेक्षित अवस्था में है, किंतु आज भी यहाँ भरतपुर के जाट-नरेशों के पुराने महल तथा अन्य भवन अपने भव्य सौंदर्य के लिए विख्यात हैं. नगर के चतुर्दिक मिट्टी की चहारदिवारी है और उसके चारों ओर गहरी खाई है. मुख्य द्वार 'शाह बुर्ज' कहलाता है. यह स्वयं ही एक गढ़ी के रूप में निर्मित था. इसकी लंबाई-चौड़ाई 50 गज़ है. प्रारंभ में यहाँ सैनिकों के रहने के लिए स्थान था. मुख्य दुर्ग यहाँ से एक मील है, जिसके चारों ओर एक सृदृढ़ दीवार है.
 
बाहर क़िले के चतुर्दिक मार्गों की सुरक्षा के लिए छोटी-छोटी गढ़ियां बनाई गई थीं- जिनमें गोपालगढ़, जो मिट्टी का बना हुआ क़िला है, सबसे अधिक प्रसिद्ध था. यह शाहबुर्ज से कुछ ही दूर पर है. इन क़िलों की मोर्चाबंदी के अंदर सुंदर सुसज्जित नगर- डीग था, जो अपने वैभवकाल में (18वीं शती में) मुग़लों की तत्कालीन अस्तोन्मुख राजधानियों दिल्ली तथा आगरा के मुक़ाबले में खड़ा दीखता था.
 
 
डीग किला और जलमहल सूरजमल के महत्वपूर्ण निर्माण हैं. राजा सूरजमल ने इस किले का निर्माण 170 ई में करवाया था. किले का मुख्य आकर्षण है यहां का निगरानी बुर्ज ('वॉच टावर'), जहां से न केवल पूरे महल को देखा जा सकता है, बल्कि शहर का नजारा भी लिया जा सकता है. किले में मुग़ल-साम्राज्य के कारीगरों ने तालाब बनाने, ईंटे पकाने, घास के सुन्दर मैदान विकसित करने एवं फव्वारे बनाने का काम दिया.
 
 
डीग के महल
डीग के महलों में चतुष्कोण बनाते हुए बीच में 475-350 फीट का एक बगीचा है. इसमें 2000 फव्वारे लगे हुए हैं. पूर्व व पश्चिम में विशाल जलाशय है तथा उत्तर की और नन्द भवन है, पश्चिम में मुख्य इमारत गोपाल भवन है, जो सभी महलों में सर्वाधिक विशाल है. यह तीन और से दुमंजिला है और बीच में विशाल सभा भवन है.
 
 
गोपाल भवन से थोडी दूर दो छोटी इमारतें हैं जो सावन-भादों भवन के नाम से जानी जाती हैं. चतुष्कोण के दक्षिण की और उत्तर की तरफ मुंह किये दो महल हैं. पश्चिम में मकराना के संगमरमर से बना सूरज भवन और पूर्व में भूरे बलुआ पत्थर से बना किशन भवन है.  इन दोनों महलों के बीच इस मजबूत इमारत की छत पर एक टंकी है जो इन सभी महलों व बगीचों में जल प्रवाह करती है. ब्रोक्मेन के अनुसार भंडार की विशाल क्षमता को आवश्यक मजबूती प्रदान करने में यह टंकी हिंदुस्तान में बेजोड़ है.
 
 
गोपाल भवन का निर्माण 1780 में किया गया था. खूबसूरत बगीचों से सजे इस भवन से गोपाल सागर का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है. भवन के दोनों ओर दो छोटी इमारतें हैं जिन्हें 'सावन भवन' और 'भादों भवन' के नाम से पुकारा जाता है.
 
सूरज भवन: मुगल एवं हिन्दू स्थापत्य कला का बेजोड़ निर्माण
सूरज भवन के बारे में कहा जाता है कि इसके निर्माण में ताज महल की नक़ल की गई है. दक्षिण दिशा में संगमरमर का सूरज भवन स्थित है. यह एक हवादार महल है, जिसकी अलंकृत दीवारें व फर्श मन मोह लेते हैं. सम्पूर्ण भवन संगमरमर का बना है. कुछ स्तम्भ व छज्जे बलुआ पत्थर के बने हैं. सूरज भवन को देख कर स्पष्ट होता है कि यह पूर्णतया मुगल एवं हिन्दू स्थापत्य कला का बेजोड़ निर्माण है.
 
 
नुकीले किनारे वाले महराब, वक्र, पत्तियों वाले अलंकृत स्तम्भ आदि सभी हिन्दू रूपक इस भवन में मौजूद हैं, जो कि उदयपुर और आमेर के महलों से साम्य रखते हैं. कई कमरों में छतों में हिन्दू रूपक उलटे कमल बने हुए हैं. थार्टन के अनुसार डीग के महल में दक्षिण बरांडे के कुछ छज्जे, पश्चिम के कुछ स्तम्भ, उत्तर दिशा के बरांडे का फर्श, इन सभी में रूपवास परगने में स्थित बाँसी पहाडपुर का पत्थर इस्तेमाल किया गया है, जो शैली की रमणीयता और शिल्प की पूर्णता की दृष्टि से इतने श्रेष्ठ हैं कि उनसे बढ कर केवल आगरा का ताजमहल है.जबकि सम्पूर्ण भवन संगमरमर का है. यहाँ तक कि छत की पत्तियां भी संगमरमर की हैं. 
 
 
सूरज भवन के साथ ही किशन भवन है. इसके सामने उत्तरी दिशा में नन्द भवन है. इस भवन में सभा भवन की भांति एक बड़ा हाल है. जो सात भागों वाले महराबदार स्तंभों की पंक्तियों से घिरा है. इसके दोनों सिरों पर संगमरमर के झरोखे बने हैं. मध्यस्थ स्तंभों पर आधारित महराबें आयताकार रूप में नियोजित की गई हैं. भवन में लाल पत्थर के साथ संगमरमर का प्रयोग भी किया गया है.
 
डीग के महलों की वास्तुकला मुग़ल सल्तनत से प्रभावित 
डीग के किले में सौन्दर्य कला और वास्तु डीग के भवनों एवं उद्यानों के विन्यास से यह स्पष्ट हो जाता है कि मुग़ल दरबारों से कारीगरों के बनाए गए हैं. डीग के किले में सुन्दर भवन को पुराना महल के नाम से जाना जाता है. जो आज भी भव्य एवं दर्शनीय हैं. कवि सोमनाथ ने 'सुजन विलास' और अखैराम ने 'सिंहासन बत्तीसी' में डीग के इन सुन्दर महलों, वाटिका, जलाशय, आदि का श्रेष्ठ एवं सुन्दर वर्णन किया है.
 
 
मुग़ल काल में अकबर के समय तक बंगाल शैली की छत राजपूत शैली का हिस्सा बन चुकी थी. बाबर द्वारा भारत में प्रचलित की गयी भवन, उद्यान व फव्वारों की ईरानी-चार-बाग़ पद्धति की व्यवस्था ने हिन्दू रियासतों के भवनों को एक नया रूप प्रदान किया. हालांकि विक्टोरिया युग में वास्तुकला का विकास हुआ, परन्तु मध्य काल के ताजमहल, हुमायूं का मकबरा, बीजापुर की गोल गुम्बद, डीग के जल महल और भरतपुर के दुर्ग का कोई सानी नहीं है.
 
 
डीग के भवनों में महलों के साथ मुग़ल शैली के बड़े-बड़े चौकोर उद्यान हैं, जिनमें पानी की कृत्रिम व्यवस्था से चलने वाले फव्वारों की श्रृंखलाएं हैं. 18वीं सदी में जबकि मुग़ल शैली या मिश्रित शैली में काम हुआ, तब हिन्दू शैली का स्थान बनाये रखने का सार्थक प्रयास बदन सिंह एवं सूरजमल ने किया. सन 1725 में प्रथम जाट राजधानी 'डीग' की स्थापना हुई.
 
फव्वारों की व्यवस्था
वर्गाकार उद्यानों के मध्य में अष्ट फलक आकृति वाला 60 फ़ुट चौडाई में फव्वारों का एक अति सुन्दर समूह है. इस बिंदु को सभी भवनों से फव्वारों की पंक्तियाँ जोड़ती हैं.  6 लाख लीटर क्षमता का एक हौज बना हुआ है, जो पानी की कृत्रिम व्यवस्था का स्रोत है. "कीर्तिशिखर पर पहुँच कर राजा सूरजमल ने फव्वारों युक्त प्रसादों, जिन्हें भवन कहते हैं, का निर्माण कराया था. यह अनुपम डिजायन एवं शिल्प प्रवीणता में आगरा के ताज महल के अनुरूप भारत की थाती है. इन्होंने डीग को अति प्रसिद्ध स्थल बना दिया है.
 
 
जब ये फव्वारे चल कर बंद होते हैं तो उसके बाद उद्यान के बीच जड़े पत्थर रंगों से इस तरह सरोबर दिखते हैं जैसे लोगों ने टोलियाँ बनाकर होली खेली हो. फव्वारों की यह सम्पूर्ण व्यवस्था तकनीकी दृष्टि से अद्वितीय है. भवन के प्रथम तल पर बना अपार क्षमता का हौज जो 225 वर्षों से आज भी अपनी क्षमता के अनुरूप कार्य कर रहा है. ये फव्वारे भवनों को वातानुकूलित ही नहीं करते हैं बल्कि कृत्रिम वर्षा की अनुभूति भी कराते हैं.
 
 
इन फव्वारों की विशेषता विधि, रूप-रंग के अलावा एक धारा तथा सहस्त्र धारा के रूप में देखने योग्य है. भवनों में कई जगह इन्हें झरने का रूप देने का सार्थक प्रयास किया गया है. फव्वारे व उद्यान कृत्रिम वर्षा एवं रंग-बिरंगे रूप से मुग़ल काल में निर्मित श्रीनगर के निशात बाग़ व शालीमार बाग़ की व्यवस्था से एक कदम आगे हैं. इन फव्वारों व उद्यानों का निर्माण ईरानी-चार-बाग पद्धति पर आधारित है.
 
 
बारहदरी में फव्वारों की व्यवस्था उच्च तकनीक का बेमिसाल प्रयोग है. इसमें जल प्रवाह की गुप्त व्यवस्था है. बारहदरी की दूसरी छत का बीच का हिस्सा खोखला है, जिसमें लोहे के गोले हैं. पानी पहुँचने की व्यवस्था केपिलरी पद्धति पर आधारित है. जब फव्वारे चलते हैं तो पानी इस हिस्से में पहुँच कर गोलों को आपस में टकराता है जो बादल गरजने का आभास देता है. यह निर्माण अछे कला प्रेमी होने का प्रमाण तत्कालीन शासक को देता है.
 
मुग़ल कलाकृतियों की तरह बना डीग का महल 
डीग में जो संगमरमर का एक भवन है वह बारीकियों की दृष्टि से मुग़ल कलाकृतियों की तरह है. इन भवनों में नींव भरने में ताजमहल विधि का अनुसरण किया गया गया है.
 
 
यहां के बेलबूटे ताजमहल व लाल किले आगरा के किले के संगमरमर के निर्माण से साम्य रखते हैं तो इसका कारण यह है कि कारीगर मुग़ल दरबार का काम छोड़ कर आये थे यह उनकी कला का प्रदर्शन है.
 
 
सम्पूर्ण भवनों के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि वास्तव में यह महल परिसर उत्तर भारत में अद्वितीय भारतीय वास्तुकला का केंद्र है. तकनीक, प्रारूप व्यवस्था एवं शैली इन सभी आधारों पर यह श्रेष्ठ भवन है. सम्पूर्ण उत्तर भारत में हिन्दू शैली के एकमात्र महल डीग के जल महल हैं. इन भवनों में काम लाई गई तकनीक आज भी आधुनिकतम बनी हुई है.
 
 
महल के अजूबों में से एक संगमरमर का खूबसूरत झूला है जिसके बारे में माना जाता है कि यह मुगल बादशाह जहांगीर की सबसे प्रिय पत्नी नूरजहाँ का था.